नई दिल्लीः इश्क और जंग में सबकुछ जायज है, ऐसा सोचने वालों के लिए शायद ये इस वजह से है क्योंकि इश्क और जंग करने वालों को सिर्फ और सिर्फ अपनी जीत का नशा होता है. इश्क जिससे उसे पा लेना का नशा, जंग जिससे उसे बर्बाद कर देने का जुनून.
कुछ ऐसी ही कहानी इजरायल की भी है जिसके लिए इश्क का तो पता नहीं लेकिन जंग में सबकुछ जायज है. सबकुछ का मतलब सबकुछ. उसे अपने दुश्मनों को सबक सिखाने के लिए जो भी करना पड़ा उसने किया.
इजरायल की कहानी उस थ्रिलर वाली वेब सीरीज की तरह है जिसका हर पार्ट रोमांच भरता है. आपको लग ही रहा होता है कि अब शायद यहीं ये सीरीज खत्म हो जाएगी, लेकिन अंत में पहुंचते पहुंचते आपको पता चलता है कि अगर पूरी कहानी समझनी है तो पार्ट-2 का इंतजार करना होगा.
इजरायल की खासियत ही यही है. लेकिन इजरायल को अगर फिल्मी कहानी के तौर पर समझेंगे तो इस कहानी का हीरो और विलेन यहां की सुरक्षा एजेंसी मोसाद है.
यूं तो मोसाद के कारनामों की फेहरिस्त बहुत लंबी है. जांबाजी की भी अनगिनत कहानियां हैं. लेकिन आपको आज मोसाद की एक ऐसी कहानी के बारे में बता रहे हैं जिसके बाद से पूरी दुनिया ने इजरायल की इस खुफिया एजेंसी का लोहा माना. ये कहानी आज इसलिए भी जरूरी है क्योंकि ये फिलिस्तीन से जुड़ी है और मौजूदा समय में फिलिस्तीन और इजरायल के बीच जंग जारी है.
जब इजरायल के खिलाड़ी बनाए गए बंधक
तारीख थी 5 सितंबर 1972. जर्मनी के म्यूनिख शहर में ओलंपिक खेलों का आयोजन हो रहा था. खिलाड़ियों की तरह ट्रैक सूट पहने 8 अजनबी लोहे की दीवार फांदकर ओलंपिक विलेज में घुस गए थे और इजरायली खिलाड़ियों को अगवा कर लिया था. ये पीएलओ यानी फलस्तीन लिबरेशन ऑर्गेनाइजेशन से जुड़े थे.
अगले दिन ये खबर सनसनी बनकर पूरी दुनिया में फैल गई कि फलस्तीनी आतंकवादियों ने जर्मनी के म्यूनिख शहर में 11 इजरायली खिलाड़ियों को बंधक बना लिया है. आतंकियों ने मांग रखी कि इजरायल की जेलों में बंद 234 फलस्तीनियों को रिहा किया जाए, लेकिन इजरायल ने आदतन दो टूक शब्दों में कह दिया कि आतंकियों की कोई मांग नहीं मानी जाएगी.
लेकिन अगले दिन जब जर्मनी के सुरक्षाबलों ने आतंकियों पर हमला बोला तो इन आतंकियों ने सभी खिलाड़ियों को भी मौत के घाट उतार दिया.
फिर शुरु हुआ बदले का मिशन
बात देश की शान की थी, लिहाजा बदले के लिए प्लान तैयार किया गया. इजरायल ने अपनी खुफिया एजेंसी मोसाद की मदद से उन सभी लोगों के कत्ल की योजना बनाई. इस मिशन को नाम दिया गया 'रैथ ऑफ गॉड' यानी ईश्वर का कहर.
म्यूनिख नरसंहार के दो दिन के बाद इजरायली सेना ने सीरिया और लेबनान में मौजूद फलस्तीन लिबरेशन ऑर्गेनाइजेशन के 10 ठिकानों पर बमबारी की और करीब 200 आतंकियों और आम नागरिकों को मौत के घाट उतार दिया. लेकिन इजरायली प्रधानमंत्री गोल्डा मेयर इतने भर से रुकने वाली नहीं थीं.
उन्होंने इजरायली खुफिया एजेंसी मोसाद के साथ गुप्त मीटिंग की और उनसे एक ऐसा मिशन चलाने को कहा जिसके तहत दुनिया के अलग-अलग देशों में फैले उन सभी लोगों को जान से मार दिया जाए, जिनका इस आतंकी हमले से कनेक्शन था.
20 साल चली खोज और...
सबसे पहले मोसाद ने ऐसे लोगों की लिस्ट बनाई, जिनका संबंध म्यूनिख हमले से था. मोसाद के एजेंट्स दुनिया के अलग-अलग देशों में जाकर करीब 20 साल तक हत्याओं को अंजाम देते रहे. मोसाद के एजेंट्स ने फोन बम, नकली पासपोर्ट, जहर की सुई, इन सब का इस्तेमाल करते हुए चुन-चुनकर उन लोगों को मारा, जो इजरायली खिलाड़ियों की हत्या के लिए जिम्मेदार थे.
अपराधियों के परिवार को भेजते थे बुके
बताया जाता है कि मोसाद का यह ऑपरेशन करीब 20 वर्षों तक चला था और हर टारगेट को वे 11 गोलियां उन 11 खिलाड़ियों की तरफ से मारते थे, जिनकी 1972 में हत्या कर दी गई थी. इतना ही नहीं, अपने टारगेट को खत्म करने के बाद मोसाद की तरफ से उनके परिवारवालों को बुके के साथ एक संदेश भी भेजा जाता था, जिसमें लिखा होता था, 'यह याद दिलाने के लिए हम न भूलते हैं, न माफ करते हैं.'
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महिलाएं भी करती हैं जासूसी
इजरायल की इस खुफिया एजेंसी में पुरुष ही नहीं महिलाएं भी होती हैं, जो अपनी खूबसूरती के झांसे में लेकर अपना काम निकाल लेती हैं.
ऐसी ही एक महिला जासूस की कहानी 1980 के दशक में सामने आई थी, जिसने 'सिंडी' के फर्जी नाम से उस शख्स की गिरफ्तारी में अहम भूमिका निभाई थी, जिसके पास इजरायल के गोपनीय परमाणु कार्यक्रम की जानकारी थी और एक व्हिसलब्लोअर के तौर पर उसने अंतरराष्ट्रीय मीडिया को इस बारे में जानकारी भी दी.
दिसंबर 1949 में हुई थी स्थापना
मोसाद का मकसद महज किसी वारदात के लिए जिम्मेदार शख्स की जान लेकर उसे सजा देना नहीं होता, बल्कि मोसाद इसके जरिये एक तरह का खौफ पैदा करती है और यह संदेश देने का प्रयास करती है कि कोई भी उससे पंगा न ले. इसकी स्थापना 13 दिसंबर, 1949 को हुई थी. जिसका मुख्यालय इजरायल के तेल अवीव शहर में है.
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