नई दिल्लीः साल 2018 के शुरुआती दिनों की एक सुबह ने हर उस भारतीय की नींद उड़ा दी थी, जिसने अपना आधार बनवा लिया था. जनवरी के चौथे रोज अखबारों की सुर्खियां थीं कि महज 500 रुपये में करोड़ों आधार की डिटेल मिल रही है. यानी कि एक आम भारतीय कहीं भी किसी संस्थान के साथ अपना आधार नंबर शेयर कर रहा है तो उसकी व्यक्तिगत जानकारी लीक हो रही है. इस खबर के बाद लोगों ने जबरदस्त तरीके से सरकार के उस फैसले का विरोध किया जिसमें आधार को हर सेवा प्रदाता कंपनी के साथ लिंक कराने की बात कही गई थी.
यानी यह तय था कि आपकी जानकारियां सुरक्षित नहीं हैं
इस खबर के सामने आते ही यूआईडीएआई ने कड़ी कार्रवाई की थी. इसके तहत उन सभी निजी और सरकारी अधिकारियों को आधार डाटा एक्सेस करने से रोक दिया गया, जिन्हें लिमिटेड एक्सेस दिया गया था. हालांकि यूआईडीएआई यह साबित करने में जुटी हुई थी कि आधार सुरक्षित है. इधर टेलिकॉम कंपनियां भी सेवा देने के लिए आधार को आधार बना रही थीं. इसका भी विरोध जारी था.
आधार सुरक्षित है इसे साबित करने के लिए ट्राई के चेयरमैन आरएस शर्मा ने अपना आधार नंबर सार्वजनिक कर दिया. यहीं उनसे गलती हो गई. इसके बाद हैकर्स ने उनकी कई जानकारियां सार्वजनिक कर दीं. इनमें उनका नाम, पता, फोन नंबर, यहां तक की वाट्सएप की डीपी भी शामिल थी. हालांकि शर्मा कहते रहे कि इसमें कोई बड़ी बात नहीं है, लेकिन उनके इस कदम ने आधार पर सरकार के मजबूत पक्ष को कमजोर कर दिया था. यह तय हो गया था कि डेटा लीक तो हो रहा है.
2017 में बन गई थी डेटा प्रोटेक्शन बिल के लिए कमेटी
एक तरफ केंद्र सरकार आधार लिंक कराने को लेकर मजबूती से खड़ी थी तो वहीं दूसरी तरफ हैकिंग के कई मामलों ने डिजिटलीकरण के बढ़ते कदम भी रोक रखे थे. हैकिंग का सबसे बुरा असर बैंकिंग सेवाओं पर पड़ रहा है, जो अब भी जारी है. ऑनलाइन ठगी के मामले काफी बढ़े हैं. ऐसे में जरूरी है कि सबसे पहले ट्रांजेक्शन को सुरक्षित बनाया जाए.
इसे देखते हुए जरूरत पड़ी कि डेटा प्रोटेक्शन को लेकर कुछ कड़े नियम बनाए जाएं. इन्हीं तर्कों का अध्ययन करने के लिए और विस्तृत जानकारियां जुटाने के लिए सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज बीएन कृष्णा की अध्यक्षता में समिति बनाई गई थी. समिति का काम और आधार का विरोध-समर्थन साथ-साथ चल रहा था. 2018 में समिति ने रिपोर्ट सामने रखी.
रिपोर्ट में कई काम की बातें सामने आईं
बीएन कृष्णा कमेटी ने जो रिपोर्ट सामने रखी उसमें कई जरूरी बातें सामने आईं. सबसे पहले तो यह कहा गया कि अगर कंपनियां, उपभोक्ता से उसकी जानकारी ले रही हैं तो उससे स्पष्ट तौर पर सहमति लें. यह बिंदु सबसे जरूरी माना गया. इसके बाद कहा गया कि सभी डेटा, भारतीय सर्वर में ही रखा जाए. यानी कि कंपनियों को दो ही विकल्प दिए जाएंगे.
पहला तो सर्वर देश में ही रखना होगा तो यह आईटी के रोजगारों को अवसर देगा. दूसरा यह कंपनियां भारतीय कानून और टैक्स के दायरे में आएंगी.
अभी तक कंपनियों को छूट है
भारतीय कानून और टैक्स के दायरे में आना कंपनियों पर सबसे बड़ा नियंत्रण होगा. अभी तक एक कानूनी लूपहोल है कि कंपनियां, वेबसाइट्स खुद को आईटी एक्ट की धारा 79 के तहत खुद को सुरक्षित मानती हैं. यह एक तरीके से खुद को महज माध्यम (इंटरमीडिएट) मानती हैं और समझती हैं कि वह डेटा का इस्तेमाल कैसे भी कर सकती हैं. क्योंकि कानूनी लिहाज से उन्हें कई तरह की छूट मिली हैं.
एक उदाहरण से इसे समझिए कि कुछ साल पहले तक आप फोन मेसेज भेजते थे. यह सोशल एप आने से पहले की बात है. तब सिर्फ नेट का डाटा खरीदने के लिए आप पैसे खर्च करते थे और कई वेबसाइट आपको फ्री मेसेज भेजने की सुविधा देती थीं. अब आप सोचिए कोई वेबसाइट बिना किसी शुल्क के यह सुविधा कैसे देती थीं ? कंपनियां आपके डेटा के इस्तेमाल कारोबार भी कर रही हैं और उससे बरी भी हो रही हैं.
21 लोगों का डेटा पेगासस ने किया ऐक्सेसः संसद में सरकार
बुधवार को केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने लोकसभा में बताया कि वाट्सएप लगातार उपलब्ध जानकारियों का रिव्यू कर रहा है. यह भी जिक्र किया गयाकि वाट्सएप मानता है कि वाट्सएप का प्रयोग करने वाले भारत के 121 यूजर्स के डेटा पर हमला किया गया था. वहीं सरकार ने लोकसभा को ये भी सूचित किया कि कैंब्रिज एनालिटिका द्वारा 5,62,455 से अधिक व्यक्तियों का फेसबुक डेटा एक्सेस किया गया. फेसबुक ने 2018 में सरकार को यह बताया था.
यह सब लोकसभा चुनाव के दौरान हुआ था. जिसमें पत्रकार, वकील, सामाजिक कार्यकर्ता आदि को निशाना बनाया गया था. उन्होंने इस पर खेद जताया है. बताया गया कि 121 वाट्सएप यूजर्स में से कम से कम 21 का व्यक्तिगत डेटा पेगासस स्पाईवेयर ने एक्सेस किया था.
आपकी निजी जानकारी की सुरक्षा कुछ इस तरह करेगा डेटा प्रोटेक्शन बिल