सरकार गंवाने के बाद क्या एकनाथ शिंदे से शिवसेना बचा पाएंगे उद्धव ठाकरे? जानें क्या कहता है कानून

महाराष्ट्र सरकार में चल रहा सियासी उठापटक का दौर आखिरकार खत्म हो गया. भारतीय जनता पार्टी और शिंदे गुट मिलकर महाराष्ट्र में सरकार बनाएंगे. एकनाथ शिंदे महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री होंगे.

Written by - Zee Hindustan Web Team | Last Updated : Jun 30, 2022, 06:35 PM IST
  • गुरुवार शाम शपथ लेंगे एकनाथ शिंदे
  • एकनाथ शिंदे का अगला कदम क्या होगा?
सरकार गंवाने के बाद क्या एकनाथ शिंदे से शिवसेना बचा पाएंगे उद्धव ठाकरे? जानें क्या कहता है कानून

नई दिल्लीः महाराष्ट्र सरकार में चल रहा सियासी उठापटक का दौर आखिरकार खत्म हो गया. भारतीय जनता पार्टी और शिंदे गुट मिलकर महाराष्ट्र में सरकार बनाएंगे. एकनाथ शिंदे महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री होंगे.

गुरुवार शाम शपथ लेंगे एकनाथ शिंदे
महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस और एकनाथ शिंदे ने प्रेस कॉन्फ्रेंस की. इस दौरान जानकारी दी गई कि एकनाथ शिंदे गुरुवार शाम को महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पद की शपथ लेंगे. 

एकनाथ शिंदे का अगला कदम क्या होगा?
भले ही राज्य में महाविकास अघाड़ी सरकार गिर गई हो, उद्धव ठाकरे ने सीएम पद से इस्तीफा दे दिया हो, अब एकनाथ शिंदे गुट और बीजेपी मिलकर सरकार बनाने जा रही हो, लेकिन सवाल यह है कि एकनाथ शिंदे अलग पार्टी बनाएंगे या शिवसेना पर दावा ठोकेंगे? 

शिवसेना पर दावा ठोक सकते हैं शिंदे
सियासी जानकार बताते हैं कि जिस तरह एकनाथ शिंदे लगातार बाला साहेब ठाकरे का नाम ले रहे हैं, उससे कयास लगाए जा रहे हैं कि वह अब शिवसेना पर दावा ठोक सकते हैं. एकनाथ शिंदे ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में भी कहा कि बाला साहेब के विचारों को आगे बढ़ाएंगे. 

उद्धव के लिए खत्म नहीं हुईं चुनौतियां
ऐसे में अगर एकनाथ शिंदे शिवसेना पर दावा ठोकते हैं तो पार्टी किसकी होगी? क्या उद्धव ठाकरे को पार्टी से भी हाथ धोना पड़ेगा या सरकार बचाने की लड़ाई हार चुके उद्धव पार्टी का सिंबल तीर और कमान नहीं टूटने देंगे?

दो स्थितियों में पार्टी पर किया जा सकता है दावा
राजनीतिक दल पर दावा दो स्थितियों में किया जा सकता है. पहली स्थिति में दावा तब किया जा सकता है जब विधानसभा सत्र चल रहा हो. तब विधानसभा अध्यक्ष फैसला लेता है. इस स्थिति में दलबदल कानून भी लागू होता है.

चुनाव आयोग लेता है फैसला
दूसरी स्थिति तब होती है, जब विधानसभा का सत्र न चल रहा हो. इन हालात में चुनाव आयोग के पाले में गेंद जाती है और वह द इलेक्शन सिंबल्स (रिजर्वेशन एंड अलॉटमेंट) ऑर्डर, 1968 के तहत फैसला करता है. चुनाव आयोग पार्टी का संगठन और विधायिका देखता है. वह पार्टी की उच्च समितियों और निर्णय लेने वाली संस्थाओं की जांच करता है. वह देखता है कि किस पक्ष के पास कितने सदस्य और पदाधिकारी हैं. साथ ही कितने विधायक और सांसद हैं.

आयोग पार्टी के पदाधिकारियों और चुने गए प्रतिनिधियों के आधार पर सिंबल देने का निर्णय लेता है. यदि संगठन में समर्थन का फैसला न्यायोचित तरीके से न हो पाए तो राजनीतिक दल चुने गए प्रतिनिधियों के समर्थन के आधार पर निर्णय लेता है.

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