नई दिल्लीः Corona संकट के दौर में भारत ने विश्व को यह अहसास दिलाया है कि किसी भी स्थिति में भारत इन्वेस्टर्स के लिए सबसे मुफीद जगह है. चीन के दोहरे रवैये और विस्तारवादी नीति के कारण कई देशों ने जहां उससे मुंह मोड़ा है वहीं भारत एक सशक्त माध्यम के तौर पर उभर कर आया है. इसी बीच देश की एक और बड़ी कूटनीतिक जीत हुई है. चिकित्सा के क्षेत्र में अब कंपनियों को चीन का मुंह नहीं देखना पड़ेगा.
भारत में खुलेंगे पारंपरिक दवाओं के शोध के केंद्र
जानकारी के मुताबिक, विश्व स्वास्थ्य संगठन भारत में पारंपरिक दवाओं के शोध के वैश्विक केंद्र खोलने की घोषणा की है. यह घोषणा चीन पर भारत की बड़ी कूटनीतिक जीत के रूप में देखी जा रही है. पारंपरिक दवाओं के वैश्विक बाजार में भारत का निर्यात चीन के निर्यात का लगभग पांच फीसद है.
वैश्विक शोध केंद्र खुलने के बाद आयुर्वेदिक दवाओं को आधुनिक चिकित्सा पद्धति के तौर पर न सिर्फ वैश्विक मान्यता मिलेगी, बल्कि दुनिया के वैश्विक बाजार में भी भारत सिरमौर बनेगा.
WHO की घोषणा के होंगे दूरगामी परिणाम
आयुष मंत्रालय के उच्च पदस्थ सूत्रों के अनुसार पारंपरिक दवाओं के वैश्विक बाजार में चीन की पकड़ को देखते हुए WHO का भारत में शोध केंद्र खोलने की घोषणा करना कोई सामान्य बात नहीं है. इस घटना के दूरगामी प्रभाव होंगे.
आयुष मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार पारंपरिक दवाओं के वैश्विक बाजार में चीन के दबदबे को इस बात से समझा जा सकता है, उसकी तुलना में भारतीय पारंपरिक दवाओं का निर्यात महज पांच फीसद के आसपास है.
ऐसे में स्वाभाविक रूप से वैश्विक शोध केंद्र के लिए चीन की दावेदारी के मजबूत माना जा रहा था, लेकिन चीन के बजाय भारत को शोध का केंद्र बनाने का WHO का फैसला वैश्विक कूटनीति में भारत के बढ़ते दबदबे का दिखाता है.
आयुर्वेदिक दवाओं को मिलेगा वैश्विक बाजार
आयुष मंत्रालय की ओर से बताया गया कि WHO के शोध केंद्र खुलने से आयुर्वेदिक दवाओं को वैज्ञानिक मापदंडों और क्लीनिकल ट्रायल पर खरा उतारने की कोशिशों को बल मिलेगा. इसके साथ ही WHO की मुहर लगने के बाद आयुर्वेदिक दवाओं को वैश्विक मान्यता के साथ-साथ बड़ा बाजार भी मिलेगा.
अभी वर्तमान में पारंपरिक दवाओं का वैश्विक बाजार 31,500 करोड़ रुपये है, जिसके अगले पांच साल में एक लाख करोड़ रुपये से अधिक हो जाने का अनुमान है.
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