नई दिल्ली: जंग का मैदान हो या फिर कूटनीति का कोई मंच या फिर कोर्ट का कोई केस, भारत से हर मोर्चे पर पाकिस्तान मुंह की खाता है. हैदराबाद के निजाम के पैसों से जुड़े 70 साल पुराने एक मामले में लंडन की अदालत का फैसला आ चुका है.
भारत ने जीत ली 325 करोड़ की बड़ी रकम
भारत ने पाकिस्तान से ये कोर्ट केस जीत लिया है और 325 करोड़ की बड़ी रकम भी. इसके अलावा, इस केस को लड़ने में खर्च हुई 65 फीसदी यानी क़रीब 26 करोड़ की रकम भी पाकिस्तान को भारत को देनी पड़ी है. हालांकि, इस फैसले को लेकर ज़ी मीडिया ने जब निजाम के पोते से बात की, तो उन्होंने कुछ और ही कहानी बताई.
फैसला अभी बाकी है?
निजाम के पोते नज़फ अली खान ने कहा, "आज जो रिपोर्ट आई है, जो आप मुझसे पूछ रहे हैं. मेरी जो जानकारी है, जब तक मेरा रिव्यू पिटीशन है तब तक मैटर डिस्पोज़ ऑफ नहीं होगा."
अब आपको निजाम फंड केस से जुड़ी पूरी जानकारी देते हैं.
इस विवाद की शुरुआत भारत के विभाजन के वक्त हुई थी. 1948 में हैदराबाद के तत्कालीन निजाम ने लंडन में तत्कालीन पाकिस्तान उच्चायुक्त रहिमतुल्ला के पास करीब 1 मिलियन पाउंड की रकम सुरक्षित रूप से रखने के लिए भेजी थी. उस वक्त हैदराबाद में निजाम का शासन था. वो भारत सरकार के अधीन नहीं था.
हालांकि कुछ ही दिनों बाद निजाम ने धनराशि को अपनी सहमति के बिना भेजे जाने की बात कही और बैंक से अपना पैसा वापस लौटाने को कहा लेकिन बैंक ने ऐसा करने से इनकार कर दिया. बैंक का कहना था कि फंड पाकिस्तान के खाते में जा चुका है, ऐसे में उनकी सहमति के बिना इसे वापस नहीं किया जा सकता.
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बैंक के पैसा लौटाने से इनकार करने के बाद 1950 के दशक में निजाम ने बैंक के खिलाफ कानूनी कार्रवाई शुरू की. मामला हाउस ऑफ लॉर्ड्स तक पहुंचा. जहां उस वक्त फंड के स्वामित्व पर फैसला नहीं हो सका क्योंकि पाकिस्तान ने संप्रभु प्रतिरक्षा का दावा कर दिया. इसके बाद से ये पैसा यूके के नेटवेस्ट बैंक में फ्रीज पड़ा था.
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