मलमास प्रारंभ, जानिए क्या है हर तीन साल में एक अतिरिक्त माह आने की वजह

इस वर्ष श्राद्ध पक्ष और नवरात्र के मध्य तकरीबन एक माह का मलमास या अधिकमास या अधिमास पड़ रहा है. इसकी शुरुआत आज 18 सितंबर से हो रही है. यह अब 16 अक्टूबर तक रहेगा. इसके समाप्त होने के अगले दिन से देवी भगवती के पवित्र नवरात्र की शुरुआत होगी और श्रद्धालु महालया की पूजा करेंगे. 

Written by - Zee Hindustan Web Team | Last Updated : Sep 18, 2020, 09:54 AM IST
    • भगवान विष्णु ने मलमास को दिया अपना दिव्य पुरुषोत्त्म नाम
    • 18 सितंबर से आरंभ होकर 16 अक्टूबर तक रहेगा मलमास
मलमास प्रारंभ, जानिए क्या है हर तीन साल में एक अतिरिक्त माह आने की वजह

नई दिल्लीः भारतीय मनीषा में सिर्फ आध्यात्म और आत्मज्ञान के ही तत्व नहीं हैं, बल्कि इसमें दैनिक स्थिति, रहन-सहन और दिनों की गणना पद्धति भी अत्यंत वैज्ञानिक आधार पर की गई है. इसके साथ ही यह अत्यंत प्राचीन भी है. प्रत्येक वर्ष सर्व पितृ अमावस्या व श्राद्ध के बाद अगले ही दिन शारदीय नवरात्रों का आरंभ होता है, लेकिन इस बार नवरात्र आने में अभी समय है. 

नवरात्र को अभी एक माह का इंतजार
इसकी वजह है कि इस वर्ष श्राद्ध पक्ष और नवरात्र के मध्य तकरीबन एक माह का मलमास या अधिकमास या अधिमास पड़ रहा है. इसकी शुरुआत आज 18 सितंबर से हो रही है. यह अब 16 अक्टूबर तक रहेगा.

इसके समाप्त होने के अगले दिन से देवी भगवती के पवित्र नवरात्र की शुरुआत होगी और श्रद्धालु महालया की पूजा करेंगे. 

इसलिए पड़ता है मलमास
अंग्रेजी कैलेंडर सूर्य वर्ष पर आधारित है. इसके मुताबिक एक सूर्य वर्ष में 365 दिन और करीब 6 घंटे होते हैं. हर चार साल में ये 6-6 घंटे एक दिन के बराबर हो जाते हैं और उस साल फरवरी में 29 दिन रहते हैं. जबकि, हिन्दू पंचांग चंद्र वर्ष के आधार पर चलता है. 

एक चंद्र वर्ष में 354 दिन होते हैं. इन दोनों सूर्य और चंद्र वर्षों के बीच लगभग 11 दिनों का अंतर रहता है. हर तीन साल में ये अंतर 1 महीने के बराबर हो जाता है. इसी अंतर को खत्म करने के लिए हर तीन साल में एक चंद्र मास यानी अधिक मास की व्यवस्था की गई है. अतिरिक्त महीना होने की वजह से इसका नाम अधिक मास है.

एक पौराणिक कथा, ऐसे पड़ा पुरुषोत्तम नाम
विष्णु पुराण में इस कथा का वर्णन किया गया है. सूर्य-चंद्र की परिक्रमा गणना के अनुसार महीनों के दिन निर्धारित कर दिए गए. दोनों के बीच काल गणना में कुछ अंतर हो गया. इसमें सामंजस्य बिठाने के लिए अधिमास की उत्पत्ति की गई. यह चंद्र वर्ष के हिस्से में आया और इस तरह प्रत्येक 3 साल में चंद्रवर्ष के 13 महीने हो गए.

निर्धारित 12 मासों के तो अलग-अलग अधिपति नियुक्त थे, लेकिन इस अधिमास का कोई अधिपति न होने के कारण वह दुखी रहने लगा और यज्ञ-तीर्थ में भाग न मिलने के कारण मलिन भी होता रहा. इस तरह उसका नाम मलमास भी पड़ गया.

फिर वैकुंठ में मलमास को मिला वरदान
इसी तरह दुखी होकर एक दिन वह वैकुंठ पहुंचा और श्रीहरि विष्णु की स्तुति कर अपनी उत्पत्ति का कारण पूछा. अधिमास ने कहा- मेरे इस उद्देश्यहीन जीवन का क्या अर्थ है.

तब श्रीहरि ने उसकी पीड़ा समझकर उसे आश्वासन दिया. उन्होंने कहा- दुखी मत हो अधिमास, मैं खुद को तुम्हारा अधिपति घोषित करता हूं. इस तरह उन्होंने वरदान दिया कि मेरे ही सारे गुण तुम्हारे गुण कहलाए जाएंगे.

वैदिक काल से चली आ रही है पद्धति
भारतीय मनीषा ने खगोलीय वैज्ञानिक विधि से चंद्र और सौर मानकों में सामंजस्य करने के लिए 'अधिमास' या 'मलमास' जोड़ने की विधि का विकास किया. इससे हमारे व्रत, पर्व-उत्सव आदि का जुड़ाव ऋतुओं और चंद्र तिथियों से ही बना रहा.

यह पद्धति वैदिक काल से ही विकास करती आ रही है. पुराने कई आख्यानों में बारह मासों के साथ तेरहवें मास की कल्पना स्पष्टतया प्राप्त होती है.

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