लंदन: यूक्रेन पर आक्रमण एक ऐसे समय पर किया गया है, जब विश्व अर्थव्यवस्था एक नाजुक दौर से गुजर रही और कोविड के कहर से उबरने की शुरूआत कर रही है. रूस के इस युद्ध के अब दूरगामी आर्थिक परिणाम हो सकते हैं, क्योंकि इससे वित्तीय बाजार गिरेंगे और तेल के भाव चढ़ेंगे. इस घटनाक्रम की चिंताजनक तुलना मध्य पूर्व में 1973 के योम किप्पुर युद्ध (अरब इजराइल युद्ध) से की जा सकती है, जिसके कारण तेल संकट पैदा हुआ. इसने विश्व अर्थव्यवस्था को उसकी नींव तक हिला दिया और उस आर्थिक उछाल के अंत का संकेत दिया जिसने बेरोजगारी को कम करने और जीवन स्तर को बढ़ाने में उल्लेखनीय योगदान दिया था. सिटी पॉलिटिकल इकोनॉमी रिसर्च सेंटर के मानद रिसर्च फेलो स्टीव शिफेरेस ने यह आंकलन प्रस्तुत किया है.
स्टीव शिफेरेस के मुताबिक यह ठीक है कि आज विश्व अर्थव्यवस्था उस समय की तुलना में बहुत बड़ी है, लेकिन हाल के दशकों में यह बहुत धीमी गति से बढ़ रही है. और महामारी ने पिछले दो वर्षों में बड़ा झटका दिया, सरकारों को अपनी अर्थव्यवस्थाओं को उबारने के लिए बड़ी रकम खर्च करने के लिए मजबूर होना पड़ा. अब, सुधार के कुछ संकेतों के बावजूद, उच्च मुद्रास्फीति और कम विकास के जोखिम बने हुए हैं, बड़े ऋणों ने कई सरकारों की हस्तक्षेप करने की क्षमता को सीमित कर दिया है. ऊर्जा की बढ़ती लागत और आपूर्ति श्रृंखलाओं में निरंतर व्यवधान कमजोर आर्थिक स्थिति की बड़ी वजह बना हुआ है - ये दोनों यूक्रेन संकट से बदतर हो जाएंगे.
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गैस पर असर
रूस यूरोपीय संघ का गैस और तेल का सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता है, और उच्च ऊर्जा लागत का मतलब अधिक महंगा परिवहन है, जिससे सभी प्रकार के सामानों की आवाजाही प्रभावित होती है. लेकिन शायद विश्व अर्थव्यवस्था के लिए सबसे बड़ा जोखिम यह है कि अगर यह संकट लंबे समय तक चला तो दुनिया को दोहरे गतिरोध में डाल सकता है, उच्च मुद्रास्फीति और कम आर्थिक विकास. जीवन यापन की लागत बिगड़ सकती है.
बढ़ती मुद्रास्फीति का संकट
दावा है कि उच्च और बढ़ती मुद्रास्फीति जीवन यापन की लागत के संकट को बढ़ा देगी जो पहले से ही कई उपभोक्ताओं को प्रभावित कर रहा है. यह केंद्रीय बैंकों के लिए एक दुविधा भी प्रस्तुत करता है जो पिछले दो वर्षों से महामारी के कारण अर्थव्यवस्था में पैसा डाल रहे हैं. अधिकांश अब धीरे-धीरे इस मदद को वापस लेने की योजना बना रहे हैं, साथ ही मुद्रास्फीति पर अंकुश लगाने के लिए धीरे-धीरे ब्याज दरों में वृद्धि कर रहे हैं. अगर मुद्रास्फीति में तेजी जारी रही और केंद्रीय बैंकों ने नाटकीय रूप से ब्याज दरों में वृद्धि कर दी तो अर्थव्यवस्था और कमजोर होगी.
गेहूं पर असर
रूस और यूक्रेन गेहूं के दुनिया के सबसे बड़े निर्यातकों में से हैं और कई देश (विशेष रूप से यूरोप में) रूसी तेल और गैस पर निर्भर हैं, इसलिए ऊर्जा और खाद्य कीमतों में और वृद्धि जारी रह सकती है. केवल मुद्रास्फीति की दर का बढ़ना ही मायने नहीं रखता, बल्कि लोगों की यह अपेक्षा भी है कि यह और बढ़ेगी. इससे एक "वेतन-मूल्य श्रृंखला" बन सकती है, जहां लोग जीवन की उच्च लागत की भरपाई के लिए अधिक वेतन की मांग करते हैं, जिससे कंपनियों को अधिक वेतन का भुगतान करने के लिए अपने उत्पादों की कीमतों में और वृद्धि करने के लिए मजबूर होना पड़ता है.
केंद्रीय बैंकों को तब ब्याज दरें और भी अधिक बढ़ाने के लिए मजबूर किया जाता है. इस तरह यह सिलसिला चलता रहता है. मुद्रास्फीति का मतलब यह भी है कि सरकारी खर्च वास्तविक रूप से गिर सकता है, सार्वजनिक सेवाओं के स्तर को कम करना पड़ सकता है और सार्वजनिक क्षेत्र के कर्मचारियों के वेतन को कम किया जा सकता है. ऐसे में अगर फर्मों को लगता है कि वे उच्च मजदूरी की भरपाई के लिए पर्याप्त कीमतें नहीं बढ़ा सकती हैं, तो वे अपने कर्मचारियों की संख्या में कटौती करने के लिए प्रेरित हो सकते हैं, जिससे बेरोजगारी बढ़ सकती है.
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