Football Team in Olympics: 11 मिनट के खेल ने छीन लिया था ओलंपिक पदक का सपना, स्वर्णिम दौर में अधूरी रह गयी थी कहानी

भारतीय फुटबाल टीम ने आखरी बार 1960 में ओलंपिक में क्वालीफाई किया था. इसके बाद भारतीय फुटबाल को ऐसा ग्रहण लगा कि आज तक भारत कभी भी ओलंपिक में क्वालीफाई नहीं कर सका.

Written by - Adarsh Dixit | Last Updated : Jul 11, 2021, 03:31 PM IST
  • दुनियाभर की तरह भारत में फुटबॉल खास पसंद नहीं किया जाता
  • 1960 में भारतीय फुटबॉल टीम मे ओलंपिक क्वालीफाई किया था
Football Team in Olympics: 11 मिनट के खेल ने छीन लिया था ओलंपिक पदक का सपना, स्वर्णिम दौर में अधूरी रह गयी थी कहानी

नई दिल्ली: दुनियाभर के अन्य देशों में फुटबाल को लेकर जितनी दीवानगी फैंस में दिखती है उतनी हिंदुस्तान में नहीं है. समय के साथ फुटबाल को लेकर लोगों की दिलचस्पी कम होती चली गई और इसका प्रभाव टीम के प्रदर्शन पर भी पड़ा. भारतीय फुटबाल टीम ने आखरी बार 1960 में ओलंपिक में क्वालीफाई किया था.

इसके बाद भारतीय फुटबाल को ऐसा ग्रहण लगा कि आज तक भारत कभी भी ओलंपिक में क्वालीफाई नहीं कर सका. फुटबाल में भारत का वर्तमान भले ही सुनहरा न हो लेकिन इसका इतिहास बहुत स्वर्णिम रहा है. हम आपको मेलबर्न ओलंपिक में भारतीय फुटबाल टीम के उस यादगार प्रदर्शन के बारे में बताएंगे जो बाद में कभी दोहराया नहीं जा सका.

1956 में ऑस्ट्रेलिया के मेलबर्न में आयोजित हुए ओलंपिक गेम्स में फुटबाल टीम ने सेमीफाइनल तक का सफर तय किया था. लेकिन टीम इंडिया को चेक गणराज्य से शिकस्त खाकर चौथे स्थान पर ही संतोष करना पड़ा.

1952 में भी हिंदुस्तानी फुटबाल टीम ने क्वालीफाई किया था लेकिन अपेक्षित सफलता नहीं मिली थी. इसके बाद हुए फीफा विश्वकप में टीम ने इकलौती बार प्रवेश प्राप्त किया था लेकिन टीम के खिलाड़ियों के पास जूते न होने की वजह से उन्हें बिना जूतों के मैदान पर नहीं उतरने दिया गया.

इसके 4 साल बाद भारतीय टीम ने मेलबर्न में फीफा वर्ल्डकप के इस अपमान का बदला लिया. बड़ी बड़ी टीमों के अंहकार तो तोड़ते हुए फुटबाल टीम ने सेमीफाइनल तक का सफर तय किया.

मेलबर्न में 1956 के ओलंपिक में, भारत ने टूर्नामेंट के सेमीफाइनल में पहुंचने के साथ ही खेलों में अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया.  टीम का नेतृत्व समर बनर्जी और भारत के सबसे सफल कोच सैयद अब्दुल रहीम ने किया था जिन्होंने 1952 और 1960 के ओलंपिक में टीम को कोचिंग दी थी.

भारत प्रारंभिक मैच खेले बिना पहले दौर में पहुंच गया था क्योंकि हंगरी के ओलंपिक से नाम वापस ले लेने की वजह से इंडियन टीम को वॉकओवर मिल गया था.

टीम ने मेजबान ऑस्ट्रेलिया को 4-2 से करारी मात देकर ओलंपिक के सेमीफाइनल में जगह बनाई और ओलंपिक इतिहास में ऐसा करने वाली पहली एशियाई टीम बन गई.

ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ मैच में नेविल डिसूजा ने हैट्रिक बनाई. उन्होंने पहले हाफ में नौवें और 33वें मिनट में दो गोल किए. पहला कप्तान समर बनर्जी के शॉट से प्रतिद्वंद्वी के पद पर वापसी के लिए एक इशारा था. फिर 33वें मिनट में डिसूजा ने पी.के. बनर्जी जिन्होंने दाहिने फ्लैंक से गेंद को नेट में भेजा.

50वें मिनट में दूसरे हाफ में तीसरा गोल किया गया जब बनर्जी ने भारतीय स्ट्राइकर मुहम्मद कन्नयन और ऑस्ट्रेलियाई गोलकीपर रॉन लॉर्ड के बीच हाथापाई से प्राप्त एक मुक्त गेंद को बदल दिया.

चौथा भारतीय गोल कृष्णा किट्टू ने 80वें मिनट में किया. मेजबान टीम के लिए ब्रूस मोरो ने दो गोल दागे. भारत सेमीफाइनल में यूगोस्लाविया से 4-1 से हारकर फाइनल में पहुंचने में नाकाम रहा. पहले हाफ में कोई गोल नहीं हुआ.

भारत के लिए मैच में डिसूजा ने 52वें मिनट में पहला गोल किया, लेकिन अगले 15 मिनट में यूगोस्लाविया ने 54वें, 57वें और 65वें मिनट में तीन गोल दागे. इन 11 मिनटों ने सभी हिंदुस्तानियों का दिल तोड़ दिया और भारत ओलंपिक खेलों में इतिहास रचने से चूक गया. हालांकि इसके बाद भारतीय डिफेंडर मुहम्मद सलाम से भी एक गलती हो गई और सेमीफाइनल के 78वें मिनट में ही यूगोस्लाविया की जीत सुनिश्चित हो गई.

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हार के बाद, भारत ने कांस्य पदक मैच में बुल्गारिया का सामना किया जहां उसे फिर से 3-0 के स्कोर से हार गए.  चार गोल के साथ नेविल डिसूजा खेलों के उस सीजन में यूगोस्लाविया के टोडर वेसेलिनोविच और बुल्गारिया के दिमितार स्टोयानोव के साथ संयुक्त शीर्ष स्कोरर बने.

इसके बाद 1960 में रोम में हुए ओलंपिक गेम्स में भारतीय फुटबॉल टीम को छठे स्थान से संतोष करना पड़ा. 1960 से लेकर आज तक कभी भी भारतीय फुटबॉल टीम ओलंपिक के लिए क्वालीफाई नहीं कर सकी.

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