ज़ी हिन्दुस्तान EXLUSIVE: रिपोर्टर्स की जुबानी किसान आंदोलन की वो कहानी जो SC ने सच मानी

अपनी सच्ची पत्रकारिता के दम पर ज़ी हिन्दुस्तान ने किसान आंदोलन से जुड़ा हर एक सच पूरे देश के सामने रखा. सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने अपनी तल्ख टिप्पणी से सरकार और किसान संगठनों को ये बता दिया है कि समाधान जरूरी है.

Written by - Zee Hindustan Web Team | Last Updated : Jan 11, 2021, 09:48 PM IST
  • ज़ी हिन्दुस्तान की बेबाक पत्रकारिता
  • हमने जो दिखाया, वो सच साबित हुआ
  • किसान आंदोलन पर सुप्रीम सुनवाई
  • सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई में लगी मुहर
ज़ी हिन्दुस्तान EXLUSIVE: रिपोर्टर्स की जुबानी किसान आंदोलन की वो कहानी जो SC ने सच मानी

नई दिल्ली: किसान आंदोलन पर देश की सर्वोच्च अदालत ने सोमवार को सुप्रीम सुनवाई करते हुए सरकार और किसान संगठनों पर तीखी टिप्पणी की है. सुप्रीम कोर्ट ने वही कहा जो ज़ी हिन्दुस्तान हमेशा से कहता आया है. 47 दिनों से ज़ी हिन्दुस्तान ने इस आंदोलन के हर एक पहलू को गहराई से देखा है. हमने चप्पे-चप्पे के हालात से पूरे देश को रूबरू करवाया है. ऐसे में सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी काफी अहम है, क्योंकि 'ज़ी हिन्दुस्तान ने जो दिखाया, सच हुआ..'

किसान आंदोलन की जमीनी हकीकत

अनन्नदाताओं के हक की आवाज उठाने के लिए ज़ी हिन्दुस्तान ने आंदोलन के पहले दिन से ग्राउंड जीरो की हर तस्वीर को दिखाया. हमने किसानों की मांगों को सरकार तक पहुंचाया, आंदोलनकारी किसानों को माइक दिया और उनकी आवाज को सत्ता के गलियारों तक पहुंचाया. दिल्ली के सिंघु बॉर्डर, गाजीपुर बॉर्डर, टिकरी बॉर्डर और चिल्ला बॉर्डर से हर दिन-हर पल ज़ी हिन्दुस्तान के रिपोर्टर्स ने वहां के हालात के बारे में देश को बताया. हमने हर सच को प्रमुखता से दिखाया.

ज़ी हिन्दुस्तान के वो सभी रिपोर्टर्स जो पिछले 47 दिनों से किसान आंदोलन की कवरेज कर रहे हैं, उनकी जुबानी इस बात को समझिए कि कैसे सुप्रीम कोर्ट ने उस सभी बातों पर मुहर लगाई है, जो हम कह रहे थे. हमारे संवाददाताओं ने देश के सामने आंदोलन में छिपे शैतानों का सच दिखाया, उसकी बदसलूकी को सबके सामने रखा और किसानों के वेश में छिपे भेड़ियों को बेनकाब कर दिया. जिन्होंने हमारी महिला संवाददाताओं के साथ छेड़खानी की. सुप्रीम कोर्ट की तल्ख टिप्पणी पर हमारे रिपोर्टर्स की सोच से आपको जरूर रूबरू होना चाहिए. 

सच्चे किसानों के साथ ज़ी हिन्दुस्तान

हमारे संवाददाता रमन ममगांई ने पहले दिन से किसान आंदोलन की कवरेज की उन्होंने बताया कि 'लगातार हम वो सारे मुद्दे उठा रहे थे, जिसपर सोमवार को सुप्रीम मुहर लग गई. हमने कहा कि किसान आंदोलन में अराजक तत्व शामिल हैं, हमने कहा कि 26 जनवरी जो लोकतंत्र का उत्सव है उसको नहीं रोकना चाहिए. यही चिंता सुप्रीम कोर्ट ने भी जताई कि हिंसा हो सकती है. एक बड़ी भीड़ वहां ऐसी है कि जिन्हें ना तो कृषि कानूनों के बारे में जानकारी है और ना ही इससे कोई मतलब है.'

देश के सामने ज़ी हिन्दुस्तान ने हकीकत दिखाई. रमन ममगांई के साथ किसानों ने बदसलूकी की थी. रमन ने हर सच को अपनी रिपोर्टिंग के जरिए देश के सामने रखा था. रमन ने अपना अनुभव साझा करते हुए ये खुलासा किया कि आंदोलन में कुछ ऐसे तत्व हैं, जिन्हें ना तो कानूनों के बारे में जानकारी है और ना ही उससे कोई मतलब है.

हमारी महिला पत्रकार शालिनी कपूर तिवारी ने भी सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी पर अपनी राय पेश करते हुए कहा कि 'हमने जिन बातों को प्रमुखता से दिखाया, वही बात सुप्रीम कोर्ट ने कही है. कोर्ट ने कहा कि इस आंदोलन से हिंसा हो सकती है. इसीलिए इस आंदोलन का खत्म होना जरूरी है. ज़ी हिन्दुस्तान शुरू से ये कह रहा था कि इस आंदोलन में बच्चों की, महिलाओं की और बुजुर्गों की जगह नहीं होनी चाहिए. यही बात आज सुप्रीम कोर्ट ने कही है कि उन लोगों को जाकर बताया जाए कि खुद CJI कह रहे हैं कि वे आंदोलन छोड़कर चले जाएं. उनके हित में ये आंदोलन नहीं है. ज़ी हिन्दुस्तान ये शुरू से कह रहा था कि कोई बीच का रास्ता निकलना चाहिए, क्योंकि हठधर्मिता से कोई भी आंदोलन नहीं खत्म हो सकता है यही कोशिश सुप्रीम कोर्ट की तरफ से भी की जा रही है.'

हमारी महिला पत्रकार शालिनी ने अन्नदाताओं की आवाज को प्रमुखता से उठाया. सरकार तक उनकी मांगों को पहुंचाया. शालिनी का भी यही मानना है कि इस आंदोलन का जल्द से जल्द समाधान हो.

ज़ी हिन्दुस्तान केतेजतर्रार पत्रकार सरफराज सैफी ने भी इस आंदोलन को पहले दिन से कवर किया है. उन्होंने जमीनी पड़ताल की. यही वजह है कि सैफी का मानना है कि सुप्रीम कोर्ट ने जो टिप्पणी की है, वह बिल्कुल सही है. सरफराज सैफी ने कहा कि 'ज़ी हिन्दुस्तान पहले दिन से ही किसान आंदोलन को कवर करने के लिए ग्राउंड पर मौजूद था. एक हफ्ते तक तो ये किसान आंदोलन बिल्कुल सही दिशा में जा रहा था, लेकिन कुछ दिनों के बाद इस आंदोलन में बदसलूकी शुरू हो गई, हमारी महिला साथियों के साथ बदसलूकी हुई. ऐसी स्थिति पैदा हो गई कि यदि हमने कई बार बढ़ते तनाव को नहीं रोका होता तो हालात बद से बदतर हो जाते. मैंने अपने शो 'राष्ट्रवाद' के जरिए भी वही सारी बातें कही हैं, जो सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी की है. अदालत ने ये साफ कर दिया कि आप धरना कर सकते हैं, लेकिन इसकी आड़ में हुड़दंगबाजी और नशाखोरी जो हो रही है वो गलत है.'

आपको बता दें, सरफराज सैफी रोजाना ज़ी हिन्दुस्तान पर रात 9 बजे सुपर प्राइम टाइम राष्ट्रवाद 'शो' करते हैं. राष्ट्रवाद के जरिए सरफराज ने हमेशा ही किसान आंदोलन की आड़ लेकर उत्पात करने वालों को बेनकाब किया है. उनसे तीखे सवाल पूछे हैं. साथ ही उन्होंने सच्चे किसानों की आवाज को भी बुलंद किया है.

हमारी महिला पत्रकार मलिका मल्होत्रा ने भी दिन रात किसान आंदोलन की बेबाक कवरेज की. मलिका का कहना है कि 'ज़ी हिन्दुस्तान ने शुरुआत से ही ये बात कही है कि जिस तरह से सरकार और किसान संगठनों के बीच लगातार वार्ताओं का दौर जो सफल नहीं हो पा रहा था, उसने सुप्रीम कोर्ट के दखल से ही बात बन सकती है. ज़ी हिन्दुस्तान ने जो कहा वो सच साबित हो गया है. सुप्रीम कोर्ट ने हर उस अहम बिंदु पर टिप्पणी की और अपनी चिंता जताई, जिसपर ज़ी हिन्दुस्तान लगातार तस्वीरों और सबूतों के साथ दर्शकों तक जानकारी पहुंचा रहा था. शुरुआत में सच्चे किसान अपनी हक की लड़ाई के लिए बॉर्डर्स पर पहुंचे, लेकिन धीरे-धीरे इस आंदोलन में अराजक तत्वों की घुसपैठ होने लगी. ज़ी हिन्दुस्तान ने भीड़ पर चिंता जाहिर की, हमने दिखाया था कि कैसे कोविड की चिंता बढ़ रही है. इसपर भी सुप्रीम कोर्ट ने सुध लिया. ज़ी हिन्दुस्तान ने ये पहले ही दिखाया था कि कैसे महिलाएं, बच्चे और बुजुर्ग इस आंदोलन का हिस्सा बने हुए हैं. इसपर भी सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी की. यानि जो हमने दिखाया सच हुआ.'

उन्होंने किसानों के वेश में छिपे शैतानों की बदसलूकी का सामना किया, लेकिन इसके बावजूद भी वो ग्राउंड जीरो पर डटी रही. अपनी बेबाक पत्रकारिता के दम पर वो लगातार सवाल पूछती रही. आज जब सुप्रीम कोर्ट ने ये तल्ख टिप्पणी की है और वही कहा जो ज़ी हिन्दुस्तान पहले दिन से देश के सामने रखा.

हमारे जांबाज रिपोर्टर अक्षय विनोद शुक्ल ने भी किसान आंदोलन को प्रमुखता से कवर किया. अक्षय का कहना है कि 'जो कोशिश मुकम्मल नहीं हो रही थी, लगातार एक के बाद एक 9 कोशिशें हुई. सरकार की तरफ से कहा गया कि कमेटी बना लीजिए, किसान नेता उसके लिए राजी नहीं हुए. ज़ी हिन्दुस्तान ने ये खबर पहले ही सूत्रों के हवाले से बताई थी कि सरकार कह सकती है कि कानून को तबतक होल्ड पर रख देते हैं, जबतक कमेटी की तरफ से सुझाव ना आ जाए. किसान नेता उसके लिए भी राजी नहीं हुए. हमने ये पूछा कि इस आंदोलन में बच्चों, महिलाओं और बूढ़ों का क्या काम है? किसान नेता इसपर जवाब देने को राजी नहीं हुए. आज सुप्रीम कोर्ट ने ये सारी बातें एक बार फिर से पूछी है और कहा है कि आप बताइए अगर कोई हिंसा होती है तो इसके लिए जिम्मेदार कौन होगा. अदालत ने सरकार को फटकार लगाई है और कहा है कि समधान क्यों नहीं निकाल रहे हैं. सरकार ने बैठकों के जरिए इस विवाद को जिस तरह से सुलझाने की कोशिश की, अब वही कोशिश सुप्रीम कोर्ट की तरफ से कोशिश की जा रही है. अब देखना होगा कि जिन किसान संगठनों ने सरकार की बात को नकार दिया, क्या वो सुप्रीम कोर्ट की बात मानते हैं? क्योंकि ज़ी हिन्दुस्तान ने जो दिखाया, वो सच हुआ.'

अक्षय ने किसान आंदोलन में नशेड़ियों को बेनकाब किया. जब हमारी महिला पत्रकार के साथ छेड़खानी जैसी करतूतों को अंजाम दिया जा रहा था, उस वक्त अक्षय ने ऐसे अराजक तत्वों का बहादुरी से सामना किया.

इसके अलावा लक्ष्मी उपाध्याय ने सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी पर अपनी राय देते हए कहा कि '47 दिन से हम लगातार किसान आंदोलन कवर कर रहे थे. इस आंदोलन को हाईजैक करने वालों को लेकर जो हमने सच्चाई दिखाई, उसका ये बहुत बड़ा असर है. सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी हमारी बातों पर निर्णायक भूमिका निभाती नजर आ रही है. मतलब साफ है कि हमने जो दिखाया वो सच हुआ.'

लक्ष्मी ने किसानों की आवाज को सत्ता के गलियारों तक पहुंचाया. हर दिन उन्होंने आंदोलन स्थल पर जाकर किसानों की आवाज को बुलंद किया. ग्राउंड जीरो से उन शैतानों के बेनकाब किया, जिन्होंने आंदोलन को बदनाम करने के लिए गंदी करतूतों को हथियार बनाया.

हमारी महिला पत्रकार रितिका सिंह का कहना है कि 'ज़ी हिन्दुस्तान लगातार इस सच को देश के सामने रख रहा था कि इस आंदोलन में छिपे कुछ लोग हिंसा को बढ़ावा दे रहे हैं, वो आंदोलन को डिरेल करने की कोशिश कर रहे हैं. सुप्रीम कोर्ट ने जो तर्क रखा है वो बिल्कुल ज़ी हिन्दुस्तान की बात पर मुहर लगा रहा है. ज़ी हिन्दुस्तान ने भी ये बात बार-बार कही कि संवाद के जरिए ही समस्या को सुलझाया जा सकता है. हम लगातार आंदोलनकारियों से ये सवाल पूछ रहे थे कि आंदोलन में बच्चों, महिलाओं और बुजुर्गों की क्या जरूरत है. यही बात सुप्रीम कोर्ट ने भी अपनी टिप्पणी में कही है. मतलब साफ है ज़ी हिन्दुस्तान ने जो दिखाया, वो सच हुआ.'

रितिका को भी किसान आंदोलन में अराजक तत्वों की बदतमीजी का सामने करना पड़ा, परेशानी के बावजूद उन्होंने सच सामने रखा. तभी तो उनका भी यही मानना है कि जो ज़ी हिन्दुस्तान ने दिखाया, वो सच साबित हुआ.

ज़ी हिन्दुस्तान की संवाददाता हर्षा चंदवानी ने भी सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी पर अपनी राय साझा करते हुए कहा कि 'मैं लगातार 47 दिनों से इस आंदोलन को कवर कर रही हूं, आंदोलन में हमेशा गाजीपुर बॉर्डर पर तैनात रही और इस आंदोलन को पूरे करीब से कवर किया. यहां मैं ट्रोल नहीं हुई ना ही किसी ने मेरे साथ बदसलूकी हुई, लेकिन अक्सर यहा कुछ अराजक तत्व अपनी बात रखने के लिए दूसरों को बरगलाने पहुंच जाते थे. अगर हमें कुछ नकली किसानों ने ट्रोल किया तो कुछ असली किसान हमारे बचाव में भी उतरे. गाजीपुर में प्रत्येक शाम 6 बजे के बाद मौहौल खराब होते हुए हमने देखा है, जाम छलकते हुए और डीजे पर नाचते हुए युवाओं को देखा है. बात उनके अनुसार ना करने पर हमें वहां से खदेड़ने की भी कई बार धमकियां मिली, लेकिन हमने हमेशा असलियत दिखाई. किसानों के बीच कई ऐसे लोग मौजूद हैं जो अक्सर एक खास चैनल को देखकर आक्रोशित होकर घेरने पहुंच जाते थे. तमाम सच्चाई हमारे कैमरे पर हमने रिकर्ड भी की है. सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी से ये समझा जा सकता है कि कि हमने जो दिखाया वो सच हुआ.'

हर्षा ने पहले दिन से किसान आंदोलन के एक-एक पहलू को दर्शकों तक पहुंचाया है. उन्होंने लगातार किसानों की आवाज को बुलंद किया और अपने निष्पक्ष पत्रकारिता का परिचय दिया.

ज़ी हिन्दुस्तान के पत्रकार प्रत्युष खरे ने 'हम एकमात्र चैनल हैं जिन्होंने किसान रिपोर्टर पहल के जरिये सीधे किसानों के हाथ मे माइक थमाई और मंत्रियों और किसानों के बीच सीधा संवाद कराया. हम बीच में कही नहीं थे किसानों ने अपनी बात पूरे देश तक और सरकार तक बिना रोक टोक पहुंचाई, जिसे लोगों और अन्नदाताओं ने भी काफी सराहा. हम खेत खलिहान भी गए. हमने पाया गांव में बैठा किसान समाधान चाहता है और संवाद चाहता है, लेकिन बार्डर पर किसानों के बीच किसानों के वेश में कुछ ऐसे लोग भी हैं जिन्हें तीनों कानून में क्या है इसकी कोई जानकारी नहीं है. ये संवाद या सवाल नहीं बवाल करना जानते हैं सुप्रीम कोर्ट ने भी आंदोलन में हिंसा की आशंका को लेकर चिंता जाहिर की है. किसान नेता भले खुल कर ना कहे, लेकिन उन्हें भी इस बात की चिंता है कि कुछ लोगों के द्वारा हिंसा और उपद्रव करने से ये आंदोलन अपना वजूद और मकसद दोनों खो देगा. हमने सत्ता पक्ष से भी सवाल किया और इस आंदोलन को लेकर किसानों से भी सवाल किया. बुजुर्गों, बच्चों, महिलाओं को आंदोलन से दूर रखने, कोरोना को लेकर एहतियात बरतने और असामाजिक तत्वों को आंदोलन से दूर रखने जैसे सवाल प्रमुखता से उठाया और सर्वोच्च अदालत की टिप्पणी में भी वो सवाल चिंता के रूप में सामने आए.'

किसान आंदोलन के शुरू होने के साथ ही प्रत्युष ने जमीनी हकीकत देश के सामने रखी. उन्होंने अपना माइक किसान को दे दिया और उनसे रिपोर्टिंग कराई. ऐसे में सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी में ये साफ हो गया कि हमने जो दिखाया वो सच हुआ.

हमारी रिपोर्टर दीपिका यादव का मानना है कि संवाद से ही रास्ता निकलेगा लेकिन संवाद होना जरूरी है. उन्होंने कहा कि 'ज़ी हिन्दुस्तान ने बताया था कि कई लोग ऐसे हैं, जो नहीं चाहते कि सरकार और किसानों के बीच बात बने और वो चाहते हैं कि ये संवाद टलता रहे. हमने ग्राउंड जीरो पर जो अनुभव किया उसे बताया कि कैसे किसानों के वेश में कुछ उपद्रवियों ने आंदोलन को खराब किया है. हमारे साथ बदसलूकी की गई, ऐसे में सुप्रीम कोर्ट ने वही टिप्पणी की, जो ज़ी हिन्दुस्तान कहता आया है.'

दीपिका ने दिल्ली के बॉर्डर पर जाकर देश के सामने किसान आंदोलन की हर तस्वीर पेश की. दीपिका ने किसान आंदोलन में छिपे अराजक तत्वों की बदसलूकी को भी एक चुनौती की तरह स्वीकार किया. सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी के बाद दीपिका की सच्ची पत्रकारिता पर मुहर लग गई.

हमारे पत्रकार हितेन विठलानी ने भी किसान आंदोलन से जुड़ी एक-एक हकीकत को देश के सामने लाया. हितेन का मानना है कि 'किसानों को सुप्रीम कोर्ट की बात मान लेनी चाहिए, क्योंकि ठंड में महिलाएं, बच्चे और बुजुर्ग परेशान हो रहे हैं. सुप्रीम कोर्ट ने कमेटी बनाने की बात कही है. उम्मीद है कि कमेटी की रिपोर्ट 3 महीने में आ जाएगी. मेरा मानना है कि रिपोर्ट आने तक किसानों को वापस लौट जाना चाहिए. अगर उनके परेशानी का समाधान नहीं होता है तो उन्हें आंदोलन करने की पूरी आजादी है, लेकिन सड़क जाम करके और रास्ता रोककर समाधान नहीं हो सकता है. मैं 26 नवंबर को वहां मौजूद था, जहां पर आंसू गैस के गोले छोड़े गए थे. वहां किसानों की भीड़ में मौजूद कुछ लोगों ने गीले कपड़े से उस गोले को उल्टे पुलिस और हम पत्रकारों की तरफ फेंकना शुरू कर दिया. निश्चित तौर पर सुप्रीम कोर्ट ने हमारी हर बात पर मुहर लगाई है, जो ज़ी हिन्दुस्तान पहले दिन से ही कह रहा था. हमने सच्ची पत्रकारिता की और पूरे देश को किसान आंदोलन के हर एक सच्चे पहलू से मुखातिब कराया.' 

किसान आंदोलन के एक-एक पहलू को हितेन ने खंगाला और पूरे देश के सामने आंदोलन की हर एक सच्ची तस्वीर पेश की. उन्होंने इस आंदोलन में रात-दिन रिपोर्टिंग की.

ज़ी हिन्दुस्तान की एक और महिला पत्रकार आशी सिंह ने कहा कि 'लगातार 47 दिनों से ज़ी हिन्दुस्तान ग्राउंड जीरो पर डटा था, हमने उन अराजक तत्वों का पर्दाफाश किया जो किसान के वेश में छिपे थे. सच को कभी छिपाया नहीं जा सकता है, आखिरकार वही हुआ जो ज़ी हिन्दुस्तान ने दिखाया. सुप्रीम कोर्ट ने ज़ी हिन्दुस्तान की हर बात पर मुहर लगा दी है.'

ज़ी हिन्दुस्तान के सभी पत्रकारों की जांबाजी का ही नतीजा है कि जो हमने दिखाया, उसपर देश की सर्वोच्च अदालत ने भी मुहर लगा दी. यानि हमारी सच्ची पत्रकारिता का लोहा पूरे देश ने माना और सुप्रीम कोर्ट ने उसको सही करार दे दिया. देश के अन्नदाताओं के साथ ज़ी हिन्दुस्तान कदम से कदम मिलाकर चलता है. हर मौके पर हमने पत्रकारिता धर्म का पालन किया है, हमने जो दिखाया.. जो बताया, वो सच साबित हुआ. जिसका सबसे बड़ा सबूत सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी है.

आपको जानना चाहिए कि सोमवार को देश सर्वोच्च अदालत ने क्या टिप्पणी की है. अदालत ने सरकार और किसान संगठनों को किस तरह से फटकार लगाई है. नीचे दिए लिंक पर क्लिक करके पढ़ें पूरी खबर..

किसान आंदोलन पर सुप्रीम कोर्ट में हुई अहम सुनवाई को 10 point में समझिए

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