अब शंकराचार्य जी ने भी कहा भारत बने हिन्दू-राष्ट्र

हिन्दू-राष्ट्र की मांग किसी भी तरह से अनुचित नहीं है, कम से कम इतना तो स्पष्ट हो गया पुरी के शंकराचार्य की इस मांग से   

Written by - Parijat Tripathi | Last Updated : Mar 5, 2020, 01:01 AM IST
    • पुरी के शंकराचार्य ने भी हिन्दू राष्ट्र की मांग की
    • ''हिन्दुओं के लिए दुनिया में कोई देश नहीं''
    • ''संयुक्त राष्ट्र को ये उत्तरदायित्व निभाना चाहिए''
    • ''मुस्लिम्स का भी पुनर्वास इसी पद्धति से होना चाहिए''
    • ''पूरी तैयारी के बाद लाना चाहिए था नागरिकता क़ानून''
अब शंकराचार्य जी ने भी कहा भारत बने हिन्दू-राष्ट्र

नई दिल्ली. जब कोई नेता, चाहे वह राजनीति के क्षेत्र का हो या धर्म क्षेत्र से हो, कोई बात कहता है तो उसमें जनमत की ध्वनि होती है. शंकाराचार्य ने वही कहा जो उचित है विश्व में भारत दुनिया के सबसे अधिक हिन्दुओं का स्थान है तो इसे वास्तव में हिन्दू-स्थान बनाया जाना चाहिए.

 

''हिन्दुओं के लिए दुनिया में कोई देश नहीं''

पुरी के शंकराचार्य स्वामी श्री निश्चलानंद सरस्वती ने कहा कि भारत को हिन्दू-राष्ट्र बनाया जाना चाहिए. अपनी इस मांग को तर्क का आधार देते हुए पुरी में गोवर्धन मठ स्थित अपने निवास में शंकराचार्य ने कहा कि दुनिया के कुल 204 देशों में से कई देशों को मुस्लिम और ईसाई देश घोषित किया गया है, जबकि हिंदुओं के लिए इस तरह का कोई देश नहीं है.

 ''संयुक्त राष्ट्र को ये उत्तरदायित्व निभाना चाहिए''

पुरी के शंकराचार्य ने कहा कि आज जब दुनिया में कोई हिन्दू-राष्ट्र नहीं हैं, तब संयुक्त राष्ट्र को चाहिए कि वह पहले चरण में भारत, नेपाल और भूटान को हिन्दू-राष्ट्र घोषित करे. यह संयुक्त राष्ट्र की ही जिम्मेदारी है. उन्होंने आगे कहा है कि किसी भी देश में पीड़ित किये जा रहे हिन्दुओं को इन तीन देशों में पुनर्वासित किया जाना चाहिए. 

''मुस्लिम्स का भी पुनर्वास इसी पद्धति से होना चाहिए''

पुनर्वास का यही फार्मूला शंकराचार्य ने मुसलमानो के लिए भी प्रस्तुत किया. उनका कहना है कि अगर  कोई मुस्लिम किसी देश में खुद को प्रताड़ित महसूस करता है और वह उस देश को छोड़ना चाहता है, तो उसे दूसरे किसी भी मुस्लिम राष्ट्र में पुनर्वासित किया जाना चाहिए. 

पूरी तैयारी के  बाद लाना चाहिए था नागरिकता क़ानून 

उन्होंने देश में CAA के नाम पर हो रहे उपद्रवों पर टिप्पणी की कि यह क़ानून तो बहुत ज़रूरी है किन्तु इसे इस हिंसा और अशांति से बचाने के लिए पहले उचित परामर्श किया जाता और चर्चा के माध्यम से लोगों को जागरूक करने के बाद लाया जाता तो शायद आज ऐसी स्थिति न आती. 

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