नई दिल्लीः चैत्र कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को पापमोचिनी एकादशी के नाम से जाना जाता है. सनतान परंपरा के अनुसार वैसे तो सभी एकादशी भगवान विष्णु को प्रिय है, लेकिन पापमोचिनी एकादशी के कारण ही उन्हें तारणहार का नाम मिला है. इस दिन का व्रत-पूजन करने से भगवान विष्णु प्रसन्न होते हैं और अनजाने व भूलवश किए गए पापों से मुक्त कर देते हैं. इस व्रत का अनुष्ठान आज (19 मार्च) व कल (20 मार्च) दोनों दिन किया जा सकता है. दोनों ही तिथियां एकादशी हैं.
यह है इस व्रत की दिव्य कथा
इस व्रत की पावन कथा खुद श्रीकृष्ण ने अर्जुन को सुनाई थी. उन्होंने बताया कि काफी समय पहले धरती पर राजा मान्धाता चक्रवर्ती सम्राट हुए थे. वह सजगता से राज-काज करते और प्रजा का भी हर संभव ध्यान रखते थे. उनके राज्य में सामान्यतः किसी को कोई कष्ट नहीं था और प्रजा भी सुख से थी और अपने राजा के हित के लिए ही प्रार्थना करती थी. राजा मान्धाता राज्य के अलावा आत्मिक उन्नति, आध्यात्मिक चिंतन के लिए भी समय देते थे और धर्म चर्चा के लिए ऋषियों के चरणों में बैठे रहते थे.
लोमष ऋषि से पूछा अन्जाने में हुए पाप का निवारण
एक बार उन्होंने लोमश ऋषि से जानना चाहा कि व्यक्ति जो अनजाने में पाप कर देता है, वह उससे कैसे मुक्त हो सकता है? उन्हें किस तरह यह पाप का फल भोगना होता है और कब तक? इससे मुक्ति का उपाय क्या है? इसके अलावा उन्होंने वह सरल विधि भी पूछी जिससे की प्रजा को भी इसके महत्व के बारे में बताया जा सके.
इस पर लोमश ऋषि ने पापमोचनी एकादशी व्रत के महत्व के बारे में उनको विस्तार से बताया. इस दौरान लोमश ऋषि ने राजा मान्धाता को एक पौराणिक कथा सुनाई.
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च्यवन ऋषि के पुत्र की कथा
च्यवन ऋषि के पुत्र मेधावी चैत्ररथ नाम के सुन्दर वन में तपस्या कर रहे थे. एक दिन अप्सरा मंजुघोषा वहां विहार के लिए पहुंची और मेधावी को देखकर उन पर मोहित हो गई. इसके बाद वह मेधावी को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए कई प्रकार के प्रयत्न करने लगी. संयोगवश कामदेव भी वहीं से होकर गुजर रहे थे. मंजुघोषा को परिश्रम करते देखा तो उसकी भावनाओं को समझकर उसकी मदद करने लगे. इसके परिणामस्वरूप मेधावी मंजुघोषा पर आकर्षित हो गए और दोनों काम क्रिया में मग्न हो गए. इस वजह से मेधावी महोदव की तपस्या करना ही भूल गए.
जब मेधावी को हुआ भूल का अहसास
काफी वर्ष व्यतीत हो जाने के बाद मेधावी को अपनी गलती का एहसास हुआ. वह भगवान शिव की आराधना से पूर्णत: विरक्त हो गए थे. उन्होंने अप्सरा मंजुघोषा को इसका कारण माना और उसे पिशाचिनी होने का श्राप दे दिया. मंजुघोषा दुखी हो गईं, उसने मेधावी से अपनी गलतियों के लिए क्षमा मांगी. इस पर उन्होंने मंजुघोषा को चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का व्रत करने का सुझाव दिया. मेधावी के बताए अनुसार अप्सरा मंजुघोषा ने चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का व्रत रखा, जिसके प्रभाव से उसके सभी पाप नष्ट हो गए और उसे पिशाच योनी से मुक्ति भी मिल गई.
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ऋषि पुत्र ने भी यह व्रत किया
मंजूघोषा स्वर्ग चली गई, लेकिन काम वासना के कारण मेधावी का तेज नष्ट हो गया था. वह ग्लानि का भाव लिए ऋषि च्यवन के पास पहुंचे. उनके पिता ऋषि च्यवन पुत्र की इस अवस्था से चिंतित हुए और इसका कारण जान लिया. तब ऋषि ने कहा कि काम वासना के कारण तुम्हारा तेज नष्ट हुआ और इसके अलावा श्राप देने से भी तुम्हारे पुण्य की क्षति हुई थी. तुम भी अपने तेज की प्राप्ति के लिए चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का व्रत रखा. इससे तुम्हारे भी पाप नष्ट हो जाएंगे और अपना खोया तेज पुन: प्राप्त कर सकोगे.
दोबारा पापकर्म न करने का लें संकल्प
इस उपवास को करने से ब्रह्म हत्या करने वाले, चोरी करने वाले, मद्यपान व जुआ खेलने वाले, कुवचन कहने वालों के पाप हर जाते हैं. लेकिन नियम यही है कि पाप कर्म को दोबारा न किए जाने का संकल्प लेते हुए ही भक्तिभाव से व्रत करें. इस व्रत का यह अर्थ बिल्कुल नहीं है कि आप पाप करते रहे हैं और हर बार पाप मोचिनी एकादशी का व्रत करते रहें.