नई दिल्लीः भगवान कृष्ण ने गीता में कहा जब-जब धर्म की हानि होगी तब-तब वे उसके उत्थान के लिए अवतार लेंगे. इस कथन सिर्फ भगवान कृष्ण या श्रीहरि विष्णु का कथन नहीं है, बल्कि यह उस हर परम सत्ता और परमेश्वर का वचन है जो कि जगत के कल्याण का अधिकारी है.
जिस तरह भगवान विष्णु ने मानव जाति और संसार के कल्याण के लिए 24 अवतार लिए हैं ठीक उसी तरह महादेव भगवान भोलेनाथ ने भी समय-समय पर कई अवतारों को लेकर न सिर्फ समाज का कल्याण किया है, बल्कि मानव जाति के सामने सीख भी रखी है कि उसे क्या करना चाहिए औऱ क्या नहीं. मर्यादा और धर्म के आचरण की स्थापना के लिए भगवान शिव शंकर ने 19 अवतार और रूप चुनें.
मासिक शिवरात्रि 2021 की मौके पर जानिए भगवान शिव के विभिन्न अवतार
वीरभद्र अवतार
भगवान शिव का यह अवतार तब हुआ था जब राजा दक्ष के राज्य में आयोजित यज्ञ में माता सती ने अपनी देह का त्याग किया था. उस वक्त भगवान शिव ने क्रोध में अपने सिर से एक जटा उखाड़ी और उसे रोषपूर्वक पर्वत के ऊपर पटक दिया. उस जटा के पूर्वभाग से महाभंयकर वीरभद्र प्रगट हुए.
शिव के इस अवतार ने शिवजी के ससुर दक्ष के यज्ञ का विध्वंस कर दिया और दक्ष का सिर काटकर उसे मृत्युदंड दिया.
नंदी अवतार
भगवान शंकर सभी जीवों का प्रतिनिधित्व करते हैं. भगवान शंकर का नंदीश्वर अवतार भी इसी बात का अनुसरण करते हुए सभी जीवों से प्रेम का संदेश देता है. नंदी यानी बैल कर्म का प्रतीक है. इसका अर्थ ऐसे समझें कि कर्म ही जीवन का मूल मंत्र है. शिव के नंदी अवतार के बारे जो कथा है उसमें शिलाद मुनि का जिक्र अवश्य आएगा. शिलाद मुनि ब्रह्मचारी थे. वंश समाप्त होता देख उनके पितरों ने शिलाद से संतान उत्पन्न करने को कहा.
शिलाद ने अयोनिज और मृत्युहीन संतान की कामना से भगवान शिव की तपस्या की. तब भगवान शंकर ने स्वयं शिलाद के यहां पुत्र रूप में जन्म लेने का वरदान दिया. कुछ समय बाद भूमि जोतते समय शिलाद को भूमि से उत्पन्न एक बालक मिला. शिलाद ने उसका नाम नंदी रखा. भगवान शंकर ने नंदी को अपना गणाध्यक्ष बनाया. इस तरह नंदी नंदीश्वर हो गए. मरुतों की पुत्री सुयशा के साथ नंदी का विवाह हुआ.
भैरव अवतार
जब आप शिव महापुराण पढ़ेंगे तो जानेंगे कि भैरव को परमात्मा शंकर का पूर्ण रूप बताया गया है. एक बार भगवान शंकर की माया से प्रभावित होकर ब्रह्मा व भगवान विष्णु स्वयं को श्रेष्ठ मानने लगे. तब वहां तेज-पूंज के बीच से एक आकृति दिखाई दी जो किसी पुरुष की थी. उन्हें देखकर ब्रह्माजी ने कहा- चंद्रशेखर तुम मेरे पुत्र हो अत: मेरी शरण में आओ. ब्रह्मा की ऐसी बात सुनकर भगवान शंकर को क्रोध आ गया.
उन्होंने उस पुरुष की उस आकृति को उनकी शक्तियां का आभास कराया और बताया कि वो प्रकाश पूंज चंद्रशेखर नहीं बल्कि साक्षात कालराज हैं. भगवान शंकर से ऐसा वरदान प्राप्त कर कालभैरव ने अपनी अंगुली के नाखून से ब्रह्मा के पांचवें सिर को काट दिया. ब्रह्मा का पांचवां सिर काटने के कारण भैरव ब्रह्म-हत्या के पाप से दोषी हो गए. बाद में भगवान शिव के दिशा निर्देश पर काशी में भैरव को ब्रह्महत्या के पाप से मुक्ति मिली. इसके बाद से काशीवासियों के लिए भैरव की भक्ति अनिवार्य हो गई है.
अश्वत्थामा अवतार
महाभारत के अनुसार पांडवों के गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा काल, क्रोध, यम और भगवान शंकर के अंशावतार थे. आचार्य द्रोण ने भगवान शंकर को पुत्र रूप में पाने की लिए घोर तपस्या की थी और भगवान शिव ने उन्हें वरदान दिया था कि वे उनके पुत्र के रूप में अवतार लेंगे. समय आने पर सवन्तिक रुद्र ने अपने अंश से द्रोण के बलशाली पुत्र अश्वत्थामा के रूप में अवतार लिया. ऐसी मान्यता है कि अश्वत्थामा अमर है. शिवमहापुराण के अनुसार अश्वत्थामा आज भी जीवित हैं और वो गंगा के किनारे निवास करते हैं किंतु उनका निवास कहां हैं यह नहीं बताया गया है.
देखा जाए तो अश्वत्थामा भगवान भोलेनाथ का सबसे कठिन अवतार है. अश्वत्थामा की कल्पना ही वीभत्स स्वरूप के साथ की गई थी. किसी अन्य प्राणी को पाप भोगने का इतना बड़ा कष्ट न सहना पड़े, इसलिए मानव कल्याण के लिए खुद भोलेनाथ ने यह अवतार लिया. वास्तव में अश्वत्थामा का जीवन हमें बताता है कि शक्तियों का दुरुपयोग नहीं करना चाहिए.
ऋषि दुर्वासा अवतार
भगवान शंकर के विभिन्न अवतारों में ऋषि दुर्वासा का अवतार भी प्रमुख है. सनातन धर्म के अनुसार सती अनुसूइया के पति महर्षि अत्रि ने ब्रह्मा के निर्देश पर पत्नी सहित ऋक्षकुल पर्वत पर पुत्रकामना से घोर तप किया. उनके तप से प्रसन्न होकर ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों उनके आश्रम पर आए.
उन्होंने महर्षि को वरदान दिया कि उन तीनों के अंश से महर्षि को तीन पुत्र होंगे जो तीनों लोक में विख्यात होने के साथ-साथ अपने माता-पिता का यश बढ़ाने वाले भी होंगे. समय आने पर ब्रह्माजी के अंश से चंद्रमा उत्पन्न हुए. विष्णु के अंश से श्रेष्ठ संन्यास पद्धति को प्रचलित करने वाले दत्तात्रेय उत्पन्न हुए और रुद्र के अंश से मुनिवर दुर्वासा ने जन्म लिया.
हनुमान अवतार
भगवान शिव का हनुमान अवतार सभी अवतारों में श्रेष्ठ माना गया है. इस अवतार में भगवान शंकर ने एक वानर का रूप धरा था. शिवमहापुराण के अनुसार देवताओं और दानवों को अमृत बांटते हुए विष्णुजी के मोहिनी रूप को देखकर लीलावश शिवजी ने काम में आतुर होकर वीर्यपात कर दिया.
सप्तऋषियों ने उस वीर्य को कुछ पत्तों में संग्रहित कर लिया. समय आने पर सप्तऋषियों ने भगवान शिव के वीर्य को वानरराज केसरी की पत्नी अंजनी के कान के माध्यम से गर्भ में स्थापित कर दिया जिससे अत्यंत तेजस्वी और प्रबल पराक्रमी महावीर हनुमान उत्पन्न हुए.
ब्रह्मचारी अवतार
दक्ष के यज्ञ में प्राण त्यागने के बाद जब सती ने हिमालय के घर जन्म लिया तो शिवजी को पति रूप में पाने के लिए घोर तप किया. पार्वती की परीक्षा लेने के लिए शिवजी ब्रह्मचारी का वेष धारण कर उनके पास पहुंचे. पार्वती ने ब्रह्मचारी को देख उनकी विधिवत पूजा की.
जब ब्रह्मचारी ने पार्वती से उसके तप का उद्देश्य पूछा और जानने पर शिव की निंदा करने लगे. उन्होंने शिव को श्मशानवासी और कापालिक भी कहा. यह सुन पार्वती को बहुत क्रोध आया. इससे पहले की देवी पार्वती उस ब्रह्मचारी को कुछ श्राप देती शिव अपने असली रूप में आ गए. पार्वती की भक्ति और प्रेम को देखकर ही शिव ने उन्हें अपना वास्तविक स्वरूप दिखाया.
यक्ष अवतार
शिवजी ने देवताओं के अनुचित और मिथ्या अभिमान को दूर करने के लिए यक्ष अवतार धारण किया था. देवताओं और असुरों ने जब समुद्रमंथन किया था तब भयंकर विष निकला था. भगवान शंकर ने उस विष को ग्रहण कर अपने कण्ठ में रोक लिया. इसके बाद अमृत कलश निकला. अमृतपान करने से सभी देवता अमर तो हो गए साथ ही उनहें अभिमान भी हो गया कि वे सबसे बलशाली हैं.
देवताओं के इसी अभिमान को तोडने के लिए शिवजी ने यक्ष का रूप धारण किया और देवताओं के आगे एक तिनका रखकर उसे काटने को कहा. अपनी पूरी शक्ति लगाने पर भी देवता उस तिनके को काट नहीं पाए. तभी आकाशवाणी हुई कि यह यक्ष समस्त अहंकार के विनाशक भगवान शंकर हैं. सभी देवताओं ने भगवान शंकर की स्तुति की तथा अपने अपराध के लिए क्षमा मांगी. देवों के देव महादेव की महिमा अपरंपार है. इनकी शरण में आए भक्तों को महादेव की विशेष कृपा मिलती है.
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