नई दिल्लीः श्राद्ध पक्ष की अष्टमी तिथि अत्यंत पावन व शुभफलदायक मानी गई है. इस दिन राधा अष्टमी से शुरू हुए महालक्ष्मी व्रत का समापन किया जाता है. आज 10 सितंबर गुरुवार को वही तिथि है. कई श्रद्धालु केवल श्राद्ध पक्ष अष्टमी को ही देवी महालक्ष्मी की पूजा करते हैं.
इस दिन देवी के गजलक्ष्मी स्वरूप की पूजा की जाती है और प्रतीक रूप में हाथी का निर्माण किया जाता है. इस व्रत की अलग-अलग क्षेत्रों में कई कथाएं हैं, जिन्हें सुनने सौभाग्य की प्राप्ति होती है.
यह है माता महालक्ष्मी की दिव्य कथा
एक ब्राह्मण था जो अत्यंत निर्धन था. वह विष्णु जी का परम भक्त था. वो विष्णु जी की सच्चे मन से आराधना करता था. एक दिन उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर विष्णु जी ने ब्राह्मण को दर्शन दिए. उन्होंने ब्राह्मण से कहा कि हर रोज सुबह एक स्त्री मंदिर के सामने उपले थापती है.
कल तुम उन्हें अपने घर ले आना. वे और कोई नहीं बल्कि देवी लक्ष्मी है. अगर वो तुम्हारे घर आएंगी तो तुम्हारा घर धन-धान्य से परिपूर्ण हो जाएगा.
बाह्मण ने देवी लक्ष्मी से किया घर चलने का आग्रह
जैसा भगवान विष्णु के कहा था ब्राह्मण ने ठीक वैसा ही किया. वो अगले दिन मंदिर गया और वहां जाकर उस स्त्री यानी देवी लक्ष्मी का इंतजार करने लगा. कुछ ही देर बाद मंदिर में वो स्त्री भी आ गई. ब्राह्मण ने आग्रह किया कि वो उनके घर चलें.
इस पर देवी लक्ष्मी ने ब्राह्मण से कहा कि वो इस तरह किसी के घर नहीं जाती हैं. अगर वो अपने पत्नी के साथ भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि से लेकर आश्विन मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि तक उनका व्रत करोगे तो ही वो प्रसन्न होकर उनके घर आएंगी.
देवी ने बताया व्रत का तरीका
ब्राह्मण ने देवी के कहे अनुसार, 16 दिन का व्रत किया. फिर कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि पर चंद्र को अर्घ्य दिया. जैसा देवी लक्ष्मी ने कहा था ठीक उसी तरह ब्राह्मण ने उत्तर दिशा की तरफ देखकर उन्हें आवाज लगाई. तब देवी लक्ष्मी प्रकट हुई और उन्होंने अपना वचन पूरा किया. इसी दिन से महालक्ष्मी व्रत किया जाता है.
महाभारत काल से भी जुड़ी है कथा
इस संबंध में एक कथा महाभारत काल की भी है, जो कि देवी कुंती, पांडवों और गांधारी से जुड़ी हुई है. एक बार महामुनि व्यास हस्तिनापुर पधारे. महारानी गांधारी और देवी कुंती दोनों ने उन्हें प्रणाम किया और सेवा-सुश्रुसा करके ऐसे व्रत का विधान पूछा जो कि परम कल्याणकारी और कुटुंब का ऐश्वर्य बनाए रखे.
इस पर महामुनि व्यास ने उन्हें देवी महालक्ष्मी के परमरल्याणी स्वरूप गजलक्ष्मी व्रत का विधान बताया और हाथी की पूजा का विशेष फल भी बताया.
जब कुंती महल में किया गया अनुष्ठान
समयानुसार भाद्रपद शुक्ल अष्टमी से गांधारी तथा कुंती अपने-अपने महलों में नगर की स्त्रियों सहित व्रत का आरंभ करने लगीं. इस प्रकार 15 दिन बीत गए. 16वें दिन आश्विन कृष्ण अष्टमी के दिन गांधारी ने नगर की सभी प्रतिष्ठित महिलाओं को पूजन के लिए अपने महल में बुलवा लिया.
माता कुंती के यहां कोई भी महिला पूजन के लिए नहीं आई. साथ ही माता कुंती को भी गांधारी ने नहीं बुलाया. इससे परेशान कुंती उदास हो गईं और पूजन की तैयारी भी नहीं की.
...लेकिन कुंती क्यों हुईं उदास
जब पांचों पांडवों ने मां को ऐसे उदास देखा तो अर्जुन ने उनसे इसका कारण पूछा. बोले, मां आज तो आपके व्रत का समापन है, आपने पूजन की तैयारी क्यों नहीं की?' तब माता कुंती ने कहा- 'पुत्रों, आज महालक्ष्मीजी के व्रत का उत्सव तुम्हारी माता गांधारी के महल में मनाया जा रहा है.
उन्होंने नगर की समस्त महिलाओं को बुला लिया और कौरवों ने मिट्टी का एक विशाल हाथी बनवाया है. सभी महिलाएं उस बड़े हाथी का पूजन करने के लिए उनके महल चली गईं,
पांडवों ने ऐसे दूर की मां की उदासी
वह महिलाएं मेरे यहां नहीं आईं, साथ ही उन्होंने मुझे भी नहीं बुलाया. यह सुनकर अर्जुन ने कहा- 'हे माता! आप पूजन की तैयारी करें और नगर में बुलावा लगवा दें कि हमारे यहां स्वर्ग के ऐरावत हाथी की पूजन होगी. इधर माता कुंती ने नगर में ढिंढोरा पिटवा दिया और पूजा की विशाल तैयारी होने लगी. अर्जुन ने अपने धर्म पिता का स्मरण कर बाण संधान द्वारा ऐरावत का आह्वान किया. ऐरावत देवी लक्ष्मी के भाई भी हैं.
हस्तिनापुर में उतरा स्वर्ग का हाथी ऐरावत
इधर सारे नगर में शोर मच गया कि कुंती के महल में स्वर्ग से इन्द्र का ऐरावत हाथी पृथ्वी पर उतारकर पूजा जाएगा. समाचार को सुनकर नगर के सभी नर-नारी, बालक एवं वृद्धों की भीड़ एकत्र होने लगी. उधर गांधारी के महल में हलचल मच गई.
वहां एकत्र हुईं सभी महिलाएं अपनी-अपनी थालियां लेकर कुंती के महल की ओर जाने लगीं. देखते ही देखते कुंती का सारा महल ठसाठस भर गया.
देवी कुंती ने की ऐरावत की पूजा
माता कुंती ने ऐरावत को खड़ा करने हेतु अनेक रंगों के चौक पुरवाकर नवीन रेशमी वस्त्र बिछवा दिए. नगरवासी स्वागत की तैयारी में फूलमाला, अबीर, गुलाल, केशर हाथों में लिए पंक्तिबद्ध खड़े थे. जब स्वर्ग से ऐरावत हाथी पृथ्वी पर उतरने लगा तो उसके आभूषणों की ध्वनि गूंजने लगी. ऐरावत के दर्शन होते ही जय-जयकार होनी लगी.
इसलिए की जाती है हाथी की पूजा
सायंकाल के समय इन्द्र का भेजा हुआ हाथी ऐरावत माता कुंती के भवन के चौक में उतर आया, तब सब नर-नारियों ने पुष्प-माला, अबीर, गुलाल, केशर आदि सुगंधित पदार्थ चढ़ाकर उसका स्वागत किया. राज्य पुरोहित द्वारा ऐरावत पर महालक्ष्मीजी की मूर्ति स्थापित करके वेद मंत्रोच्चारण द्वारा पूजन किया गया. नगरवासियों ने भी महालक्ष्मी पूजन किया. फिर अनेक प्रकार के पकवान लेकर ऐरावत को खिलाए और यमुना का जल उसे पिलाया गया.
ऐरावत के पूजन से मातालक्ष्मी भी प्रसन्न हुईं और गजलक्ष्मी स्वरूप ने देवी कुंती को ऐश्वर्य का आशीर्वाद दिया. इसक बाद पांडवों के कहने पर मिट्टी के हाथी को भी ऐरावत की पूजा की मान्यता प्रदान की. इसके बाद से परंपरा स्वरूप में मिट्टी का हाथी पूजा जाने लगा.