नई दिल्ली: भारत की अर्थव्यवस्था पर भी कोरोना की मार पड़नी तय है. लेकिन दुनिया के कई देशों के मुकाबले भारत मौजूदा स्थिति से उबरने में सक्षम है. लेकिन पहले कोरोना को लेकर जो मौजूदा स्थिति है उस पर नज़र डालना ज़रूरी है.
कोरोना की वजह से आर्थिक मंदी का खतरा
यूएन कॉन्फ्रेंस ऑन ट्रेड एंड डेवलपमेंट का अनुमान है कि कोरोना के चलते विश्व अर्थव्यवस्था को एक लाख करोड़ से दो लाख करोड़ डॉलर का नुकसान होगा. कुछ आर्थिक विशेषज्ञ मानते हैं कि इसके चलते दुनियाभर में मंदी छा सकती है.
अंदाज़ा लगाना मुश्किल है कि इतने बड़े नुकसान की भरपाई में कितना समय लगेगा.
भारत को भी भारी नुकसान की आशंका
संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के मुताबिक कोरोना के चलते भारत को 34.8 करोड़ डॉलर का नुकसान उठाना पड़ेगा. चीन में मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में मंदी के कारण भारत दुनिया की 15 सबसे प्रभावित होने वाली अर्थव्यवस्थाओं में एक होगा.
2019 के आखिरी तिमाही में जीडीपी 4.7% के साथ छह साल के अपने निम्नतम स्तर पर पहुंच गई है और कोरोना के कारण आने वाले समय में अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए कोशिशों को धक्का लग सकता है.
ग्लोबल रेटिंग एजेंसी स्टैंडर्ड एंड पुअर यानी एस एंड पी ने 2020 के लिए भारत की ग्रोथ घटाकर 5.2% कर दी है जबकि चीन की 4.8 से घटाकर 2.9 कर दी है. मूडीज़ ने भी भारत की ग्रोथ रेट 5.3 कर दी है.
आयात निर्यात हुआ प्रभावित
कोरोना को अगर दुनियाभर में जल्द काबू नहीं किया गया तो माना जा सकता है कि भारत के आयात और निर्यात दोनों पर असर पड़ेगा. भारत 45% कंज़्यूमर ड्यूरेबल का आयात चीन से करता है.
सीआईआई के मुताबिक भारत दुनियाभर से इंपोर्ट किए जाने वाले टॉप 20 आयात का 43% चीन से करता है. इनमें मोबाइल हैंडसेट्स, कंप्यूटर, इंटीग्रेटेड सर्किट, खाद, एंटीबायटिक, एयरकंडीशनर के कंप्रेसर,टीवी पैनल जैसे प्रोडक्ट्स का आयात शामिल है.
कोरोना की मार के चलते भारत की तमाम इंडस्ट्री पर असर पड़ना तय है. आयात बंद होने का मतलब है भारत के कई छोटे कारोबार का खात्मा और कर्मचारियों की छंटनी.
हर इंडस्ट्री पर कोरोना की वजह से दबाव
कोरोना की मार तमाम इंडस्ट्री पर पड़ी है...SIAM के मुताबिक भारत की ऑटो कंपनियां 10% कच्चा माल चीन से आयात करती हैं. ज़ाहिर है आयात रुकने पर पैसेंजर व्हेकिल, कमर्शिलय व्हेकिल, थ्री व्हीलर, टू व्हीलर और इलेक्ट्रिकल व्हेकिल के प्रोडक्शन पर औऱ खासकर BS6 व्हेकिल्स के उत्पादन पर काफी असर पड़ेगा.
एयरलाइंस पर सबसे ज़्यादा दबाव है. IATA के मुताबिक दुनियाभर की एयरलाइंस को 11,300 करोड़ डॉलर का नुकसान होने का अनुमान है. भारत की इंडिगो की बुकिंग में 15 से 20% की गिरावट आई है.
होटल इंडस्ट्री पर भी कोरोना का साया साफ देखा जा सकता है. होटल बुकिंग 70 से 75% से गिरकर 20% तक पहुंच चुकी है. जबकि रेस्त्रां के कारोबार में 30-35% की कमी आई है. मॉल में जो रेस्त्रां हैं उनकी स्थिति और भी ज्यादा खराब है. कोरोना के चलते सिनेमाघरों, मल्टीप्लेक्स बंद करने का आदेश काफी भारी पड़ने वाला है.
कई बड़ी फिल्मों की रिलीज़ रोक दी गई है. इनमें जेम्स बॉंड की नो टाइम टू डाई और अक्षय कुमार की सूर्यवंशी शामिल हैं.
गार्मेन्ट और पॉल्ट्री उद्योगों पर भारी असर
देश के गार्मेंट उद्योग पर कोरोना की ज़बर्दस्त मार पड़ी है. वाणिज्य मंत्रालय के मुताबिक 2018-19 में भारत ने एक लाख करोड़ के गार्मेंट का निर्यात किया था. भारत के कुल गार्मेंट निर्यात का एक तिहाई यूरोप को होता है लेकिन WHO के यूरोप को कोरोना का एपीसेंटर घोषित किए जाने के बाद यूरोप से नए ऑर्डर मिलने पर प्रश्नचिह्न लग गया है.
यही नहीं भारत की पोल्ट्री इंडस्ट्री पर भी असर देखा जा रहा है. कोरोना वायरस के ख़ौफ ने चिकन की मांग में करीब 30% की गिरावट ला दी है. हालांकि फूड सेफ्टी रेग्युलेटर ने लोगों को आश्वस्त करने की कोशिश की है कि कोरोना पोल्ट्री से नहीं फैलता लेकिन डर के मारे लोगों ने चिकन खाना कम कर दिया है.
इसकी वजह से 80,000 करोड़ की चिकन इंडस्ट्री को इससे तगड़ा झटका लगा है और इस स्थिति से उबरने में काफी समय लग सकता है. यही नहीं भारत सीफूड का बड़ा निर्यातक है. 2018-19 में भारत ने अमेरिका यूरोपीय संघ और चीन जैसे बाज़ारों को 46,600 करोड़ का सीफूड निर्यात किया था लेकिन कोविड 19 के चलते अब सीफूड के निर्यात पर असर पड़ना तय है.
हालांकि मौजूदा आर्थिक स्थिति में कुछ सेक्टर ऐसे भी हैं जिनके लिए कोरोना अच्छा मौका लेकर आया है जैसे हेल्थ, फार्मा.
कर्मचारियों पर मंडरा रहा है छंटनी का खतरा
जिस तरह दुनियाभर के शेयर बाज़ार गिर रहे हैं.कहा जा सकता है कि बहुत सी कंपनियों के लिए अपने कर्ज़े चुकाना मुश्किल होगा और वो दिवालिया तक हो सकती हैं.या बिक सकती है या उन्हें बचाने के लिए सरकार को दखल देना पड़ेगा.खर्चे कम करने के नाम पर कंपनियां उत्पादन घटा सकती हैं.कर्मचारियों की छंटनी शुरू हो चुकी है. तमाम सेक्टर सरकार से राहत पैकेज देने की मांग कर रहे हैं. अमेरिका की जानी मानी कंपनी बोइंग ने 60 बिलियन डॉलर का बेलआउट पैकेज मांगा है.
क्या है कोरोना का सबक
तो क्या मौजूदा स्थिति से निकलने का रास्ता है. इंडस्ट्री एक्सपर्ट्स की मानें तो बिल्कुल है. एक कहावत है हर चुनौती अपने साथ मौके लेकर आती है. कोरोना कई सबक लेकर आया है. सबसे बड़ा ये कि आत्म निर्भर बनना ज़रूरी है. चीन पर जिस तरह की निर्भरता है उससे इस तरह का खतरा आगे भी आ सकता है.
यही देखते हुए मोदी सरकार ने मेक इन इंडिया कार्यक्रम की शुरुआत की थी ताकि मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा मिले और घरेलू इंडस्टीज़ को पनपने का मौका मिले रोज़गार बढ़े. इसके अच्छे नतीजे देखने को मिल रहे हैं. फिलहाल भारतीय इंडस्ट्रीज़ को अपना उत्पादन बढ़ाकर मांग को पूरा करने पर ज़ोर देना होगा.
कोरोना के साए में 20 मार्च को हुई मोदी कैबिनेट की बैठक में इलेक्ट्रॉनिक्स और फार्मा सेक्टर में भारत को मैन्युफैक्चरिंग हब बनाने की दिशा में बड़े फैसले लिए गए.
आपको बता दें इलेक्ट्रॉनिक्स दूसरा सबसे ज़्यादा इंपोर्ट करने वाला सेक्टर है. इलेक्ट्रॉनिक कॉम्पोनेंट, सेमी कंडक्टर बनाने के साथ ही मैन्युफैक्चरिंग के क्लस्टर बनाने पर फैसला लिया गया. एक्टिव फार्मास्यूटिकल इनग्रेडिएंट यानी एपीआई और फार्मा और मेडिकल डिवाइसेस ज़्यादा से ज्यादा बनाने पर भी फैसला हुआ है.
मोदी सरकार कर रही है कोरोना संकट से निपटने की तैयारी
हालांकि इन सब फैसलों का असर आने वाले सालों में दिखेगा लेकिन सीआईआई के मुताबिक फिलहाल जो स्थिति है उससे भारत निपट लेगा. माना जा रहा है कि रिज़र्व बैंक भी खपत बढ़ाने के लिए ब्याज दरों में कटौती कर सकता है.
कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि अर्थव्यवस्था के लिहाज़ से हालात चुनौतीपूर्ण हैं और इससे उबरने के लिए ये देखना ज़रूरी होगा कि हम कितनी जल्दी कोरोना पर काबू पाते हैं. जनता कर्फ्यू की सफलता ने दिखा दिया है कि कोरोना को मात देने की शुरुआत हो चुकी है और जल्द ही इसके समूल विनाश के साथ ही अर्थव्यवस्था के अच्छे दिन फिर देखने को मिलेंगे.