नई दिल्ली. चाहे वे बच्चे हिन्दुस्तान के हों या किसी और देश के जब सरकार उनके प्रति लापरवाह होगी तो यही होगा. जल संकट, बाढ़, तूफ़ान, आंधी, ओलावृष्टि और रेगिस्तानी टिड्डों का आतंक, चाहे किसी भी तरह की प्राकृतिक आपदा हो नुकसान बच्चों को उठाना पड़ता है और ये वो बच्चे होते हैं जो इन आपदाओं में बेघरबार हो जाते हैं.
अ फ़्यूचर फॉर द वर्ल्ड्स चिल्ड्रन की रिपोर्ट
अ फ़्यूचर फॉर द वर्ल्ड्स चिल्ड्रन एक रिपोर्ट का नाम है जो कि विश्व स्वास्थ्य संगठन, यूनिसेफ़ और मेडिकल जर्नल द लांसेट की ओर से संयुक्त रूप से जारी की गई है. इस रिपोर्ट ने दुनिया के सभी देशों को लेकर एक सूची जारी की. इस सूची में बच्चों के सुरक्षित भविष्य को लेकर किये जा रहे प्रयासों वाले देशों को रखा गया था जिसमें भारत ईराक से भी नीची पाया गया है.
''कोई देश गंभीर नहीं''
बच्चों के सुरक्षित भविष्य को लेकर भारत की लापरवाही से भी अधिक गंभीर एक और बात इस रिपोर्ट के माध्यम से सामने आई. इस रिपोर्ट ने बताया कि आज के दौर में दुनिया में कोई ऐसा देश नहीं है जो अपने बच्चों के स्वास्थ्य, उनके आसपास के वातावरण और उनके भविष्य को सुरक्षित करने की दिशा में आवश्यक कदम उठा रहा हो.
250 मिलियन बच्चों का विकास खतरे में
न्यूजीलैंड की पूर्व प्रधानमंत्री और इस रिपोर्ट को तैयार करने वाली समिति की उपाध्यक्ष हेलेन क्लार्क ने आगे बताया कि बीते दो दशक में बच्चों और किशोरों की सेहत को लेकर काफी काम हुआ है जो कि अब रुक गया है. आज दुनिया भर में कम और मध्यम आय वर्ग वाले देशों में ग़रीबी के कारण पांच साल से कम उम्र के 250 मिलियन बच्चों का विकास खतरे में हैं. और तो और अब तो दुनिया के हर बच्चे का अस्तित्व जलवायु परिवर्तन की वजह से संकट में है.