जयपुर: 'सारा जिस्म झुककर बोझ से दुहरा हुआ होगा, मैं सजदे में नहीं था आपको धोखा हुआ होगा.' दुष्यंत कुमार की ये पंक्तियां राजस्थान कीसुनीता नामक पुलिस वाली दीदी पर सटीक बैठती हैं. उन्होंने अपनी मेहनत, त्याग और पूर्ण निष्ठा के साथ बड़ा लक्ष्य न केवल हासिल किया बल्कि कैंसर जैसी घातक बीमारी को मात देकर नारी की असली ताकत का लोगों को आभास कराया. उन्होंने अपने जीवन में कैंसर के साथ साथ बाल विवाह और महिला के प्रति निम्न सोच जैसी कई करीतियों को मात दी.
सुनीता का 2011 में पुलिस सिपाही के पद पर चयन हुआ था और 2013 में कैंसर हो गया. हम आपको उनकी पूरी संघर्षमय कहानी के बारे में बता रहे हैं.
जब मैं महज 3 साल की थी मेरी शादी पास के गांव के एक लड़के के साथ कर दी गई. उन दिनों राजस्थान में बाल विवाह होना एक आम बात थी. लेकिन मेरा गौना 18 साल की उम्र में होना था और मेरी जिंदगी का नया अध्याय शुरू होता.
जब मेरी शादी हुई तब मैं इस लायक भी नहीं थी कि शादी का मतलब समझ सकूं. मुझे केवल पढ़ाई की चिंता सताती थी. जब मैं पांच साल की हुई तो मेरे गांव में एक स्कूल खुला.
मैने अपने पिता से कहा मुझे ऑफिसर बनना है, मुझे स्कूल भेजो. इसके बाद मेरा दाखिला स्कूल में करवा दिया गया. हमारे घर में बिजली नहीं हुआ करती थी तो मैं रात में लालटेन जलाकर पढ़ाई करती.
पढ़ाई के बाद मुझे घर के और खेती होती होने के कारण ये सब काम भी करने पड़ते थे. इसके बावजूद भी मैं क्लास में फर्स्ट आती थी.
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5वीं कक्षा पास करने के बाद मुझे पड़ोस के गांव में 6 किमी पैदल चलकर जाना पड़ता था. तो मुझे गांव के लोग उलाहना देते और कहते इतना पढ़कर क्या करोगी, ससुराल ही तो जाना है. कोई पढ़ी लिखी बहू नहीं चाहता.
बावजूद इसके मैने लगन से पढ़ाई की और 10वीं में डिक्टेंशन हासिल करके आगे की पढ़ाई के लिये शहर चली गई. शहर आने के बाद मुझे मालूम चला कि पुलिस में सिपाही की भर्ती निकली है.
मैंने आवेदन किया और परीक्षा पास करने वाले 50 उम्मीदवारों में इकलौती लड़की थी. लेकिन ये खुशखबरी देने में भी मैं पिताजी के सामने असहज महसूस कर रही थी. किंतु जब मैने उन्हें ये बात बताई तो आश्चर्यजनक रूप से उन्होंने कहा, तेरा आफिसर बनने का सपना पूरा होना ही चाहिये.
9 महीने की कड़ी ट्रेनिंग के बाद मैं पुलिस महकमे में शामिल होने वाली अपनी गांव की पहली महिला बनी. उस वक्त मेरी उम्र केवल 19 साल थी और मुझे तब मुझे बहुत खुशी होती थी जब गांव के लोग सेल्यूट करके कहते पुलिस साहिबा आ रही हैं.
कुछ वक्त बाद मेरे सपनों की उड़ान को किसी की नजर लग गई. कुछ महीने बाद ही मेरे पेट में दर्द होने शुरू हो गया. जांच के बाद डॉक्टरों ने बताया कि मुझे कैंसर हो गया है. मैं ओवरियन कैंसर से जूझ रही थी जो दूसरे स्टेज तक पहुंच गया था.
जब मैं अपने सपने को जी रही थी तो अचानक अर्श से फर्श पर आ गिरी. इलाज के दौरान शुरुआती 6 महीने बेहद भयावह रहे और मेरी कीमोथैरेपी हुई. इस दौरान मेरे शरीर के पूरे बाल झड़ गये और मेरा वजन महज 35 किलो रह गया.
मेरे इलाज पर पिताजी ने 4 लाख रुपये खर्च कर दिये. इस पर पड़ोसियों ने उनसे कहा बेटी पर इतने पैसे क्यों खर्च कर रहे हो. मेरे सिर के बाल झड़ चुके थे और कुछ लोग मुझे गंजी कहकर चिढ़ाते थे. इसलिये मैने खुद को चारदीवारी में कैद कर लिया.
इलाज के जब मैं दोबारा नौकरी करने पहुंची तब भी अपने सिर को ढ़कने के लिये कैप लगाए रहती थी. मैं इस सदमे से उबर नहीं पा रही थी. इस बीच मुझे एक म्यूजिक टीचर मिले और मैंने मन को शांति देने के लिये हारमोनियम बजाना शुरू कर दिया.
ठीक होने के कुछ महीने बाद मैं सुसराल आकर अपने पति के साथ रहने लगी. मैने उन्हें अपने और ओवरियन कैंसर के बारे में बताया कि मेरे मां बनने की संभावना बेहद कम है. लेकिन उन्होंने कहा मैं सिर्फ तुम्हारे साथ रहना चाहता हूं.
मैं जैसी थी उन्होंने मुझे उस रूप में स्वीकार किया और ये मेरे लिए बहुत था. इसके बाद मैंने अपना समय समाज सेवा में शुरू किया. ड्यूटी पूरी करने के बाद मैं आसपास के इलाकों में जाती और बच्चों को यौन शोषण (बैड टच, गुड टच) और सड़क सुरक्षा के बारे में बताती.
यहां से मेरा नाम पुलिस वाली दीदी बन गया. 3 साल में मैने एक हजार से ज्यादा बच्चों शिक्षित किया. इसके पुलिस कमिश्नर ने मुझे सम्मानित किया.
अब मैं बीमारी से भी उबर चुकी हूं और मेरे बाल भी वापस आ गये हैं. जब मैं पुरानी तस्वीरों को देखती हूं जिसमें वे बदरंग तस्वीरें भी शामिल हैं, वे मुझे बताती हैं कि मैं कहां से कहां तक आ गई हूं और मुझे आगे कहां जाना है.
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