ऐसे करें प्रदोष व्रत मिलेगा मनवांछित फल, जानें- नियम और विधि

धार्मिक दृष्टिकोण से आप जिस दिन भी प्रदोष व्रत रखना चाहते हों, उस वार के अंतर्गत आने वाली त्रयोदशी को चुनें और उस वर के लिए निर्धारित कथा पढ़ें और सुनें.

Written by - Zee Hindustan Web Team | Last Updated : May 27, 2022, 06:44 AM IST
  • प्रदोष व्रत से जुड़ी कुछ जरूरी बातें
  • जानें व्रत के नियम और उद्यापन की विधि
ऐसे करें प्रदोष व्रत मिलेगा मनवांछित फल, जानें- नियम और विधि

नई दिल्लीः शास्त्रों के अनुसार महीने की दोनों पक्षों की त्रयोदशी तिथि में शाम के समय को प्रदोष कहा गया है. ऐसी मान्यता है कि भगवान शिव प्रदोष के समय कैलाश पर्वत स्थित अपने रजत भवन में नृत्य करते हैं.

- प्रदोष व्रत करने के लिए सबसे पहले आप त्रयोदशी के दिन सूर्योदय से पहले उठ जाएं.
- स्नान आदि करने के बाद आप साफ वस्त्र पहन लें.
- उसके बाद आप बेलपत्र, अक्षत, दीप, धूप, गंगाजल आदि से भगवान शिव की पूजा करें.
- इस व्रत में भोजन ग्रहण नहीं किया जाता है.
- पूरे दिन का उपवास रखने के बाद सूर्यास्त से कुछ देर पहले दोबारा स्नान कर लें और सफेद रंग का वस्त्र धारण करें.
- आप स्वच्छ जल या गंगाजल से पूजा स्थल को शुद्ध कर लें.
- अब आप गाय का गोबर ले और उसकी मदद से मंडप तैयार कर लें.
- पांच अलग-अलग रंगों की मदद से आप मंडप में रंगोली बना लें.
- पूजा की सारी तैयारी करने के बाद आप उतर-पूर्व दिशा में मुंह करके कुशा के आसन पर बैठ जाएं.
- भगवान शिव के मंत्र ऊँ नमरू शिवाय का जाप करें और शिव को जल चढ़ाएं.

धार्मिक दृष्टिकोण से आप जिस दिन भी प्रदोष व्रत रखना चाहते हों, उस वार के अंतर्गत आने वाली त्रयोदशी को चुनें और उस वर के लिए निर्धारित कथा पढ़ें और सुनें.

प्रदोष व्रत का उद्यापन

- जो उपासक इस व्रत को ग्यारह या फिर 26 त्रयोदशी तक रखते हैं, उन्हें इस व्रत का उद्यापन विधिवत तरीके से करना चाहिए.
- व्रत का उद्यापन आप त्रयोदशी तिथि पर ही करें.
- उद्यापन करने से एक दिन पहले श्री गणेश की पूजा की जाती है. और उद्यापन से पहले वाली रात को कीर्तन करते हुए जागरण करते हैं.
- अगले दिन सुबह जल्दी उठकर मंडप बनाना होता है और उसे वस्त्रों और रंगोली से सजाया जाता है.
- ऊँ उमा सहित शिवाय नम मंत्र का 108 बार जाप करते हुए हवन करते हैं.
- खीर का प्रयोग हवन में आहूति के लिए किया जाता है.
- हवन समाप्त होने के बाद भगवान शिव की आरती और शान्ति पाठ करते हैं.
- और अंत में दो ब्रह्माणों को भोजन कराया जाता है और अपने इच्छा और सामर्थ्य अनुसार दान दक्षिणा देते हुए उनसे आशीर्वाद लेते हैं.

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