मलमास विशेषः गुवाहाटी का हयग्रीव माधव मंदिर, कीजिए अश्वसिर वाले श्रीहरि के दर्शन

भगवान विष्णु के मुख्य व शक्तिशाली अवतारों में से एक अवतार 'हयग्रीव' का भी है. शाब्दिक अर्थ में इस शब्द का मतलब हुआ घोड़े की जैसी गर्दन वाला. 'हयग्रीव माधव मंदिर' गुवाहाटी से 30 किमी की दूरी पर मोनिकूट नाम की एक छोटी-सी पहाड़ी पर हाजो, असम में स्थित है

Written by - Zee Hindustan Web Team | Last Updated : Sep 28, 2020, 12:52 PM IST
    • आसामी शिल्प शैली में ग्रेनाइट पत्थर से निर्मित यह मंदिर हजारों सालों की प्राचीनता को समेटे हुए है
    • कुछ इतिहासकार मानते हैं कि इसे कामरूप के पाल राजवंश ने 10वीं शताब्दी में बनवाया था
    • संभवतया कहा जाता है कि 1583 में राजा रघुदेव नारायण ने इसका निर्माण कराया था.
    • 'हयग्रीव माधव मंदिर' गुवाहाटी से 30 किमी की दूरी पर मोनिकूट पहाड़ी पर स्थित है
मलमास विशेषः गुवाहाटी का हयग्रीव माधव मंदिर, कीजिए अश्वसिर वाले श्रीहरि के दर्शन

नई दिल्लीः गोस्वामी तुलसी दास ने लिखा है हरि अनंत हरि कथा अनंता. यानी जैसे पुरुषोत्तम श्री भगवान विष्णु अनंत है उसी प्रकार उनकी सरस लीलामयी कथा भी भी अनंत प्रकार से कही सुनाई जाती है. अधिकमास में भगवान विष्णु के दर्शन, मनन, पूजन से लाभ होता है. ऐसे में जी हिंदुस्तान के जरिए आज कीजिए हयग्रीव माधव मंदिर के दर्शन. चट्टानी मार्ग पर बना यह प्राचीन मंदिर अत्यंत मनोरम और रमणीक है. 

गुवाहाटी से 30 किमी दूर है मंदिर
भगवान विष्णु के मुख्य व शक्तिशाली अवतारों में से एक अवतार 'हयग्रीव' का भी है. शाब्दिक अर्थ में इस शब्द का मतलब हुआ घोड़े की जैसी गर्दन वाला. 'हयग्रीव माधव मंदिर' गुवाहाटी से 30 किमी की दूरी पर मोनिकूट नाम की एक छोटी-सी पहाड़ी पर हाजो, असम में स्थित है.

आसामी शिल्प शैली में ग्रेनाइट पत्थर से निर्मित यह मंदिर हजारों सालों की प्राचीनता को समेटे हुए है. यहां भगवान विष्णु की पूजा होती है. एक ऊंची चट्टानी पहाड़ी पर हयग्रीव माधव स्थापित हैं, जहां पहुंचने लिए श्रद्धालु एक लंबी ऊंची सीढ़ी चढ़कर जाते हैं.  

10वीं शताब्दी का बताते हैं मंदिर
इतिहास कालखंड के अनुसार इस मंदिर की सही-सही निर्माण की तिथि ज्ञात नहीं है. संभवतया कहा जाता है कि 1583 में राजा रघुदेव  नारायण ने इसका निर्माण कराया था. लेकिन कुछ ऐतिहासिक तथ्य बताते हैं कि राजा ने मंदिर का पुनः जीर्णोद्धार कराया था और पुनः पूजन आरंभ कराया था.

दरअसल यहां इसके साक्ष्य मिले हैं कि उस दौर में आए मुस्लिम आक्रांताओं ने इस मंदिर को क्षति पहुंचाई थी, जिसके निशान हाजो में मिलते हैं. कुछ इतिहासकार मानते हैं कि वास्तव में इसे कामरूप के पाल राजवंश ने 10वीं शताब्दी में बनवाया था. ऐतिहासिक कामरूप में 11वीं शताब्दी में रचित कलिका पुराण में हयग्रीव अवतार की उत्पत्ति व उनकी इस पहाड़ पर स्थापना का वर्णन है

भगवान जगन्नाथ जैसे दिखते हैं हयग्रीव माधव
मंदिर में 'हयग्रीव' के अवतार में स्थापित भगवान विष्णु की पवित्र मूर्ति काफ़ी हद तक पुरी के भगवान जगन्नाथ जैसी दिखती है. इस मंदिर की असम में अत्यधिक मान्यता है और दूर-दूर से भक्तगण भगवान के दर्शनों के लिए यहाँ आते हैं. असम के एक मुख्य त्यौहार 'बिहू' का आम लोगों के मध्य अत्यधिक महत्व है.

इस उत्सव के दौरान मंदिर में अत्यधिक हर्ष और उत्सव का माहौल रहता है. इस स्थल को लेकर बौद्ध अनुयायी भी आस्था रखते हैं. मंदिर पत्थर का बना हुआ है और भीतर हयग्रीव माधव की प्रतिमा है. गर्भगृह में स्थापित मूर्ति कृष्णवर्णीय पत्थर की बनी हुई है. 

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यह है हयग्रीव अवतार की कथा
देवी भागवत औऱ विष्णु पुराण में भी हयग्रीव की कथा का वर्णन होता है. एक असुर हयग्रीव ने अपनी सारी इंद्रियों को वश में करके देवी के तामसिक स्वरूप को प्रसन्न कर लिया. ऐसा करने पर उसने देवी से अमरता का वर मांगा, लेकिन जब देवी ने इन्कार किया तो उसने कहा ठीक है, इतना वर दीजिए कि मेरी मृत्यु हयग्रीव से ही हो. ऐसा वर पाकर असुर अजेय हो गया. 

उसकी निरंकुशता और पापकर्म से दुखी होकर सभी देवता ब्रह्म देव सहित विष्णु लोक पहुंचे. यहां श्रीहरि निद्रा मग्न थे, लेकिन उनके धनुष की प्रत्यंचा तनी हुई थी. ब्रह्मा जी ने भयंकर शब्द करने के उद्देश्य से प्रत्यंचा काट दी, लेकिन डोरी का तना सिरा कटकर झटके से श्रीहरि की गरदन में लगा और वह कट गई. सभी देवता शोक करने लगे. इसके बाद देवी प्रकट हुईं और कहा कि शोक न करो देवताओं. 

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भगवान ने किया असुर का अंत
श्रीहरि के साथ यह प्रकरण उनकी ही प्रेरणा से हुआ है. ब्रह्म देव आप तुरंत ही किसी घोड़े का सिर हरि के धड़ पर रख दें तो उनका तुरंत ही हयग्रीव अवतार हो जाएगा. जैसे ही ब्रह्म देव ने घोड़े का सिर लगाया भगवान हयग्रीव अवतार के तौर पर प्रगट हो गए.

इसके बाद उनका असुर हयग्रीव से भयानक युद्ध हुआ और उन्होंने उसका अंत कर दिया. असुर इसी स्थान पर तामसी तंत्र क्रिया कर रहा था. इसलिए कालांतर में यहां हयग्रीव माधव मंदिर स्थापित हुआ. प्रतिदिन श्रद्धालु यहां दर्शन के लिए पहुंचते हैं. 

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