1. सुप्रीम कोर्ट (Supreem Court) ने सोमवार को नए कृषि कानूनों (Farmer Law Bill) को लेकर केंद्र और किसानों (Farmer's) के बीच चल रही बातचीत पर निराशा जताई है. चीफ जस्टिस एसए बोबडे की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा, ‘क्या चल रहा है? राज्य आपके कानूनों के खिलाफ बगावत कर रहे हैं. हम बातचीत की प्रक्रिया से बेहद निराश हैं.’
2. इस मामले की सुनवाई वाली पीठ में चीफ जस्टिस एसए बोबडे के अलावा न्यायमूर्ति एसएस बोपन्ना और न्यायमूर्ति वी सुब्रमण्यम भी शामिल थे. पीठ ने कहा, ‘हम आपकी बातचीत को भटकाने वाली कोई टिप्पणी नहीं करना चाहते लेकिन हम इसकी प्रक्रिया से बेहद निराश हैं. यह एक बहुत ही नाजुक स्थिति है.’
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3. पीठ ने कहा, ‘हमारे समक्ष एक भी ऐसी याचिका दायर नहीं की गई, जिसमें कहा गया हो कि ये तीनों कृषि कानून किसानों के लिए फायदेमंद हैं.’ सुप्रीम कोर्ट ने कृषि कानूनों को लेकर समिति की आवश्यकता को दोहराया और कहा कि अगर समिति ने सुझाव दिया तो वह इसके क्रियान्वयन पर रोक लगा देगा.
4. केंद्र सरकार (Central Government) पर तल्ख टिप्पणी करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ‘हम अर्थव्यवस्था के विशेषज्ञ नहीं हैं; आप बताएं कि सरकार कृषि कानूनों पर रोक लगाएगी या हम लगाएं?’ हालांकि अटॉर्नी जनरल केके. वेणुगोपाल ने शीर्ष अदालत से कहा कि किसी कानून पर तब तक रोक नहीं लगाई जा सकती, जब तक वह मौलिक अधिकारों या संवैधानिक योजनाओं का उल्लंघन ना करे.
5. पीठ ने कहा, ‘हमारी मंशा यह देखने की है कि क्या हम इस सबका कोई सर्वमान्य समाधान निकाल सकते हैं. इसीलिए हमने आपसे (केन्द्र) पूछा कि क्या आप इन कानून को कुछ समय के लिये स्थगित रखने के लिये तैयार हैं. लेकिन आप समय निकालना चाहते थे.’ पीठ ने कहा, ‘हमें नहीं पता कि क्या आप समाधान का हिस्सा हैं या समस्या का हिस्सा हैं.’
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6. इन कृषि कानूनों का विरोध कर रहे किसानों की यूनियनों से भी पीठ ने कहा, ‘आपका भरोसा है या नहीं, लेकिन हम सुप्रीम कोर्ट हैं और हम अपना काम करेंगे.’ पीठ ने कहा कि उसे नहीं मालूम कि आन्दोलनरत (Farmer Protest) किसान कोविड-19 (Covid 19) महामारी के लिये निर्धारित मानकों के अनुरूप उचित दूरी का पालन कर रहे हैं या नहीं लेकिन वह उनके लिये भोजन और पानी को लेकर चिंतित हैं. पीठ ने यह भी आशंका जताई कि इस आन्दोलन के दौरान शांतिभंग करने वाली कुछ घटनायें भी हो सकती हैं.
7. शीर्ष अदालत ने कहा कि यह मामला दिन प्रतिदिन बिगड़ रहा है और लोग आत्महत्या कर रहे हैं. न्यायालय ने इस समस्या के समाधान के लिये समिति गठित करने का अपना विचार दोहराते हुये कहा कि इसमें सरकार और देश भर के किसान संगठनों के प्रतिनिधियों को शामिल किया जायेगा.
8. पीठ ने कहा कि इन कानूनों के अमल पर रोक लगाये जाने के बाद आन्दोलनकारी किसान अपना आन्दोलन जारी रख सकते हैं क्योंकि न्यायालय किसी को यह कहने का मौका नहीं देना चाहता कि उसने विरोध की आवाज दबा दी. शीर्ष अदालत ने कहा कि बातचीत सिर्फ इसलिए टूट रही है क्योंकि केंद्र चाहता है कि इन कानूनों के प्रत्येक उपबंध पर चर्चा की जाये और किसान चाहते हैं कि इन्हें खत्म किया जाये.
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9. इन कानूनों को लेकर केन्द्र और किसान यूनियनों के बीच आठ दौर की बातचीत के बावजूद कोई रास्ता नहीं निकला है क्योंकि केन्द्र ने इन कानूनों को समाप्त करने की संभावना से इंकार कर दिया है जबकि किसान नेताओं का कहना है कि वे अंतिम सांस तक इसके लिये संघर्ष करने को तैयार हैं और ‘कानून वापसी’ के साथ ही उनकी ‘घर वापसी’ होगी.
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10. सुप्रीम कोर्ट ने इससे पहले 12 अक्टूबर को इन कृषि कानूनों की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर केंद्र को नोटिस जारी किया था. ये तीन कृषि कानून हैं-कृषक (सशक्तिकरण एवं संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा करार, कानून, 2020, कृषक उत्पाद व्यापार एवं वाणिज्य (संवर्धन एवं सरलीकरण) कानून, 2020 और आवश्यक वस्तु (संशोधन) कानून. राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की संस्तुति मिलने के बाद से ही इन कानूनों को वापस लेने की मांग को लेकर किसान आंदोलनरत हैं.
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