जामिया हिंसा पर फैल रहे झूठ को बेनकाब करने वाली रिपोर्ट

जामिया मिलिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी एक बार फिर विवादों में है. जिसे पीछे की वजह 15 दिसंबर 2019 की शाम का एक और वीडियो है, जो आज सोशल मीडिया पर Jamia Coordination Committee के नाम पर बने ट्विटर अकाउंट द्वारा जारी किया गया. 45 सेकेंड के वीडियो में दिल्ली पुलिस के जवान लाइब्रेरी में मौजूद छात्रों की पिटाई करते हुए दिखाई दे रहे है. लेकिन क्या है इस वीडियो की सच्चाई हम आपको बताते हैं.

Written by - Ayush Sinha | Last Updated : Feb 16, 2020, 04:22 PM IST
    1. दंगाइयों को बचाने के लिए जामिया का 'वीडियो गेम'?
    2. 63 दिन बाद क्यों रिलीज़ हुआ पिटाई का वीडियो?
जामिया हिंसा पर फैल रहे झूठ को बेनकाब करने वाली रिपोर्ट

नई दिल्ली: Jamia Coordination Committee ने ट्विटर पर एक वीडियो जारी किया है. जिसे देखकर पहली नजर में शायद हर कोई यही कहेगा कि ये तस्वीर पुलिस की ज्यादती या बर्बर कार्रवाई की तस्दीक करती है. आखिर क्यों पुलिस ने अचानक लाइब्रेरी में पढ़ रहे छात्रों पर लाठियां बरसानी शुरू कर दीं. 

इस वीडियो को ध्यान से देखें...

वीडियो देखकर ऐसा लग रहा होगा कि बेचारे छात्रों पर पुलिस तानाशाही रवैया अपना रही है, इन पर जुल्म हो रहा है. आपके सवालों के जवाब दिये जाएं उससे पहले आपको फ्लैशबैक में 63 दिन पुरानी 15 दिसंबर 2019 की कुछ और तस्वीरें दिखाना जरूरी हैं.

जामिया हिंसा पर इन 6 खुलासों से हर झूठ बेनकाब

15 दिसंबर 2019 ही वो दिन था जब CAA और NRC के खिलाफ दिल्ली की जामिया मिलिया यूनिवर्सिटी का प्रदर्शन हिंसक हो गया था. तस्वीरें गवाह हैं कि कैसे खुद को सभ्य समाज का छात्र बताने वाले कुछ गुंडे बिल्कुल दंगाई की तरह बर्ताव कर रहे थे. विरोध प्रदर्शन के नाम पर पहले इन दंगाइयों ने पुलिस पर पथराव किया और फिर 4-4 सार्वजनिक बसों, निजी वाहनों के अलावा 2 पुलिस वैन को भी आग लगा दी थी. 

 

हिंसक भीड़ को तितर-बितर करने के लिए मजबूरी में पुलिस ने बैटन और आंसूगैस के गोले का इस्तेमाल किया, लेकिन गोलीबारी नहीं की. पुलिस की जवाबी कार्रवाई से प्रदर्शनकारी बौखलाए गए. कई यूनिवर्सिटी कैंपस में छिप गए. इसी के बाद आगजनी के लिए जिम्मेदार भगौड़ों को पकड़ने के लिए पुलिस जामिया यूनिवर्सिटी कैंपस में घुसी थी. जहां उसपर बर्बरता के आरोप लगते रहे हैं.

63 दिन बाद क्यों रिलीज़ हुआ पिटाई का वीडियो?

Jamia Coordination Committee द्वारा जारी किये लाइब्रेरी का ये वीडियो हिंसा के 63 दिन बाद जारी कर पुलिस की कार्रवाई पर सवाल उठाये हैं. लेकिन अब ज़ी मीडिया इस वीडियो की परत दर परत सच्चाई आपको बताएगा. क्योंकि अपनी दुकान चलाने वालों को बेपर्दा करना हमारी जिम्मेदारी है.

सबसे पहले आप वीडियो रिकॉर्ड होने का वक्त पढ़ें. शाम के 6 बजकर 8 मिनट, यानी वो वक्त जब जामिया कैंपस में पत्थरबाज छात्र पुलिस की कार्रवाई से डरकर छिपते फिर रहे थे. इसके अलावा वीडियो में की दाईं ओर बैठे शख्स को देखें. हाव-भाव से सहमा ये छात्र पढ़ने का दिखावा कर रहा है, वो भी बंद किताब सामने रखकर.

इसी दौरान लाइब्रेरी में हलचल होती है और एक छात्र सामने के दरवाज़े से दौड़ता हुआ अंदर आता है. लाइब्रेरी में किसी छात्र की ऐसी तेज एंट्री आजतक शायद ही आपने देखी होगी. हम यकीन से तो नहीं कह सकते लेकिन संभावना है कि लाइब्रेरी में दौड़कर आया ये छात्र पुलिस पर की गई पत्थरबाजी का आरोपी है और उसकी ये कोशिश थी कि वो लाइब्रेरी में पढ़ने का दिखावा कर गिरफ्तारी से बच जाएगा.

अब एक बार फिर वीडियो में दाईं ओर बैठे छात्र को देखें लाइब्रेरी में हलचल होते ही इसने अपने चेहरे को नकाब से ढक लिया. अब सवाल ये है कि कौन छात्र लाइब्रेरी में अपना चेहरा छिपाकर पढ़ाई करता है. ये छात्र अपना चेहरा पुलिस से छिपा क्यों रहा है?

देखिये इसके बाद पुलिस लाइब्रेरी में दाखिल होती है. तो पहले ये छात्र अपनी बंद किताब खोलकर पढ़ने का दिखावा करता है. फिर पुलिस के सवाल पूछने पर तुरंत चेहरे से नकाब नीचे कर माफी की अपील करने लगता है. हालांकि पुलिस का जवान कुछ नहीं सुनता और बतौर एक्शन लाठी बरसा देता है.

दंगाइयों को बचाने के लिए जामिया का 'वीडियो गेम'?

वीडियो सामने आने के बाद दिल्ली पुलिस ने अपनी सफाई भी दी है. पुलिस के मुताबिक वीडियो में कुछ नकाबपोश लोग भी दिख रहे हैं और इस वीडियो की भी जांच की जाएगी.

सबसे बड़ा सवाल ये है कि Jamia Coordination Committee की तरफ से ये वीडियो 15 दिसंबर यानी दंगों की घटना के 63 दिन बाद जारी किया गया है. वीडियो की लंबाई या ड्यूरेशन सिर्फ 45 सेकेंड है और तो और बीच में कुछ सेकेंड की क्लिप गायब यानी एडिटेड है. जाहिर है जामिया यूनिवर्सिटी का प्रशासन किसी पूर्व नियोजित एजेंडे के तहत दंगाइयों का बचाव कर रहा है. इसी जामिया यूनिवर्सिटी की तरफ से दिल्ली पुलिस पर बिना इजाजत कैंपस में घुसने की शिकायत भी दर्ज कराई गई थी. हालांकि उसके छात्र पुलिस और अग्निशमन कर्मियों पर हुई पत्थरबाजी और आगजनी में शामिल थे. इसपर अब तक कुछ कहने से यूनिवर्सिटी प्रशासन बचता रहा है.

जामिया में हुई हिंसा को दंगाइयों को बचाने का फॉर्मूला तैयार किया जा रहा है, अगर ऐसा नहीं है तो वीडियो की काट-छाट करके उसे सामने नहीं लाया जाता. ऐसे में हम डंके की चोट पर कुछ सवाल पूछना चाहते हैं.

जामिया यूनिवर्सिटी के वीडियो पर 6 सवाल 

1. लाइब्रेरी में पिटाई का वीडियो एडिट क्यों किया गया?
2. लाइब्रेरी में छात्रों के आकर बैठने वाला वीडियो क्यों छिपाया?
3. लाइब्रेरी में पिटाई का वीडियो 63 दिन बाद क्यों रिलीज़ हुआ?
4. क्या दंगाइयों ने लाइब्रेरी में छात्रों की आड़ में छिपने की कोशिश की?
5. लाइब्रेरी में बैठे लोगों ने पुलिस को देखकर चेहरा क्यों छिपाया?
6. लाइब्रेरी में पुलिस के घुसने से पहले का वीडियो क्यों छिपाया?

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पुलिस की कार्रवाई सही थी या गलत, ये तो जांच का विषय है. लेकिन अब खुद जामिया यूनिवर्सिटी प्रशासन भी सवालों के घेरे में आ गया है कि दंगाइयों को बचाने के लिए जामिया का वीडियो गेम आखिर किस एजेंडे की बदौलत है.

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