नई दिल्ली: वर्ष 2001, ये वो साल था जब अमेरिका ने अफगानिस्तान में तालिबानियों को चुन-चुन कर मार गिराया था. 20 साल बाद दुनिया अफगानिस्तान में हर रोज वही तस्वीर देख रही है. जिसका खौफ अब भी लोगों की आंखों में है. इस खौफ की वजह बताने की जरूरत तो नहीं है, लेकिन आलम ये कि अपना घर, अपना शहर, अपना देश छोड़ने के लिए लोग दरबदर जिंदगी जी रहे हैं.
अफगानिस्तान में फिर से आतंक का राज
यूं कहा जाए कि अफगानिस्तान में लोग अब सिर्फ जान बचाने की लड़ाई हर रोज लड़ रहे हैं. लेकिन गुरुवार को जो कुछ हुआ, उससे अब लोगों में जीने की उम्मीदें घटने लगी हैं. देश छोड़ने के लिए लोग काबुल एयरपोर्ट पर डेरा डाले हुए थे, वहां अब मंजर कुछ और है. अफगानिस्तान में तालिबान राज के बाद इस्लामिक स्टेट और तालिबान के बीच अफगानिस्तान में ठनी हुई है.
एक के बाद एक कई धमाकों से दहलने की जिम्मेदारी ‘इस्लामिक स्टेट-खुरासान प्रांत’ (ISIS-K) ने ली है. जिसका संबंध खूंखार आतंकी संगठन इस्लामिक स्टेट से हैं. अफगानिस्तान पर तालिबान कब्ज़े के बाद आतंकवादी संगठन इस्लामिक स्टेट की शाखा ISIS-K दुनिया के सबसे घातक आतंकवादी खतरों में से एक के रूप में विकसित हो रहा है. सबसे पहले आपको बताते हैं कि इस्लामिक स्टेट खुरासान यानि ISIS-K क्या है?
क्या है इस्लामिक स्टेट खुरासान?
मध्य एशिया में इस्लामिक स्टेट का सहयोगी है. 2014 में पूरे सीरिया और इराक में फैल गए. 2015 में आईएसआईएस-के की स्थापना हुई, ISK या ISIS-K नाम से भी जाना जाता है. वर्ष 2016 में इस आतंकी अब आपको बताते हैं ISIS-K में शामिल आतंकी कौन हैं.
ISIS-K के लड़ाके कौन हैं?
पाकिस्तानी तालिबान लड़ाकों से संगठन की शुरुआत हुई. कई सैन्य अभियानों के बाद पाकिस्तान से निकाल दिया. बाद में अफगानिस्तान सीमा पर शरण ली. चरमपंथी विचारधारा के लोगों ने संगठन की ताकत बढ़ाई. तालिबान से असंतुष्ट लड़ाके 'खुरासान' में शामिल हुए. ईरान के सुन्नी प्रांत और चीन के उइगर शामिल हुए. उज्बेकिस्तान के इस्लामी आंदोलन से जुड़े लोग शामिल हुए.
ISIS-K खतरा है, इसे अमेरिका पहले भी भाप चुका था. यही वजह है कि अमेरिका ने कई साल पहले इसे तालिबान से बड़ा खतरा मानते हुए इस पर एयरस्ट्राइक शुरू की. इन हमलों की वजह से ISIS-K की ताकत काफी कमजोर हो गई थी. अमेरिकी हमलों की वजह से साल 2016 तक ISIS-K में काफी कम आतंकवादी ही बचे थे. लेकिन अब अफागनिस्तान के बदले माहौल में ISIS-K एक बार फिर फन फैलाने को तैयार हो रहा है.
ISIS-K का ठिकाना कहां है?
अफगानिस्तान के पूर्वी प्रांत नंगरहार में 'आईएसआईएस-के' का ठिकाना है. पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच होने वाले नशीले पदार्थों का कारोबार और मानव तस्करी के रास्ते इसके पास से ही गुजरते हैं.
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काबुल हवाई अड्डे के बाहर हुए आत्मघाती हमलों के लिए अमेरिका ने भी इसी संगठन को जिम्मेदार ठहराया है. करीब 20 सालों तक अफगानिस्तान में अमेरिका के नेतृत्व में आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई चलती रही. इसके बावजूद इस्लामिक स्टेट-खुरासान अपना अस्तित्व बचाने में न सिर्फ कामयाब हुआ बल्कि अभी भी खतरनाक हमले करने में सक्षम है.
अमेरिकी और अन्य विदेशी सैनिकों के अफगानिस्तान से वापस जाने और तालिबान के सत्ता में वापस आने के बाद इस संगठन को फलने-फूलने के लिए अच्छा माहौल मिल सकता है. हालांकि दोनों संगठन एक-दूसरे के कट्टर दुश्मन हैं.
क्यों खतरनाक है ISIS-K?
जिहाद फैलाना ISIS-K का मकसद इस्लामिक स्टेट के प्रभाव को बढ़ाना और इसने अफगानिस्तान, पाकिस्तान में कई बार लोगों पर हमला किया. अल्पसंख्यक शिया मुसलमानों को निशाना बनाया. अफगानिस्तान-अमेरिका सेना के साथ कई झड़प हुईं.
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यही वजह है कि काबुल एयरपोर्ट में जो हुआ उसे जानकार खतरे की बड़ी घंटी करार दे रहे हैं, क्योंकि अफगानिस्तान आतंक के अलग-अलग संगठनों का केंद्र बन चुका है, जो आने वाले वक्त में पूरी दुनिया के लिए नासूर साबित हो सकता है. इसलिए कहा जा रहा है कि अब क्या खतरा है इसे भी समझिए
अब क्या खतरा है?
तालिबान राज के बाद ISIS-K को मौका मिला है. आगे भी हमले जारी रखने में सक्षम है. अमेरिकी सेना की वापसी के बाद ताकत बढ़ेगी. अफगानिस्तान आतंकी संगठनों का घर बनेगा. अमेरिका को अल-कायदा की ताकत बढ़ने का डर हो गया है.
अमेरिका को पहले इसके खतरे का अंदाजा था और अनुमान था कि आईएसआईए-के काबुल एयरपोर्ट को निशाना बनाएगा. यही वजह है कि अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन अपने सैनिकों को 31 अगस्त तक अफगानिस्तान से निकाल लेना चाहते हैं.
ISIS के खिलाफ ऐलान-ए-जंग?
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने कहा है कि 'हम माफ नहीं करेंगे, हम हमला नहीं भूलेंगे, दुश्मनों को ढूंढ निकालेंगे, चुन-चुनकर सजा देंगे. हमलावरों को मारेंगे, आतंक के गुनाह को सजा देंगे. अफगानिस्तान से अमेरिकी नागरिकों को बचाएंगे. अफगान सहयोगियों को बाहर निकालेंगे. हमारा मिशन जारी रहेगा.'
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