Republic Day Poem: गणतंत्र दिवस पर बच्चों को सुनाएं ये कविताएं, गूंज उठेंगे भारत माता के जयकारे

Republic Day 2024 Poem: 26 जनवरी को पूरे देश में बड़े ही उल्लास से गणतंत्र दिवस मनाया जाएगा. इस दिन आप बच्चों को कुछ अच्छी कविताएं सुना सकते हैं.

Written by - Zee Hindustan Web Team | Last Updated : Jan 25, 2024, 10:31 PM IST
  • गणतंत्र दिवस को सुनाएं बच्चों को कविता
  • देशप्रेम की भावना से हो जाएंगे ओत-प्रोत
Republic Day Poem: गणतंत्र दिवस पर बच्चों को सुनाएं ये कविताएं, गूंज उठेंगे भारत माता के जयकारे

नई दिल्ली: Republic Day 2024 Poem: 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस होता है. इस दिन पूरे देश में देशभक्ति और देशप्रेम का माहौल रहता है. बच्चे भी स्कूल जाने के लिए उत्साहित रहते हैं. इस दौरान उन्हें स्पीच और कविताएं कहनी होती हैं. हम आपके लिए ऐसी कविताएं लेकर आएं हैं, जिन्हें सुनते ही बच्चों में जोश भर जाएगा.  

धरती के लाल
धूल भरे हैं तो क्या है, हम
धरती मां के लाल हैं
अंधियारी में हम ही उसकी
जलती हुई मशाल हैं।

पढ़-लिख कर हम दूर करेंगे
अपने सब अज्ञान को
ऊंची और उठायेंगे हम
भारत मां की शान को।

आज कली, कल फूल और
परसों तारे बन जाएंगे
चंदा-सूरज बनकर हम दिन
रात ज्योति बिखराएंगे।

प्यारा मेरा देश
यारा प्यारा मेरा देश,
सजा – संवारा मेरा देश॥
दुनिया जिस पर गर्व करे,
नयन सितारा मेरा देश॥
चांदी – सोना मेरा देश,
सफ़ल सलोना मेरा देश॥
सुख का कोना मेरा देश,
फूलों वाला मेरा देश॥
झुलों वाला मेरा देश,
गंगा यमुना की माला का मेरा देश॥
फूलों  वाला मेरा देश
आगे जाए मेरा देश॥
नित नए मुस्काएं मेरा देश
इतिहासों में नाम लिखायें मेरा देश॥

वीर तुम बढ़े चलो
वीर, तुम बढ़े चलो
धीर, तुम बढ़े चलो।

हाथ ध्वजा में रहे
बाल-दल सजा रहे
ध्वज कभी झुके नहीं
दल कभी रुके नहीं
वीर, तुम बढ़े चलो
धीर, तुम बढ़े चलो।

सामने पहाड़ हो
सिंह की दहाड़ हो
तुम निडर, हटो नहीं
तुम निडर, डटो वहीं
वीर, तुम बढ़े चलो
धीर, तुम बढ़े चलो।

मेघ गरजते रहें
मेघ बरसते रहें
बिजलियां कड़क उठें
बिजलियां तड़क उठें
वीर, तुम बढ़े चलो
धीर, तुम बढ़े चलो।

प्रात हो कि रात हो
संग हो न साथ हो
सूर्य से बढ़े चलो
चंद्र से बढ़े चलो
वीर, तुम बढ़े चलो
धीर तुम बढ़े चलो।

वीर तुम बढ़े चलो

वीर, तुम बढ़े चलो
धीर, तुम बढ़े चलो

आज प्रात है नया
आज साथ है नया
आज राह है नयी
आज चाह है नयी

वीर, तुम बढ़े चलो
धीर, तुम बढ़े चलो।

देश को करो नया
वेष को करो नया
जीर्ण वस्त्र छोड़ दो
जीर्ण अस्त्र छोड़ दो

वीर, तुम बढ़े चलो
धीर, तुम बढ़े चलो

अन्न भूमि में भरा
वारि भूमि में भरा
यत्न कर निकाल लो
रत्न भर निकाल लो

वीर तुम बढ़े चलो
धीर, तुम बढ़े चलो।

एक ध्वज लिए हुए
एक प्रण किए हुए
मातृ भूमि के लिए
पितृ भूमि के लिए

वीर, तुम बढ़े चलो
धीर, तुम बढ़े चलो।

पुष्प की अभिलाषा
चाह नहीं, मैं सुरबाला के गहनों में गूँथा जाऊँ। 
चाह नहीं, प्रेमी-माला में बिंध प्यारी को ललचाऊँ॥ 

चाह नहीं, सम्राटों के शव पर, हे हरि, डाला जाऊँ। 
चाह नहीं, देवों के सिर पर चढूँ, भाग्य पर इठलाऊँ॥ 

मुझे तोड़ लेना वनमाली। 
उस पथ में देना तुम फेंक॥ 
मातृ-भूमि पर शीश चढ़ाने। 
जिस पथ जावें वीर अनेक॥ 

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