नई दिल्ली: हार को हराकर कामयाबी हासिल करने वालों का लोहा पूरी दुनिया मानती है. और जहां कोई उम्मीद ही ना बची हो और जिंदगी जब अंधेरों से घिरी हो उस वक्त एक 15 साल की ज्योति ने जब फैसला लिया और ऐसा करने का ठान लिया जो कोरोना के मुश्किल दौर में मिसाल बन गया, उसके इस मिसाल की गूंज अमेरिका तक सुनाई देने लगी.
दरभंगा की ज्योति को इवांका का सलाम
अपने जख्मी पिता को साइकिल पर बिठाकर गुरुग्राम से 1200 किमी दूर दरभंगा पहुंची तो पूरी दुनिया हैरान रह गई. जिसने सुना उसने ज्योति की प्रशंसा की. ज्योति के इस करानामे की देश ने तो सराहना की ही, अमेरिका भी इस मिसाल को देखकर चुप नहीं रह सका. ये खबर जब व्हाइट हाउस पहुंची तो अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की बेटी इवांका भी ज्योति की प्रशंसा करने से खुद को रोक नहीं पाई. इवांका ट्रंप ने ज्योति की हिम्मत की दाद देत हुए ट्वीट कर दिया.
इवांका ने अपने ट्वीट में लिखा कि "15 साल की ज्योति कुमारी ने अपने जख्मी पिता को साइकिल से सात दिनों में 1,200 किमी दूरी तय करके अपने गांव ले गई. सहनशक्ति और प्यार की इस वीरगाथा ने भारतीय लोगों और साइकलिंग फेडरेशन ऑफ इंडिया का ध्यान अपनी ओर खींचा है."
इवांका ट्रंप का ट्वीट-
15 yr old Jyoti Kumari, carried her wounded father to their home village on the back of her bicycle covering +1,200 km over 7 days.
This beautiful feat of endurance & love has captured the imagination of the Indian people and the cycling federation!https://t.co/uOgXkHzBPz
— Ivanka Trump (@IvankaTrump) May 22, 2020
भारतीय साइकिलिंग महासंघ का ऐलान
इवांका ट्रंप को ज्योति की कहानी की जानकारी तब हुई जब भारतीय साइकिलिंग महासंघ ने ज्योति से संपर्क किया. दरअसल, स्थानीय प्रशासन के जरिए ये खबर सीएफआई तक पहुंची थी. भारतीय साइकिलिंग महासंघ ने ज्योति को ट्रायल का एक मौका देने का फैसला किया है. मीडिया में खबर आते ही आग की तरह फैल गई. सीएफआई के निदेशक वीएन सिंह ने कहा कि महासंघ की तरफ से उसे ट्रायल का मौका दिया जाएगा. इसके अलावा यदि वो सीएफआई के मानकों पर थोड़ी भी खरी उतरेगी तो उसे स्पेशल ट्रेनिंग दी जाएगी साथ ही कोचिंग भी मुहैया कराई जाएगी.
जाहिर है ज्योति में कुछ तो बात तो रही होगी वरना 1200 किमी. साइकिल चलाकर बीमार पिता को लेकर गुरुग्राम से दरभंगा पहुंचना मामूली बात नहीं है.
मुश्किल वक्त में ज्योति ने मुश्किल को मुश्किल में डाला
जी हां, ये बिल्कुल सत्य है कि जो वक्त ज्योति और उसके परिवार के लिए सबसे मुश्किल वक्त में से एक था. उस वक्त मुश्किल को भी मुश्किल में डालकर ज्योति ने बहुत बड़ा काम करके दिखा दिया. दरअसल, ज्योति के पिता गुरुग्राम में दिहाड़ी मजदूरी का काम करते थे. लॉकडाउन की वजह से परिवार मुश्किलों का सामना कर रहा था. इसी बीच ज्योति के पिता जख्मी हो गए जिसकी वजह से मुश्किलें और बढ़ गई. आवाजाही पूरी तरह से बंद होने की वजह से ज्योति अपने पिता को लेकर साइकिल से ही दरभंगा के लिए निकल पड़ी.
ज्योति ने बताया था कि "हमारे कमरे का किराया नहीं था, मकान मालिक किराया मांग रहा था, खाने के लिए भी पैसा नहीं था." तो वहीं ज्योति के पिता ने कहा था कि "यहां पहुंचकर मुझे बहुत खुशी हुई है, इस बच्चे ने किसी तरह मुझे इस गांव में पहुंचाया, इस बच्चे पर मुझे बहुत गर्व है."
ज्योति 10 मई को अपने पिता को लेकर गुरुग्राम से दरभंगा के लिए निकली थी और 16 मई को अपने घर पहुंची. फिलहाल दोनों को क्वारंटाइन सेंटर में रखा गया है.
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ज्योति की बहादुरी की जितनी तारीफ की जाए उतनी कम है जहां एक तरफ ज्योति की सरहाना हो रही है, वहीं दूसरी तरफ सवाल उठ रहा है कि ऐसी नौबत क्यों आई कि एक बेटी को अपने बीमार पिता को साइकिल पर बिठाकर 1200 किमी दूर गुरुग्राम से दरभंगा लाना पड़ा.
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