नई दिल्लीः आज पूरा विश्व कोरोना की महामारी से जूझ रहा है. इस वायरस ने लोगों को घरों में कैद रहने के लिए मजबूर कर दिया है और व्यापार ठप कर दिया है. कुल मिलाकार हाहाकर मचा हुआ है. ऐसी ही स्थिति कुछ दशक पहले भी थी, जब चेचक ने महामारी का रूप लिया था. ऐसे में भारतीय पद्धति के एक त्योहार और व्रत ने लोगों को स्वच्छ जीवन शैली अपनाने के लिए प्रेरित किया था और लोगों के जीवन की रक्षा की थी.
दरअसल चेचक होने के बाद कोई कारगर इलाज नहीं था, लेकिन बचाव के तौर पर ही इसका इलाज किया जा सकता था. यह बचाव था, अधिक से अधिक सफाई. शीतला अष्टमी का व्रत यह प्रेरणा देता है और स्वच्छ जीवन शैली अपनाने के लिए कहता है.
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कौन है शीतला माता
शीतला माता का वर्णन स्कंद पुराण में मिलता है. दरअसल स्कंद पुराण का आधार पारिवारिक जीवन में मां और बच्चों के लालन-पालन के तौर-तरीकों को कथा रूप में कहता है. स्कंद शिव पुत्र कार्तिकेय का एक नाम है और इनकी माता होने के कारण देवी पार्वती स्कंदमाता कहलाती है. यह वही स्वरूप है जिनकी नवरात्र के पांचवें दिन पूजा की जाती है. शीतला माता इन्हीं स्कंद माता की अंश देवी हैं, जो जगत का पालन-पोषण करती हैं.
ठीक वैसे ही जैसे घर में मां बच्चों के स्वास्थ्य-सुरक्षा के लिए सफाई के साथ-साथ भोजन व पोषण का ध्यान रखती हैं. शीतला माता के एक हाथ में झाड़ू है और एक हाथ में कलश है. वह वरदान की मुद्रा में दिखती हैं.
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इस दिन होती है देवी पूजा
चैत्र माह के कृष्णपक्ष की सप्तमी और अष्टमी यानी होली के बाद सातवें या आठवें दिन शीतला माता का व्रत और पूजा की जाती है. जिसे शीतला सप्तमी और शीतलाष्टमी नाम से जाना जाता है. विधान के अनुसार कहीं शीतला सप्तमी तो कहीं शीतला अष्टमी का पूजन होता है. कुछ स्थानों पर देवी की पूजा होली के बाद पड़ने वाले पहले सोमवार या गुरुवार के दिन ही कर ली जाती है.
शीतला माता का उल्लेख स्कंद पुराण में मिलता है. माना जाता है कि इनकी पूजा और यह व्रत करने से चेचक एवं अन्य तरह की बीमारियां और संक्रमण नहीं होता है.
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माता को लगाया जाता है बासी पकवानों का भोग
शीतला माता का यह अकेला व्रत ऐसा है, जिसमें बासी भोजन का भोग लगाया जाता है. प्रसाद के तौर पर भी इसमें शीतल यानी ठंडा भोजन किया जाता है. इस व्रत पर एक दिन पूर्व बनाया हुआ भोजन करने की परंपरा है. इसलिए इस व्रत को बसौड़ा या बसियौरा भी कहा जाता है. माना जाता है कि ऋतुओं के बदलने पर खान-पान में बदलाव किया जाता है. इसलिए ठंडा भोजन करने की परंपरा बनाई गई है.
धर्म ग्रंथों के अनुसार शीतला माता की पूजा और इस व्रत में ठंडा भोजन करने से संक्रमण एवं अन्य तरह की बीमारियां नहीं होती. ठंडा भोजन रासायनिक तौर पर शरीर और जठराग्नि को आने वाले गर्म दिनों के लिए तैयार करता है, ताकि वातावरण के अनुसार भोजन व पेट की अम्लता का मिलान हो जाए.
इस बार 16 मार्च को शीतला सप्तमी, 17 को अष्टमी की करें पूजा
शीतला माता की पूजा और व्रत के लिए चैत्र माह के कृष्णपक्ष की सप्तमी तिथि श्रेष्ठ बताई गई है. कहीं-कहीं अष्टमी तिथि पर भी शीतला माता का व्रत और पूजा की जाती है. इसलिए इस बार ये तिथियां 16 और 17 मार्च को रहेंगी. सप्तमी तिथि के स्वामी सूर्य और अष्टमी के देवता रूद्र होते हैं. दोनों ही उग्र देव होने से इन दोनों तिथियों में शीतला माता की पूजा की जा सकती है.
व्रत का संदेशः सफाई से दूर होगा संक्रमण, कोरोना से भी बचाव
कोरोना वायरस के कहर का अभी कोई इलाज नहीं है, लेकिन इसके बचाव को ही अभी तक इसका इलाज बताया जा रहा है. ऐसे में स्वच्छता रखना ही एकमात्र उपाय है. चेचक का रोग भी गंदगी और वातावरण के संक्रमण काल से होने वाला रोग है. यह व्हेरोला नाम के विषाणु से फैलता है और गंदगी के कारण इसका तेजी से प्रसार होता है.
कोरोना का भी प्रसार तेज संपर्क से हो रहा है और स्थानीय स्वच्छता इसकी रोकथाम में मददगार साबित होगी. जरूरत है कि भारतीय पद्धति और विधान को सही ढंग और अर्थ में अपनाकर जीवन रक्षण की. शीतला माता का व्रत यही संदेश देता है.