क्या विपक्ष की ब्रेकफास्ट और डिनर पार्टी 2024 की दावत में तब्दील हो पाएगी?

अमूमन सोनिया गांधी इस तरह की मीटिंग समय-समय पर बुलाती रही हैं लेकिन कांग्रेस के इतिहास में यह पहली बार था जब राहुल गांधी ने विभिन्न दलों के नेताओं को चर्चा के लिए भोज पर बुलाया था.

Written by - Pratyush Khare | Last Updated : Aug 13, 2021, 09:10 PM IST
  • जानिए क्या है इसकी अहमियत
  • विपक्ष क्या रणनीति बना रही है
क्या विपक्ष की ब्रेकफास्ट और डिनर पार्टी 2024 की दावत में तब्दील हो पाएगी?

नई दिल्लीः हंगामा और शोर शराबे में संसद का पूरा मॉनसून सत्र निकल गया, इस दौरान सरकार को घेरने में विपक्ष सदन में एकजुट नजर आया, लेकिन सदन के बाहर 2024 की तैयारी को लेकर विपक्ष में अलग अलग खेमेबंदी दिख रही है. विपक्ष की कवायद बीजेपी के खिलाफ एक मोर्चा तैयार करने की है, लेकिन चाहत सभी की इसकी अगुआई को लेकर है. सीधे शब्दों में कहें तो विपक्ष का चेहरा बनने की हसरत है. अब सवाल है कि किसके चेहरे पर विपक्ष होगा एकजुट? पवार और ममता में कौन बाजी मारेगा? कमान कांग्रेस संभालेगी या पार्टी की गुटबाजी काम बिगाड़ेगी?

सोनिया करेंगी विपक्ष की अगुवाई ?
संसद के मॉनसून सत्र में भले ही 15 विपक्षी पार्टियां एक साथ नजर आई हों. लेकिन मसला अभी भी उलझा हुआ है कि विपक्षी दलों की अगुवाई कौन करेगा. मतलब 2024 में बीजेपी के विकल्प के तौर पर विपक्ष का सर्वमान्य चेहरा कौन होगा. कभी टीएमसी कभी एनसीपी तो कभी कांग्रेस हर कोई हाथ पैर मार रहा है इसी कड़ी में इस बार कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने 20 अगस्त को विपक्ष की बैठक बुलाई है.

जिसमें एनसीपी प्रमुख शरद पवार, पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी के अलावा महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे,झारखंड के सीएम हेमंत सोरेन, तमिलनाडु के सीएम और द्रमुक नेता स्टालिन भी मौजूद होंगे, इस बैठक में और भी विपक्ष के मुख्यमंत्री शिरकत कर सकते हैं. बैठक का मकसद विपक्षी एकता को बढ़ाना और बीजेपी को कैसे मात दी जाए इसके लिए रणनीति बनाना है. अपनी तबीयत की वजह से आम तौर पर बैठकों और सार्वजनिक कार्यक्रमों से दूर रहने वाली सोनिया के अचानक एक्टिव होने के पीछे कांग्रेस के जी23 नेताओं से विपक्ष की नजदीकियों को भी अहम वजह माना जा रहा है .
 
राहुल के ब्रेकफास्ट से BSP और AAP ने बनाई दूरी
सोनिया गांधी से पहले कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी भी विपक्ष को साधने की कोशिश कर चुके हैं. राहुल ने 3 अगस्त को कॉन्स्टिट्यूशन क्लब में 17 विपक्षी दलों को नाश्ते पर बुलाया था जिसमें एनसीपी,शिवसेना, टीएमसी,सपा,आरजेडी समेत 15 दलों के नेता शामिल हुए थे लेकिन बीएसपी और आम आदमी पार्टी ने बैठक से किनारा कर लिया था जबकि शिरोमणि अकाली दल को न्यौता ही नहीं दिया गया था .

अमूमन सोनिया गांधी इस तरह की मीटिंग समय-समय पर बुलाती रही हैं लेकिन कांग्रेस के इतिहास में यह पहली बार था जब राहुल गांधी ने विभिन्न दलों के नेताओं को चर्चा के लिए भोज पर बुलाया था . हालांकि इस बैठक को बुलाने के पीछे विपक्ष की अगुवाई में पिछड़ जाने का डर भी था क्योंकि ऐसी बैठकें ममता बनर्जी बंगाल से दिल्ली आकर कर चुकी हैं .  

सिब्बल की 'डिनर डिप्लोमेसी' ने कांग्रेस की बढ़ाई टेंशन
एक तरफ सोनिया और राहुल विपक्ष को साथ लाकर उसकी अगुवाई करने का मन बना रहे हैं तो वहीं खुद कांग्रेस के भीतर भी एक अलग ही खेमेबाजी चल रही है सोनिया और राहुल से पहले कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल भी विपक्षी नेताओं के साथ बैठक कर चुके हैं. हाल में कपिल सिब्बल ने अपने जन्मदिन पर डिनर पार्टी में कई विपक्षी नेताओं को आमंत्रित किया था . इस दौरान संयुक्त मोर्चा को लेकर चर्चा हुई . लेकिन बैठक की दिलचस्प बात ये थी कि इसमें गांधी परिवार से कोई नहीं था . बल्कि कांग्रेस नेतृत्व से असंतोष जताने वाले G23 के नेता मौजूद थे .

 मेजबान सिब्बल के अलावा गुलाम नबी आजाद, भूपिंदर सिंह हुड्डा, आनंद शर्मा, मुकुल वासनिक, पृथ्वीराज चव्हाण, मनीष तिवारी और शशि थरूर शामिल थे. इस डिनर पार्टी में सपा , नेशनल काफ्रेंस , बीजेडी ,टीआरएस समेत बाकी दलों के अलावा राहुल की बैठक से किनारा करने वाली आप भी थी . शीर्ष विपक्षी नेताओं के साथ ‘जी-23’ के कांग्रेस नेताओं की यह पहली ऐसी मुलाकात थी . सिब्बल की इस डिनर डिप्लोमेसी ने सोनिया और राहुल गांधी की चिंता बढ़ा दी है .

विपक्ष की लामबंदी में ममता आना चाहती हैं अव्वल
बंगाल की जीत से उत्साहित टीएमसी प्रमुख ममता बनर्जी अब राष्ट्रीय स्तर पर अपनी बड़ी भूमिका के सपने देख रही हैं वो खुद को पीएम नरेंद्र मोदी के मुकाबले खड़ा करना चाहती हैं लेकिन वो अकेली ऐसा नहीं कर सकती इसलिए विपक्ष को साधने के लिए दिल्ली के चक्कर लगा रही हैं.

इस दौरान  सोनिया, राहुल, केजरीवाल के अलावा विपक्ष के कई नेताओं से उनकी मुलाकात हुई थी , लेकिन इन मुलाकातों से इतर एक दिलचस्प बात ये रही कि ममता जब दिल्ली में थीं, राहुल गांधी ने सदन में विपक्ष की संयुक्त रणनीति तय करने के लिए बैठक बुलाई थी जिसमें 14 पार्टियों के प्रतिनिधि मौजूद थे लेकिन उस बैठक में टीएमसी का कोई नहीं था. इसे विपक्ष की अगुवाई को लेकर राष्ट्रीय और क्षेत्रीय नेताओं के बीच आपसी टसल कहा जा सकता है.

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पवार भी पावर दिखाने में जुटे
ममता के दिल्ली दौरे से पहले एनसीपी चीफ विपक्ष को लामबंद करने की मुहिम में जुटे हुए हैं. महाराष्ट्र की सियासत में एनसीपी-शिवसेना-कांग्रेस को साथ लाने में अहम भूमिका निभाने वाले शरद पवार ने जून महीने में विपक्षी नेताओं की बैठक बुलाकर एक संयुक्त मोर्चा खड़ा करने के संकेत दे चुके हैं भले ही कोई खुल कर ना कहे लेकिन शरद पवार और ममता बनर्जी में से कौन विपक्ष की अगुवाई करेगा इसको लेकर अलग ही रेस चल रही है ममता बनर्जी विपक्ष को एकजुट करने की मुहिम के तहत दिल्ली आईं लेकिन शरद पवार से मुलाकात किए बगैर बंगाल लौट गईं और पवार भी लालू से मिलने मीसा भारती के आवास पहुंचे लेकिन ममता से मुलाकात और उनके दौरे पर बोलने से इनकार कर दिया .

2024 तक टिकेगी संसद में दिखी विपक्ष की एकजुटता?
संसद में पेगासस समेत कई मसलों पर विपक्ष की एकजुटता नजर आई लेकिन एआईडीएमके, वाईएसआर कांग्रेस, बीजू जनता दल जैसी पार्टियों ने पेगासस मुद्दे पर कुछ ना बोल कर विपक्ष की एकता पर सवाल खड़े कर दिए.

दरअसल 2024 के नेतृत्व को लेकर विपक्ष इस वक्त कई गुटों में बंटा हुआ हैं एक गुट ममता बनर्जी का, दूसरा राहुल गांधी का, तीसरा पवार और लालू प्रसाद यादव का और चौथा गुट बन रहा है अकाली दल का जिसमें उसके साथ बहुजन समाज पार्टी, वामदल और कुछ अन्य दल भी शामिल हैं 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले भी विपक्ष की लामबंदी की खूब कोशिशें हुई लेकिन चुनाव तक परवान नहीं चढ़ पाई. विपक्ष के इसी बिखराव का फायदा बीजेपी को 2014 और 2019 के चुनावों में मिला था . 

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सही मायनों में विपक्ष की असल एकजुटता की परीक्षा सदन के बाहर है. जहां 2024 की रेस जीतने के लिए बेचैनी तो है लेकिन खुद उसके अंदर एक ऐसा खेल चल रहा है जिसमें हर कोई कप्तान बनना चाहता है.

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