नई दिल्ली: दिल्ली के निजामुद्दीन मरकज में तबलीगी जमात पर कोरोना के प्रसार के आरोपों के बाद अब जमात एक बार फिर कई कारणों से चर्चा में है. तबलीगी जमात पर कई देशों में प्रतिबंध लगा हुआ है. हाल ही में, कई मीडिया रिपोर्ट्स में यह भी कहा जा रहा है कि सऊदी अरब ने भी तबलीगी जमात पर प्रतिबंध लगा दिया है. इसके लिए कारण यह दिया गया है कि तबलीगी जमात की विचारधारा कट्टरपंथी है और यह आतंकवादी गतिविधियों को बढ़ावा देती है.
दुनिया भर में तबलीगी जमात से लगभग 35 करोड़ लोग जुड़े हुए हैं. इनमें से 25 करोड़ लोग दक्षिण एशियाई देशों में ही रह रहे हैं.
जानिए क्या है तबलीगी जमात
तबलीगी जमात की शुरुआत साल 1926 में हरियाणा के मेवात जिले से मानी जाती है. इसकी शुरुआत देवबंदी इस्लामी विद्वान मौलाना मोहम्मद इलयास कांधलवी ने एक धार्मिक सुधार आंदोलन के तौर पर की थी. कांधलवी ने सबसे पहले मेवाती मुसलमानों को इस्लामी मान्यताओं और प्रथाओं के बारे में शिक्षित करने के लिए मस्जिद-आधारित धार्मिक स्कूल शुरू किए. वे गैर मुसलमानों को भी कुरान में निहित इस्लामी तालीम देने के हिमायती थे.
साल 1941 में तबलीगी जमात का पहला सम्मेलन हुआ, जिसमें उत्तर भारत से लगभग 25,000 लोग इक्कट्ठा हुए थे. साल 1947 में भारत-पकिस्तान के विभाजन के बाद यह और मजबूत हुआ. पकिस्तान और बांग्लादेश में बड़ी संख्या में लोग जमात से जुड़े. वर्तमान में तबलीगी जमात की सबसे बड़ी विंग बांग्लादेश में ही है.
तबलीगी जमात की स्थापना विशेषकर इस्लाम के मानने वालों को धार्मिक उपदेश देने और उन्हें धर्म के प्रति जागरूक करने के लिए की गई थी. जमात से जुड़े लोगों का उद्देश्य होता है कि वे इस्लाम के पांच बुनियादी अरकान (सिद्धातों) कलमा, नमाज, इल्म-ओ-जिक्र (ज्ञान), इकराम-ए-मुस्लिम (मुसलमानों का सम्मान), इखलास-एन-नीयत (नीयत का सही होना) और तफरीग-ए-वक्त (दावत और तब्लीग के लिए समय निकालना) का प्रचार करें. वैसे तो यह पूरी तरह से एक गैर राजनीतिक संगठन है. लेकिन कई देशों की सियासत में जमात का हस्तक्षेप इसे सियासी भी बना देता है.
तबलीगी जमात से जुड़े लोग दुनिया भर में घूम-घूमकर इस्लाम के प्रचार-प्रसार का काम करते हैं. ये दुनिया की अलग-अलग जगहों पर 20 से 30 लोगों की जमातों(groups) में पहुंचते हैं और वहां के मुसलमानों से नमाज और इस्लाम की तालीम पर अमल करने की गुजारिश करते हैं.
इन देशों में लगता है जमात का मरकज
तबलीगी जमात हर साल दुनियाभर के कई देशों में मरकज का आयोजन करती है. भारत में मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल, मुंबई के नेरुल और दिल्ली के निजामुद्दीन तबलीगी जमात का मरकज लगता है.
इसके अलावा ब्रिटेन के वेस्ट यॉर्कशायर के ड्यूजबरी, बांग्लादेश की राजधानी ढाका और पाकिस्तान के लाहौर के पास स्थित रायविंड शहर में हर साल मरकज का आयोजन किया जाता है.
दुनियाभर में होने वाले इन मरकजों में हर साल लाखों लोगों की भीड़ उमड़ती है. कोरोना काल में दिल्ली के निजामुद्दीन में आयोजित हुए मरकज के कारण तबलीगी जमात को भारत में आलोचनाओं का सामना करना पड़ा था.
कौन करता है तबलीगी जमात का नेतृत्व
वैसे तो तबलीगी जमात की कोई परिभाषित संरचना नहीं है, लेकिन इसमें भी बुजुर्गों और मस्जिदों का एक पदानुक्रमित नेटवर्क काम करता है.
मूल रूप से तबलीगी जमात के अगुआ को अमीर कहा जाता है, जिसका चुनाव आलमी इज्तामा करती है. आलमी इज्तामा जमात से जुड़े महत्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय लोगों का ग्रुप है. जो जमात से जुड़े महत्वपूर्ण मामलों का निपटान भी करता है और आलमी इज्तामा के तौर पर अपने अमीर का चुनाव भी करता है.
हालांकि जमात के तीसरे अमीर (1965-95) मौलाना इनामुल हसन कांधलवी की मौत के बाद 'अमीर' के पद को समाप्त कर दिया गया था. अब तबलीगी जमात की अंतर्राष्ट्रीय सलाहकार परिषद 'आलमी शूरा' अपने अगुआ का चुनाव करती है.
वर्तमान में मौलाना साद तबलीगी जमात के अगुआ के रूप में सामने आते हैं, जो कि जमात के संस्थापक मौलाना मोहम्मद इलयास कांधलवी के परपोते हैं.
इन देशों में प्रतिबंधित है तबलीगी जमात
तबलीगी जमात के नेता और इसके सदस्य ये दावा करते हैं कि वे राजनीतिक नहीं हैं और वे धर्म के नाम पर हिंसा की निंदा भी करते हैं.
इसके बावजूद कई देशों ने जमात पर ये आरोप लगाए हैं कि जमात का कई आतंकवादी संगठनों से भी संबंध है और वे कट्टरपंथी विचारों को प्रोत्साहन देते हैं.
मध्य एशियाई देशों उज्बेकिस्तान, ताजिकिस्तान और कजाकिस्तान ने तबलीगी जमात पर प्रतिबंध लगा रखा है. इन देशों की सरकारें तबलीगी जमात को एक चरमपंथी गुट के रूप में देखती हैं.
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