नई दिल्ली: कुंभनगरी प्रयागराज को ही अपनी कर्मभूमि मानने वाले हरिवंश राय बच्चन कविता की दुनिया में वह नाम है जिनके नामों पर एक पीढ़ी ही दर्ज है. वीर-रस से लेकर श्रृंगार रस की कविता हो या अस्तित्व बोध से लेकर समाजिक बुराइयों पर प्रहार की कविता, बच्चन साहब ने सभी विधाओं में महारथ हासिल किया था. उत्तर छायावाद के चर्चित नामों में से एक नाम हरिवंश राय बच्चन जी का भी है. मधुशाला उनके जीवन की सबसे लंबी और सर्वश्रेष्ठ रचना है जिसे उन्होंने किताब के रूप में सहेज रखा था.
पिता की रचनाओं को अमिताभ बच्चन ने पर्दे पर फिल्माया
हरिवंश राय बच्चन वैसे तो यूपी के प्रतापगढ़ जिले के बाबूपट्टी गांव के थे. इलाहाबाद में जीवन के दो दशक से भी अधिक का समय बिताया और कर्मभूमि भी वहीं रही. जीवन के अंतिम कुछ साल मायानगरी मुबंई में रह कर गुजारे और अंतिम सांस भी वहीं ली. लेकिन सबसे दिलचस्प बात यह है कि बॉलीवुड के महानायक अमिताभ बच्चन जो हरिवंश राय बच्चन के सुपुत्र हैं, उन्होंने पिता की लिखी कई रचनाओं को फिल्माया भी है. अग्निपथ का थीम सॉन्ग भी हरिवंश राय बच्चन की कविता से लिया हुआ है.
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उनकी रचनाएं जो अमर हो गईं
इसके अलावा डॉन फिल्म में अमिताभ बच्चन पर फिल्माया गया गाना "छोरा गंगा किनारे वाला" भी हरिवंश राय बच्चन साहब ने ही लिखी थी. "सोचा करता बैठ अकेले गत जीवन के सुख-दुख झेले, दंशनकारी सुधियों से मैं उर के छाले सहलाता हूं, ऐसे मैं मन बहलाता हूं", लो दिन बीता लो रात गयी, आत्मपरिचय, दो पीढ़ियां, निशा निमंत्रण, मधुबाला, अग्निपथ और क्षण भर को क्यों प्यार किया था, यह रचनाएं उनकी यूएसपी है. हरिवंश राय बच्चन को पढ़ने वाले यह जानते हैं कि वे हालावाद के प्रवर्तक रहे हैं.
आत्मकथा लिखने का क्या है बिहार कनेक्शन
हरिवंश राय बच्चन ने अपनी आत्मकथा भी लिखी थी, जिसका नाम है "क्या भूलूं क्या याद करूं मैं" और नीड़ का निर्माण. लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि इस आत्मकथा के लिए उन्हें प्रेरणा बिहार से मिली. बिहार के गया जिले के रामनिरंजन परिमलेंदु कहते हैं कि बच्चन ने उनके कहने पर अपनी आत्महत्या लिखने की कोशिश शुरू की. रामनिंरजन परिमलेंदु बच्चन साहब के साथ उनकी मौत से तकरीबन 45 साल पहले तक उनके साथ थे. इसी दौरान उन्होंने उनकी कई रचनाओं का संकलन कराया और छपवाया भी.
रामधारी सिंह दिनकर के समकालीन कवि थे बच्चन साहब
मालूम हो कि हरिवंश राय बच्चन राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर के समकालीन लोगों में से एक थे. इस दौरान दोनों की कविताएं लोगों को खूब भाती रही. बच्चन साहब की रचना उनके नहीं रहने के बाद भी सब की जुबां पर है. कविता की यहीं बात निराली होती है, भले ही लिखने वाला सशरीर उपस्थित न हो लेकिन रचनाएं अमर हो जाती हैं अपने रचनाकार के नाम के साथ ही.
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