नई दिल्ली. महाभारत काल सनातन भारत का ही नहीं वरन विश्व का भी एक अत्यंत महत्वपूर्ण एवं सुस्थापित काल था जिसने ज़ाहिर किया है कि उस काल में उस युग के लोग आज के विज्ञान से कहीं बहुत आगे थे. चाहे बात करें वास्तु-शिल्प की या बात करें विज्ञान की, महाभारत काल का युग आज के जेट एज से काफी आगे चल रहा था. कारण जो भी हो कि आज हम पीछे रह गए और पीछे छूट चुके भारतीय युग का आज भी पीछा कर रहे हैं. लेकिन ख़ुशी की बात ये है कि महाभारत कालीन अवशेषों पर और उस समय की संस्कृति पर न केवल भारत में बल्कि यूरोप और अमरीका में भी शोध हो रहा है. अब ये जो अवशेष उत्तरप्रदेश में प्राप्त हुए हैं, ये उस युग की बहुत सी सच्चाइयों पर से पर्दा उठा सकते हैं.
तीन हज़ार आठ सौ साल पुराने हैं ये अवशेष
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग की पीठ थपथपानी होगी इस सफलता के लिए. महाभारत काल की खोज को दृष्टिगत रख कर विभाग उत्तरप्रदेश के बागपत स्थित सिनौली में खुदाई करवा रहा है. इस खुदाई में उसे एक बड़ी सफलता प्राप्त हुई है. इस खुदाई में कुछ जले हुए अवशेष प्राप्त हुए हैं जिनको जांच के लिए लैब में भेजा गया. लैब में कार्बन डेटिंग की प्रक्रिया के माध्यम से इनके काल के निर्धारण का किया गया तो पता चला कि ये अवशेष 3800 साल पुराने हैं.
सिनौली में मिला एक सीक्रेट चैम्बर
पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग द्वारा सिनौली में करवाई जा रही खुदाई में भी एक हौद मिली है जिस पर जांच के बाद उसमें एक सीक्रेट चैम्बर होने की जानकारी मिली है. इस चैम्बर को अंतिम संस्कार के लिए शव को लाए जाने के बाद लेप आदि लगाने में इस्तेमाल किया जाता था जिसके उपरान्त उसे ताबूत में रख कर भूमि के भीतर दफना दिया जाता था. इस चैम्बर में दक्षिण दिशा से प्रवेश के संकेत पाए गए हैं.
सिनौली में हुई लगातार दो साल तक खुदाई
बागपत स्थित सिनौली में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग दो वर्षों से प्रयासरत था. दो वर्षों से यहां लगातार खुदाई चल रही थे अब जा कर यहां से प्राप्त परिणामों ने विभाग के लिए उत्साहवर्धन किया है. इस खुदाई में युद्ध में पहने जाने वाला शिरस्त्राण (हेलमेट), धनुष-बाण, तलवार, शाही ताबूत, दो ताबूतों के साथ रथ, आदि कुछ इस तरह की वस्तुएं प्राप्त हुई हैं, जिनसे ताबूतों में रखे शवों के योद्धाओं से सम्बंधित के होने के संकेत प्राप्त हो रहे हैं. यही नहीं, इन ताबूतों के साथ मिट्टी के बर्तनों में जले हुए कुछ अवशेष भी प्राप्त हुए थे. इनके पुरातनकालीन समय का अनुमान लगाने के लिए विभाग ने इनके सैंपल लखनऊ स्थित बीरबल साहनी पुराविज्ञान संस्थान को प्रेषित किये जहां से आई रिपोर्ट ने इन अवशेषों के 3800 साल पुराने होने की जानकारी दी है.