पुण्यतिथि विशेष: सावरकर का राष्ट्रवाद बनाम हिंदू राष्ट्रवाद

विनायक दामोदर सावरकर शुरू से हिंदुत्व के झंडाबरदार नहीं थे बल्कि एक सोची समझी रणनीति के तहत उन्होंने हिंदू धर्म और हिंदू आस्था को राष्ट्रीयता का चोला ओढ़ाकर राजनीतिक हिंदुत्व की अवधारणा रखी.

Written by - Madhaw Tiwari | Last Updated : Jul 3, 2021, 02:00 PM IST
  • राजनीतिक हिंदुत्व की विचारधारा सावरकर को एक ही समय में नायक बनाती है और खलनायक भी बनाती है
  • हिंदू धर्म और आस्था से अलग विनायक सावरकर, मांस खानेवाले और मदिरा पीने वाले चितपावन ब्राह्मण थे
पुण्यतिथि विशेष: सावरकर का राष्ट्रवाद बनाम हिंदू राष्ट्रवाद

नई दिल्लीः आम तौर पर किसी भी इंसान की शख्सियत आस-पास की बातें सुनकर, उन पर विश्वास कर के बनती हैं. उनका विश्वास, उनकी आस्था अक्सर एक आडंबर के दायरे में कैद रहती है जो भक्ति के भंवर तक पहुंच जाती है और फिर इंसान उसी में डूबता और उतराता रहता है. मेरी नजर में सावरकर को लेकर भी कुछ ऐसा ही है.

हिंदुत्व के प्रति उनकी विचारधारा राष्ट्रवाद के एक ऐसे आभामंडल में कैद नजर आती है जिसमें वह स्वयं को भी पहचानने से इनकार कर देते हैं. एक ऐसी विचारधारा जो विचारों को स्वतंत्रता नहीं देती बल्कि पूर्वाग्रह से ग्रसित और एक विचार में ही कैद कर के रख देती है. सावरकर की सोच में दूर दृष्टि तो नजर आती है लेकिन ये दूर दृष्टि समाज की बहुवादी सुन्दरता को चोट पहुंचाती दिखती है.

विनायक दामोदर सावरकर शुरू से हिंदुत्व के झंडाबरदार नहीं थे बल्कि एक सोची समझी रणनीति के तहत उन्होंने हिंदू धर्म और हिंदू आस्था को राष्ट्रीयता का चोला ओढ़ाकर राजनीतिक हिंदुत्व की अवधारणा रखी, जिसे उन्होंने क्रांतिकारी सावरकार के बाद परिवर्तित हुए अवसरवादी सावरकार के तौर पर हिन्दुस्तान के स्वतंत्रता संग्राम में प्रयोग भी किया.

यह भी पढ़िएः VD Savarkar Death Anniversary: आधुनिक भारत के निर्माण के लिए Nehru ने सावरकर का रास्ता चुना

राष्ट्रवादी हिंदुत्व की अवधारणा

1911 में अंडमान की जेल में बंद होने से पहले सावरकर की क्रांति राष्ट्रवाद की उसी धुरी पर घूमती थी जिस पर सुभाष चंद्र बोस की क्रांति और महात्मा गांधी का सत्याग्रह घूमता था लेकिन जेल में बंद रहने के उस कालखंड में ऐसा कुछ हुआ कि सावरकर ने एक नई धुरी का निर्माण किया जिसे आज भी राष्ट्रवादी हिंदुत्व का नाम दिया जाता है. यही सावरकार का अवसरवाद था.

एक राष्ट्र जिसका हजारों वर्षों का इतिहास है और जहां 4 धर्मों ने जन्म लिया वहां जब स्वतंत्रता का संग्राम चल रहा हो और उसके बीच में हिंदू महासभा और मुस्लिम लीग के धार्मिक राष्ट्रवाद को कैसे जायज ठहराया जा सकता है और किस प्रकार से उस शख्स को महान कहा जा सकता है जो स्वयं मोहम्मद अली जिन्ना के समकक्ष खड़ा हो.

गनीमत है कि उस वक्त में सिख राष्ट्रवाद, जैन राष्ट्रवाद, बौद्ध राष्ट्रवाद को अग्नि देने वाला कोई नहीं था, अन्यथा उसी समय हिंदुस्तान कई टुकड़ों में बंट गया होता.

यह भी पढ़िएः नेहरू का वो माफीनामा जो साबित करता है कि सावरकर वीर क्यों हैं?

भारत का नागरिक कौन?

'हिंदुत्व- हू इज हिंदू?' अपनी इस किताब में उन्होंने बताया है कि भारत का नागरिक कौन हो सकता है. उन्होंने लिखा है कि, “इस देश का नागरिक वही हो सकता है, जिसकी पितृ भूमि, मातृ भूमि और पुण्य भूमि भारत भूमि ही हो” उनका साफ तौर पर कहना है कि यहां रहने वाले इंसान मूलत: हिंदू ही हैं और यही विचारधारा आज देश के हिंदू संगठनों में भी है, जो 1910 से पूर्व कभी भी किसी के जेहन में शायद नहीं थी.

साफ है कि हिन्दुओं के अलावा सिख, बौद्ध और जैन धर्म जिनका जन्म भारत में ही हुआ, इनसे जुड़े लोगों के लिए तो भारत उनकी पितृ भूमि, मातृ भूमि और पुण्य भूमि हुई लेकिन मुसलमान और ईसाई के लिए तो ये सिर्फ पितृ भूमि, मातृ भूमि है, तो वे भारत के नागरिक नहीं हुए.

अब इसे आज के नागरिक संशोधन कानून के संदर्भ में देखें तो मौजूदा बीजेपी सरकार जो विनायक दामोदर सावरकार के आगे वीर लगाकर संबोधन करती है, वो उनके विचारों से कितना ज्यादा प्रभावित नजर आती है.

हिंदुत्ववादी संस्थाओं के प्रेरणास्रोत

वैसे सावरकर कभी भी आरएसएस या भारतीय जनसंघ के सदस्य नहीं थे लेकिन वे संघ और संघ से जुड़ी तमाम संस्थाओं के लिए आज भी प्रेरणास्रोत हैं. राजनीतिक हिंदुत्व की वो विचारधारा, उन्हें एक ही समय में नायक भी बनाती है और खलनायक भी बनाती है.

1910 से पहले के वो सावरकर जो हिन्दू मुस्लिम एकता की बातें किया करते थे, अपनी किताब में बहादुर शाह ज़फ़र के शेर को संदर्भित करते हैं और 1910 के बाद वो सावरकर जो राष्ट्रवाद से छिटककर हिंदू राष्ट्रवाद की अवधारणा को प्रतिपादित करने के साथ 1937 के हिंदू महासभा के अधिवेशन में द्विराष्ट्र की परिकल्पना को पेश कर देते हैं, दोनों में जमीन आसमान का अंतर है.

1910 से पहले अंग्रेज अफसर को मारने के आरोपों वाले क्रांतिकारी सावरकर ‘वीर’ हो सकते हैं लेकिन उसके बाद धर्म के आधार पर राष्ट्रवाद को बांटने वाले सावरकर कैसे ‘वीर’ हो सकते हैं.

हिंदू धर्म और हिंदू आस्था से अलग विनायक दामोदर सावरकर, मांस खानेवाले और मदिरा पीने वाले चितपावन ब्राह्मण थे. वो एक महान कवि थे, साहित्यकार थे, लेखक थे.

यह भी पढ़िएः वीर सावरकर से जुड़े हर सवाल का जवाब यहां जानिए?

सावरकर के रूप अनेक

बाल गंगाधर तिलक उन्हें शिवा जी के समान बताया था. सावरकर के रूप अनेक रहे, वो स्वयं की उलझनों में उलझा एक ऐसा व्यक्तित्व थे जिसका लक्ष्य वातावरण के अनुसार लाभकारी क्षेत्र में बदलता रहा.

महात्मा गांधी की हत्या वो घटना थी जिसने उन्हें काले अंधेरे में धकेल दिया. अदालत ने भले उन्हें बरी कर दिया लेकिन हिंदू, हिंदी, हिंदुस्तान ने कभी भी गांधी जैसी ​शख्सियत की हत्या के ऊपर का स्थान नहीं लिया.

सावरकर को महान साबित करने की कोशिश आरएसएस और बीजेपी की ओर से जारी है, फिर भी सावरकर आज भी भारत में एक पोलराइजिंग फिगर हैं. एक व्यक्ति पर दो विचारधाराएं आज भी विश्वास के आडंबर में गोते लगा रही है.

Zee Hindustan News App: देश-दुनिया, बॉलीवुड, बिज़नेस, ज्योतिष, धर्म-कर्म, खेल और गैजेट्स की दुनिया की सभी खबरें अपने मोबाइल पर पढ़ने के लिए डाउनलोड करें ज़ी हिंदुस्तान न्यूज़ ऐप.  

ट्रेंडिंग न्यूज़