नई दिल्ली. आज जो हुआ उससे सिद्ध हो गया है कि अब पोस्ट-कोरोना-वर्ल्ड में भारत अमेरिका और यूरोप का दक्षिणपंथी समूह दो ध्रुवीय विश्व के शक्ति संतुलन में एक ध्रुव की भूमिका निभाएंगे और दुसरे ध्रुव चीन के नेतृत्व में रूस, पाकिस्तान, उत्तर कोरिया जैसे कुछ गिने चुने देश होंगे लेकिन ये अपनी नकारात्मक गतिविधियों से पैदा हुई ऋणात्मक छवि के शिकार खुद होंगे और सारी दुनिया के निशाने पर आ जाएंगे. रूस ने खुल कर चीन के समर्थन में अपनेआप को खड़ा कर दिया और इसके लिये उसे अपने पुराने दोस्त भारत की भी परवाह नहीं है.
भारत और रूस के बीच खड़ी हुई दीवार आज से
इस घटना पर न भारत को अचम्भा हुआ है न अमेरिका को हुआ होगा क्योंकि भारत की अमेरिका से बढ़ती मैत्री भारत के पुराने मित्र रूस को कैसे रास आ सकती थी. आज की घटना के बाद भारत और रूस के बीच एक अ-मैत्री की रेखा साफ़ साफ़ खिंच गई है.
भारत-अमेरिकी मैत्री का सहज विरोध है ये
कुछ दिन पहले अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत और रूस दोनों को ही जी-7 समूह में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया था और इस बड़े अभियान में निजी दिलचस्पी का मुजाहिरा करते हुए डोनाल्ड ट्रम्प ने खुद ही पीएम मोदी और प्रेजिडेंट पुतिन को फोन किया था. इसी निमंत्रण पर अब जब भारत ने संकेतों में हामी भर दी है तो रूस ने साफ़-साफ़ इसे चीन को अलग करने की कोशिश करार दिया है.
रूस ने जता दी अपनी साफ़ अनिच्छा
जैसी रूस से अपेक्षा थी, प्रेजिडेंट ट्रम्प की पेशकश को रूस ने सीधे स्पॉट तरीके से ठुकरा दिया है. रूस के फेडरेशन काउंसिल इंटरनेशनल अफेयर कमिटी के मुखिया और सांसद कॉन्सटैनटिन कोसाचेव ने इस विषयक वक्तव्य देते हुए कहा है कि मास्को अमेरिका के जी-7 में मास्को सम्मिलित होने का इच्छुक नहीं है. इतना ही नहीं कोसाचेव ने ये भी कहा कि चीन को निशाना बनानी की साजिश वाले किसी भी समूह या गुट में वह कभी शामिल नहीं होगा.
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