नई दिल्ली: चीन (China) 3656 मीटर की ऊंचाई पर तिब्बत (Tibet) में क्लाउड कंप्यूटिंग सेंटर बना रहा है. हाई अल्टीट्यूड के इलाके में ये इस तरह का दुनिया का सबसे बड़ा सेंटर होगा.
भारत चीन तनाव (Indo China stand off) की स्थिति में यह भारतीय सेना (Indian Army) के लिए बड़ी चुनौती साबित हो सकता है.
चीन ने की साइबर वॉर की तैयारी !
चीन 1 अरब 80 करोड़ डॉलर खर्च कर तिब्बत के ल्हासा में ये सेंटर बना रहा है. चीन का दावा है कि ये सेंटर पूरे तिब्बत को इंटरनेशनल आईटी हब में बदल देगा. ल्हासा के हाइटेक ज़ोन में तैयार हो रहे प्रोजेक्ट का अगला चरण 2021 में पूरा हो जाएगा.
चीन भले इसे डेवलपमेंट प्रोजेक्ट बता रहा हो लेकिन सच ये है कि इसके जरिए उसकी नजर दक्षिण एशिया के पाकिस्तान, बांग्लादेश और नेपाल जैसे देशों के डेटा स्टोरेज को कंट्रोल करने की है. इसका चीन गलत इस्तेमाल भी कर सकता है.
भारत को बड़ा ख़तरा क्यों ?
चीन पहले से ही तिब्बत से लेकर पूर्वी लद्दाख तक 5जी केबल बिछाने में जुटा है. भारत से गलवान घाटी में टकराव के बाद उसने एलएसी के पास के इलाके में ये काम और तेज कर दिया. संचार नेटवर्क और इंफ्रास्ट्रक्चर विकास को लेकर इतनी तेज़ी भारत की चुनौती बढ़ानेवाली है. ये अंदेशा बढ़ रहा है कि चीन आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से लैस हथियारों को ऑपरेट करने के लिए कम्युनिकेशन नेटवर्क मजबूत कर रहा है.
चीन के पास ऐसे कई ऑटोमैटिक व्हीकल्स और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से लैस हथियार और सैन्य साजो-सामान हैं, जिसके लिए तेज डेटा ट्रांसफर और प्रोसेसिंग की जरूरत होती है.
विकास की आड़ में तिब्बत की पहचान मिटा देगा चीन
तिब्बत के इस क्लाउड कंप्यूटिंग सेंटर के ज़रिए तेज़ डाउनलोडिंग, ऑटोमेटिक ड्राइविंग, डिस्टेंस लर्निंग और डेटा बैकअप जैसी सुविधाएं बड़े पैमाने पर दी जा सकेंगी. इसे चीन का निंगसुआन टेक्नोलॉजी ग्रुप संचालित करेगा. चीन का दावा है कि इस सेंटर से उसके बड़े शहरों को बेहतर डेटा स्टोरेज सर्विस मिलेगी.
लेकिन चीन का असली मकसद तिब्बत की पहचान बदलने की है. विकास की आड़ में वो तिब्बत की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक पहचान को पूरी तरह खत्म करने में जुटा है. इसके साथ ही चीन की नज़र दक्षिण पूर्व एशिया के देशों पर भी है
कम्युनिकेशन सर्विसेज का गढ़ बनाने का दावा
पहले चरण में यहां 10 हजार विशाल मशीन कैबिनेट्स रखी जाएंगी. चीन का दावा है कि इस सेंटर से उसे 223 मिलियन डॉलर से भी ज्यादा कमाई होगी. जिसके जरिए तिब्बत को इंटरनेशनल कम्युनिकेशन सर्विसेज का हब बनाया जाएगा.
लेकिन वास्तविकता तो ये है कि चीन इस डाटा सेन्टर के जरिए दक्षिण एशियाई देशों खास तौर पर भारत को दबाव में लेने की तैयारी कर रहा है. जो कि भविष्य के लिए बड़ा खतरा साबित हो सकता है.
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