भीष्म पितामह ने मकर संक्रांति के दिन ही क्यों त्यागे थे प्राण, जानिए यहां

मकर संक्रांति का पर्व शुभता का प्रतीक है. इसके साथ ही यह नवचेतना का पर्व है. भीष्म पितामह इसी शुभ काल में प्राण त्यागना चाहते थे. 

Written by - Zee Hindustan Web Team | Last Updated : Jan 14, 2021, 07:06 AM IST
  • भीष्म पितामह ने की थी मकर संक्रांति की प्रतीक्षा
  • सूर्य के उत्तरायण होने पर त्यागे थे प्राण
भीष्म पितामह ने मकर संक्रांति के दिन ही क्यों त्यागे थे प्राण, जानिए यहां

नई दिल्लीः हस्तिनापुर में आज सुबह से मौन पसरा हुआ था. हालांकि राजभवन के लोगों में एक तेज हलचल देखी जा रही थी. ऐसा लगता था कि जैसे सभी किसी यांत्रिक शक्ति से कार्य कर रहे थे. पांचों पांडव भाई किसी खास प्रयोजन की तैयारी में जुटे थे, लेकिन उनकी चुप्पी इस इस बात का शोर मचा रही थी कि आज हस्तिनापुर शायद अपने सबसे बड़े दुख का भागी बनेगा.

मौन का यह क्रम जारी रहता अगर सहदेव ने आकर इसे तोड़ा न होता. द्वार पर रथ तैयार है बड़े भैया... ये सुनते ही युधिष्ठिर उनकी ओर घूमे और इस दौरान तेजी से अपने आंखों के उन कोरों को पोंछ लिया, जो भविष्य की सोचकर भीग आए थे.

इसलिए पांडव थे दुखी
नहीं सहदेव, हम वहां रथ से नहीं पैदल जाएंगें. हम किसी राजा पर आक्रमण करने या संधि प्रस्ताव लेकर नहीं जा रहा हैं. हम अपने पितामह के पास जा रहे हैं. हम उनके पास जा रहे हैं, जिनकी गोद में मलिन वस्त्र पहने चढ़ जाया करते थे. उनके पास जा रहे हैं, जिन्होंने हम नादानों की लड़ाई में अपने भी हाथ रक्तरंजित कर लिए और अब कुरुक्षेत्र में बाड़ों से बिंधे पड़े हैं. अर्जुन-भीम और नकुल भी इतने में पहुंच गए. हां भैया, आप ठीक कह रहे हैं. जिन्हें बाणों से बेधने का पाप मैंने किया उनके पास रथी बनकर जाया जाए, ये तो न हो सकेगा. पांचों भाई सहमति बनाकर कुरुक्षेत्र की ओर निकल पड़े.

पितामह ने की सूर्य के उत्तरायण होने की प्रतीक्षा
कुरुक्षेत्र, जहां अभी तक माटी में बिखरा खून सूख नहीं पाया था. शवों की दुर्गंध भी नहीं मिटी थी. उसी के एक हिस्से में पितामह पिछले छ मास से शरशैय्या पर थे. वह जीवन के विश्राम से पहले की शांति भोग रहे थे. हर एक श्वांस में अब तक के जीवन को तोल रहे थे.

वह दक्षिणायन सूर्य के उत्तरायण होने की प्रतीक्षा कर रहे थे. इच्छा मृत्यु के वर पाए पितामह यह प्रतीक्षा कर सकते थे इसलिए उन्होंने यह प्रतीक्षा की. पांचों पांडवों को आखिरी बार देखकर उन्हें जीवन का उपदेश दिया. देश के लिए कल्याण का वरदान मांगा. फिर आकाश की ओर एकटक देखने लगे. एकाएक सू्र्य की राशि में परिवर्तन हुआ और भीष्म पितामह के प्राणों ने  देवलोक की राह ली.

शुभता का प्रतीक है मकर संक्रांति
महाभारत के अंतिम अध्याय का यह प्रसंग भारतीय सनातनी परंपरा प्राचीन उन्नत पद्धति की ओर इशारा करता है. मकर संक्रांति का पर्व शुभता का प्रतीक है. इसके साथ ही यह नवचेतना का पर्व है. भीष्म पितामह इसी शुभ काल में प्राण त्यागना चाहते थे, इसीलिए बाणों से बिंधे होने का बाद भी इस तिथि की प्रतीक्षा की थी.  इस दिन से ही सूर्य उत्तरायण होते हैं. इसलिए इस पर्व को उत्तरायणी भी कहा जाता है.  यह ऋतु परिवर्तन का भी सूचक है.  खिचड़ी का सेवन करना और दान करना श्रेयस्कर माना जाता है और इसीलिए उत्तर-मध्य भारत में यह पर्व खिचड़ी कहलाता है.

इस बार है पंचग्रही योग
इस बार मकर संक्रांति पर सूर्य, गुरु, शनि, बुध और चंद्रमा एक साथ मकर राशि में गतिशील होंगे. इससे बन रहे सुयोग को पंचग्रही योग कहते हैं. इस योग में किया गया स्नान-दान, पूजा-पाठ अनंत सुख-समृद्धि कारक होगा. मकर संक्रांति इस बार 14 जनवरी को पड़ रही है.

ग्रह चाल के अनुसार 14 जनवरी को सुबह 8.14 बजे सूर्य धनु राशि से निकलकर मकर राशि में प्रवेश करेंगे. मकर-संक्रांति पर स्नान-दान के लिए सुबह 8:24 बजे से शाम 5:46 बजे तक पुण्य काल रहेगा. सूर्य के इस राशि परिवर्तन काल को ही संक्रांति काल कहा जाता है.  इसी दिन खरमास की समाप्ति होगी. सूर्य भी उत्तरायण होंगें.  माना जाता है कि इस काल में यदि किसी का अपनी आयु पूरी करके निधन हो जाता है वह मोक्ष का अधिकारी बनता है.  

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