नई दिल्लीः हर तीन वर्ष में आने वाला अधिकमास, जिसे आध्यात्मिक तौर पर पुरुषोत्तम मास भी कहते हैं, कई शुभ फल देने वाला होता है. इस मास के अधिष्ठाता देव श्री हरि विष्णु ही हैं, इसलिए उनका ध्यान, जप-व्रत अनुष्ठान विशेष कृपा देने वाले होते हैं.
भारत भूमि अवतारों की भूमि हैं. गीता में श्री हरि की ओर से आश्वासन दिया गया है कि वह धर्म की हानि होने पर जरूर अवतार लेंगे. भगवान विष्णु के देश भर में कई बड़े छोटे मंदिर हैं. कुछ अत्यंत प्रसिद्ध हैं, तो कुछ की महत्ता उनके विशेष क्षेत्रों में सुवास की तरह फैली हुई है.
दर्शन कीजिए गोरखपुर के श्री विष्णु मंदिर का
मंदिरों की इन्हीं शृंखला में मलमास के शुभ अवसर पर देशभर के कुछ विशेष विष्णु मंदिर के दर्शन जी हिंदुस्तान कराएगा. कोरोना काल में जब घर से निकलना कुछ मुश्किल है, ऐसे में श्री हरि का नाम व उनके मंदिर का स्मरण सकारात्मक ऊर्जा देंगें.
इस क़ड़ी में दर्शन कीजिए गोरखपुर स्थित श्री विष्णु मंदिर के.
यहां स्थित है मंदिर
उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले में गोरखनाथ मंदिर प्रसिद्ध है. इसी से तकरीबन 8 किलोमीटर दूर शहर के बीच में बने स्टेशन के दूसरी ओर स्थित है असुरन चौक. असुरन चौराहे से बाबा राघवदास मेडिकल क़ॉलेज रोड की ओर बढ़ें तो महज 200 मीटर की दूरी पर ही है विख्यात श्री विष्णु मंदिर.
मंदिर परिसर एक विस्तृत क्षेत्र है, जिसमें एक विशाल पोखरा भी बना हुआ है. स्थानीय लोग इस पोखर को वैदिक काल में किसी प्राचीन यज्ञ वेदी बताते हैं.
600 साल पुराना है इतिहास
मंदिर भूमि का इतिहास तकरीबन 600 साल पुराना है, लेकिन आधुनिक युग में मंदिर का निर्माण व स्थापना एक सदी पहले की है. मंदिर में भगवान विष्णु की अत्यंत दुर्लभ काले कसौटी पत्थर की प्रतिमा है. जिसे 12वीं सदी के पाल काल खंड की बताया जाता है.
यह प्रतिमा पहले यहां नहीं, बल्कि मझौली राज स्टेट में थी. काल के दुर्भाग्य वश यह गोरखपुर पहुंची थी और लुप्त हो गई थी. समय आने पर यह पूरे वैभव के साथ फिर ऊपर आ गई और आज श्रद्धालु इसके दर्शन करते हैं.
विष्णु प्रतिमा के लिए हुए आध्यात्मिक क्रांति
श्री विष्णु मंदिर के बनने, प्रतिमा के लुप्त होने, मिलने और स्थापित होने का बड़ा ही रोचक इतिहास रहा है. अंग्रेजों से चल रही आजादी की लड़ाई के समानांतर यह एक आध्यात्मिक लड़ाई थी, जिसकी गूंज भारत से लंदन तक हुई,
इसके साथ ही यह एक भारतीय महारानी की भी लड़ाई है, जिसके आगे अंग्रेजों को झुकना पड़ा. इस बीच प्रतिमा लंदन के रॉयल म्यूजियम तक का सफर तय कर चुकी थी.
औरंगजेब की क्रूरता का भी है प्रमाण
मझौली राज स्टेटे में एक अति प्राचीन दीर्घेश्वर नाथ मंदिर विख्यात था. आज मझौली देवरिया स्थित सलेमपुर में एक कस्बा है जो अपने में कई प्राचीन इतिहास व सत्य समेटे हुए है. यहां स्वयंभू भगवान शिव के साथ भगवान विष्णु विराजित थे. हरिहर के एक साथ दर्शन को श्रद्धालु उमड़ते थे.
कहते हैं कि मंदिर को पाल वंशी राजाओं ने बनवाया था. कई सदियां बीतने के बाद औरंगजेब आगरे और दिल्ली की गद्दी पर बैठा. वह दोनों हाथों में तलवार लेकर नृशंसता भरी दौड़ लगा रहा था.
उसके आक्रमण से देशभर के कई मंदिर टूटे और मझौली का दीर्घेश्वरनाथ मंदिर भी इसी की भेंट चढ़ा. नतीजा यह हुआ कि स्वयंभू शिव तो वहां विराजित हैं, लेकिन मंदिर खंडित हो जाने से मूर्ति भी इधर-उधर हो गई. धीरे-धीरे गुमनाम हो गई.
1914 में सामने आई प्रतिमा
समय आगे बढ़ा, न औरंगजेब रहा और ऩ ही उस वक्त के लोग. कंपनी शासन के बहाने भारत धीरे-धीरे अंग्रेजों का गुलाम हो गया. यह बात 1914 की है. गोरखपुर भी तब बहुत विस्तृत नहीं था.
रेलवे स्टेशन के ओर तो आबादी थी, लेकिन दूसरी ओर जिला कारागार (जिसमें बिस्मिल को फांसी दी गई) के अलावा कुछ भी नहीं था. बहुत दूर-दूर कुछ गांव थे और जंगल फैले हुए थे.
प्राचीन है मंदिर स्थित पोखरा
आज जहां असुरन चौक है, वहीं आगे कुछ दूर एक पोखर बना हुआ था. चरवाहे और घसियारे जंगल के इस हिस्से में गाय-बकरी चराने आते थे. घसियारे घास काट ले जाते थे. इनमें से एक गोरख मिस्त्री नाम का चरवाहा हर दिन घास काटने से पहले पोखरे के किनारे पड़े एक काले पत्थर पर अपने खुरुपे की धार तेज किया करता था.
ऐसे हुआ प्रतिमा का प्राकट्य
एक दिन दैवयोग से उसे मन हुआ कि यह इतना बढ़िया पत्थर है जिससे खुरपे की धार तेज हो जाती है, इसे घर ही ले चलना चाहिए. उसने पत्थर को जो कि जमीन में थोड़ी भीतर धंसा हुआ था उसकी मिट्टी खोद डाली ओर पत्थर बाहर निकाला.
पलट कर मिट्टी साफ की तो उसमें करीब तीन फीट की चतुर्भुजधारी विष्णु प्रतिमा उभर आई. भगवान के प्राकट्य की बात फैली और धीरे-धीरे गांव वाले इकट्ठा होने लगे. उस समय अंग्रेज कहीं भी भीड़ जुटने से डरते थे.
अंग्रेजों ने की प्रतिमा पर कब्जे की कोशिश
लिहाजा बात उस समय के कलेक्टर सिलट को पता चली. गोरख प्रतिमा को घर नहीं ले जा सका. सिलट ने प्रतिमा को वहां से उठवाकर नंदन भवन में रखवा दिया.
कुछ ही दिन बाद कलेक्टर ने प्रतिमा को 15 सितम्बर ।914 को जिले के मालखाने में रखवा दिया. प्रतिमा के प्राकट्य की बात समाज के कई सेवकों और धर्मावलंबियों को पता चली.
लखनऊ म्यूजियम में भेज दी गई प्रतिमा
उस वक्त के जमींदार थे राय बहादुर धर्मवीर राय. उन्होंने अन्य कई लोगों के साथ मिलकर प्रयास किया कि भगवान विष्णु की प्रतिमा फिर से नंदन भवन आ जाए. लेकिन अंग्रेज कलेक्टर ने उसे विवादित बताकर प्रतिमा को लखनऊ म्यूजियम में भेजवा दिया. 15 फरवरी, 1915 को यह प्रतिमा लखनऊ अजायबघर में रखवा दी गई और उस पर अंग्रेज अफसरों का पहरा हो गया.
महारानी रानी श्याम सुन्दर कुमारी ने लड़ी लड़ाई
गोरखपुर में भीतर ही भीतर एक धार्मिक आंदोलन भी उठ खड़ा हुआ जो की आजादी की लड़ाई के समानांतर चल रहा था. अब तक मझौली राज स्टेट की महारानी रानी श्याम सुन्दर कुमारी को भी प्रतिमा मिलने की बात पता चल चुकी थी.
प्रतिमा के मिलने और दीर्घेश्वरनाथ से जुड़ाव का इतिहास सामने आने पर उन्होंने इस पूरे आंदोलन का नेतृत्व किया.
रॉयल म्यूजियम लंदन में पहुंचा दी गई विष्णु प्रतिमा
इधर, इस आंदोलन से डरे और मूर्ति के बहुमूल्य होने के लालच में अंग्रेजों ने लखनऊ अजायबघर से भी प्रतिमा को हटा दिया और यह रॉयल म्यूजियम लंदन में पहुंचा दी गई. रानी को इसका पता चलने पर उन्होंने अब कानूनी लड़ाई का सहारा लिया. प्रतिमा को लेकर मझौली स्टेट की महारानी रानी श्याम सुन्दर कुमारी ने पहले सेशन कोर्ट में फिर हाईकोर्ट में अपील की, लेकिन उनकी अपील को ठुकरा दिया गया.
8 मई, 1922 को हुई स्थापना
इसके बाद रानी ने प्रीवी काउंसिल में अपील की जहां फैसला उनके पक्ष में हुआ और भगवान विष्णु की वह प्रतिमा 7 जुलाई 1915 को फिर से गोरखपुर आ सकी. रानी श्याम सुन्दर कुंवरि (कुमारी) ने अपने पति स्व. राजा कौशल किशोर प्रसाद मल्ल की स्मृति में उसी असुरन पोखरे पर एक विशाल मंदिर का निर्माण कराया.
यहां 8 मई, 1922 को भगवान की चतुर्भुजी काले रंग की कसौटी प्रतिमा की मंदिर में स्थापना हुई. इसके बाद से यहां हर शुभ व विशेष अवसर पर श्रद्धालु मंदिर में दर्शन करने आते हैं. कसौटी पत्थर बेहद बहुमूल्य होता है, सिर्फ इसी पत्थर के जरिए हीरे की शुद्धता की जांच हो सकती है.
हर साल होता है भव्य आयोजन
श्री विष्णु मंदिर में प्रत्येक वर्ष श्रीहरि विष्णु महायज्ञ का आयोजन कराया जाता है. साथ ही रामकथा व रामलीला का भव्य आयोजन व मंचन भी किया जाता है. गोरखपुर के इतिहास में गोरखनाथ मंदिर के अलावा विष्णु मंदिर भी हीरे-मोती की तरह दमक रहा है. मलमास में मंदिर में विशेष पूजन किया जाता है.
यह भी पढ़िएः मलमास प्रारंभ, जानिए क्या है हर तीन साल में एक अतिरिक्त माह आने की वजह