नई दिल्ली. अफगानिस्तान में शान्ति के लिए अमेरिका ने तालिबान से हाल में ही समझौता किया था. इस समझौते पर दस्तखत भी हुए लेकिन तालिबान की आदत में शुमार है खून-खराबा इसलिए इस समझौते के तुरंत बाद ही तालिबान ने इसका उललंघन किया और अगले 24 घंटों में 33 हमले करके कई अफगानी सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया. अब अमेरिका और रूस ने खाई है सौगंध कि दोनों मिल कर अफगानिस्तान में तालिबानी हुकूमत नहीं आने देंगे.
'इस्लामिक अमीरात ऑफ अफगानिस्तान' खारिज
दोनों दुनिया की बड़ी ताकतों अमेरिका और रूस ने संकल्प किया है कि वे अफगानिस्तान में 'इस्लामिक अमीरात ऑफ अफगानिस्तान' की जड़ें अब दुबारा जमने नहीं देंगे. दोनों देश ने मिलकर फैसला किया है कि अब वे खुद सुनिश्चित करेंगे कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय अफगानिस्तान में तालिबान के इस्लामिक राज्य की वापसी न होने दे और इसे कोई बाहरी मान्यता और सहायता प्राप्त न होने दे.
14 माह बाद हो सकती है अमरीकी फौजों की वापसी
हाल में ही कतर की राजधानी दोहा में हुए शांति समझौते के मुताबिक़ अगले 14 महीनों के भीतर अमेरिकी सेना अफगानिस्तान की धरती से अमेरिका लौट जाएंगे. इस समझौते के अंतर्गत अफगानिस्तान में एक नई प्रशासनिक व्यवस्था स्थापित की जायेगी जिसमें अफगान-तालिबान की सहमति होगी. परेशानी की बात ये है कि अफगानिस्तान के राजनीतिक हलकों में ये डर बैठा हुआ है कि अमेरिकी फौज की वापसी के बाद तालिबान अफगानिस्तान की लोकतांत्रिक सरकार से सत्ता छीन सकता है.
साझा बयान तालिबान के अनुकूल नहीं
अमेरिका और रूस द्वारा जारी किया गया बयान ऊपर से तो तालिबान के समर्थन में दीखता है लेकिन वास्तविकता ये है कि ये साझा बयान तालिबान के अनुकूल नहीं है. इस बयान में अफगान वार्ता के जरिए नई अफगान सरकार और राजनीतिक व्यवस्था में भूमिका अदा करने की दिशा में तालिबान की प्रतिबद्धता की सराहना हुई है जबकि इसी में आगे ये भी कहा गया कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय और संयुक्त राष्ट्र 'इस्लामिक अमीराती ऑफ अफगानिस्तान' को मान्यता नहीं देता है इसलिए किसी भी देश को अफगानिस्तान में 'इस्लामिक अमीराती शासन' को समर्थन या मान्यता नहीं देने दिया जायेगा.