नई दिल्ली: इमोशनल अत्याचार का नाम तो आपने कई बार सुना होगा लेकिन इससे भी ज्यादा खतरनाक है इमोशनल ईटिंग! भूख लगना ठीक है. लेकिन बार-बार बिना भूख कुछ भी खाने का टेम्टेशन होना बिल्कुल ठीक नहीं. अगर ऐसा आपके साथ हो रहा है तो फौरन सावधान हो जाइये. हो सकता है आप ईमोशनल ईटिंग का शिकार हों. ईमोशनल ईटिंग यानी स्ट्रेस ईटिंग. लापरवाही में यही स्ट्रेस ईटिंग आपकी फिटनेस पर दुश्मन की तरह टूट पड़ती है. नतीजा मोटापा आपके छरहरे बदन पर जबरदस्ती चढ़कर बैठ जाएगा.
ईमोशनल ईटिंग का शिकार पुरुषों से ज्यादा महिलाएं
फिनलैंड में एक शोध हुआ. इसमें 5000 लोगों को प्रयोग के लिए लिया गया. औरत और आदमी दोनों की संख्या 2500-2500 रखी गई. दोनों ही समूह में स्ट्रेस के मरीज थे. जब इनकी केस स्टडी का अध्ययन किया तो पाया गया, ' औरतों में स्ट्रेस की वजह से मोटापा ज्यादा बढ़ा जबकि पुरुषों में न के बराबर.' स्टडी में पाया गया कि औरतें स्ट्रेस से पार पाने के लिए ओवरईटिंग हैबिट डेवलप कर लेती हैं जबकि पुरुष खाने की जगह अल्कोहल ड्रिंक को अपनाते हैं.
दिमाग के एक आदेश पर शुरू होता है 'केमिकल लोचा'
अब आप पूछेंगे की तनाव में भला बार-बार खाने का मन क्यों करता है? तो जवाब होगा, क्योंकि दिमाग हमारा थोड़ा खुराफाती है, या यों कहें केयरिंग और खुराफाती दोनों है. शरीर के भीतर कुछ सीक्रीजन होते रहे हैं. इन्हें हार्मोन कहते हैं. दिमाग वैसे तो पूरे शरीर का सुपर बॉस है. लेकिन सीक्रीजन के मामले में तो इसके आदेश की नाफरमानी हो ही नहीं सकती. जैसे ही तनाव हुआ, किडनी के ऊपर मौजूद एड्रीनेलिनस ग्लैंड को संदेश भेजता है. यह ग्लैंड फौरन एड्रिनेलिन हार्मोन का सीक्रीजन शुरू कर देती हैं. यही स्ट्रेस हार्मोन भी होता है. दरअसल यह हार्मोन तनाव से बचने के लिए डिफेंस मैकेनिज्म तैयार करता है.
तनाव कुछ समय के लिए हो तो एड्रिनेलिन इसे संभाल लेता है. लेकिन अगर यह लगातार लंबे समय तक बना रहता है तो फिर एड्रिनेलिन हाथ खड़े करने लगता है. अब दिमाग दूसरे हार्मोन को संदेश भेजता है, इसका नाम है, कॉर्टिसोल. कार्टिसोल को हंगर हार्मोन भी कहते हैं. वह स्ट्रेस से हमारा ध्यान हटाने के लिए खाने की तरफ हमें प्रेरित करता है. कुछ समय तक के लिए तो यह कार्टिसोल हमारे लिए फरिश्ता बना रहता है.
लेकिन इस बीच अगर स्ट्रेस का परमानेंट इलाज नहीं हुआ तो फिर कॉर्टिसोल दोस्त से दुश्मन बनकर हमारे स्वास्थ्य पर निगेटिव असर डालने लगता है. वह खाने के लिए इतना प्रेरित करता है कि हमार मुंह बंद ही नहीं होता. मन करता है कि कुछ भी मिले बस खा लो.
एड्रिनेलिन और कॉर्टिसोल शरीर के नेचुरल स्ट्रेस मैनेजर हैं...
एड्रिनेलिन और कॉर्टिसोल नाम के हार्मोन शरीर के नेचुरल स्ट्रेस मैनेजर हैं लेकिन इनकी एक सीमा है. एड्रिनेलिन स्ट्रेस से निपटने में हमारी शुरुआती मदद करता है. जब मामला उसकी हैसियत से पार हो जाता है तो दिमाग कॉर्टिसोल के पास अपना संदेश भेजता है. वह भी अपना काम करता है. लेकिन सीमा तो सबकी होती है. कॉर्टिसोल कुछ हफ्तों या 15 दिन तक तो हमारा मददगार रह सकता है. लेकिन उसके बाद वह मदद कम दिक्कतें ज्यादा पैदा करता है. दरअसल वह कॉर्टिसोल हमें स्ट्रेस से ध्यान हटाने का एक तरीका देता है. तरीका है, कुछ स्वादिष्ट खाने की तरफ अपना मन लगाओ.
ओवरईटिंग और इमोशनल ईटिंग
स्ट्रेस का इलाज इस बीच हो गया तो अच्छा नहीं तो आप इस तरीके को इतना अपना लेते हैं कि अपनी नेचुरल डाइट से कहीं ज्यादा खाना खाने लगते हैं. नतीजा मोटापा. कई बार स्ट्रेस ठीक होने के बाद भी लोग ओवरईटिंग का शिकार बने रहते हैं. इसकी वजह खाने से इमोशनल कनेक्शन हो जाना. इमोशनल ईटिंग इसे ही तो कहते हैं.
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