नई दिल्ली. ऐसा नहीं है कि सिर्फ बिहार के चुनावों में ही वोटकटवा होते हैं या भारत के आम चुनावों में भी वोटकटवा नामक कुछ विशेष तत्व होते हैं जो इस जिम्मेदारी को भली-भांति निभाते हैं, भारत के बाहर भी इस जाति के होनहार अस्तित्व में हैं. इनका काम जीतना नहीं होता बल्कि जीतने नहीं देना होता है अर्थात ये वोट काटने का काम करते हैं. अमेरिका के राष्ट्रपति चुनावों में जो सज्जन पिछली बार वोटकटवा की भूमिका में थे, इस बार फिर हाजिर हैं वोटकटवा बन कर.
''नाम हमारा हाेवी हाॅकिंस है''
गर्व से अपना नाम बताते हैं ये अमेरिकी वोटकटवा मोशाय और कहते हैं कि हमारा नाम होवी हॉकिन्स ऐसे वैसे ही नहीं है. पिछली बार भी हम चुनावों का एक अहम हिस्सा थे और इस बार तो हैं ही, उसमें कोई शक भी नहीं. होवी बताते हैं कि हम पिछली बार ट्रम्प की जीत का फैक्टर बने थे. किन्तु अब हमारा विचार बदल गया है. यदि हमारी उपस्थिति के कारण ट्रम्प जीते तो हमें दुख होगा.
ग्रीन पार्टी के उम्मीदवार हैं होवी
मस्तमौला किसम के व्यक्तित्व के स्वामी हैं होवी. जानते हुए भी चुनाव लड़ रहे हैं होवी कि हम नहीं जीतेंगे. लेकिन इस तथ्य से उनकी चुनाव लड़ने की इच्छा में कोई कमी नहीं आई है. वे राष्ट्रपति पद के लिए ग्रीन पार्टी के उम्मीदवार हैं. और सबसे महत्वपूर्ण तथ्य ये है कि होवी की ग्रीन पार्टी को अमेरिका के 50 में से 46 राज्यों के मतपत्रों में प्रतिनिधित्व प्राप्त है.
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''न ट्रम्प न बाइडेन, दोनो ही निकम्मे हैं''
इन चुनावों में होवी हॉकिन्स ट्रम्प और बाइडेन दोनाें के विरोध में हैं. इसलिये उनका नारा है - न ट्रम्प न बाइडेन, ओनली हॉकिन्स ! बहुत गंभीरता से चुनाव-चर्चा करते हुए होवी कहते हैं कि ये दोनों उम्मीदवारों की पार्टियां जनहित के कार्य करने में सक्षम नहीं हैं.
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''दोनो हैं कारपोरेट अमेरिका & युद्ध समर्थक''
होवी कहते हैं कि रिपब्लिकन और डेमोक्रेट, ये दोनो दल अमेरिका का मूल प्रतिनिधित्व नहीं करते. ये मूल रूप से कारपोरेट अमेरिका के प्रतिनिथि हैं और युद्ध उद्योग के समर्थक ऊपर से हैं. बाइडेन का व्यवहार सभ्य है किन्तु नीतिगत रूप से दोनो उम्मीदवार एक जैसे हैं.
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''हम हैं असली अमेरिका के प्रतिनिधि''
होवी कहते हैं कि हमारी दृष्टि में किराये के घरों में रहने वाले लोग, मध्यमवर्गीय परिवार, आम अमेरिकी सैनिक, महिलायें, बच्चे और गरीब बीमार वृद्ध लोग ही मूल रूप से अमेरिका का प्रतिनिधित्व करते हैं. और हम इन लोगों के प्रतिनिधि हैं. बड़े सच की बात करें तो चाहे ट्रम्प बने राष्ट्रपति चाहे बाइडेन, देश की जनता की समस्याओं का समाधान फिर भी नहीं होना है.
''वोट तो हम काटेंगे''
होवी हॉकिंस चुनाव को लेकर पूरी तरह गंभीर हैं और चुनाव की समझ उनमें परिपक्वता के स्तर तक है. चुनाव में राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मीडिया द्वारा दरकिनार किये जाने का अफसोस उनको बिलकुल नहीं है. इसका कारण वे ये बताते हैं कि उनकी पार्टी ट्रम्प औऱ बाइडेन जितना पैसा खर्च करने में समर्थ नहीं है. पर कमाल की बात ये है कि होवी की उपस्थिति कुल अमेरिकी वोटरों में से 73% वोटरों में है.538 में से 380 इलेक्टोरल कॉलेज के सदस्यों के पास ये विकल्प मौजूद है कि यदि वे चाहें तो होवी हॉकिंस को वोट कर सकते हैं. बाइडेन और ट्रम्प दोनाें को नापसंद करने वाले वोटर उनको पसंद कर सकते हैं, इसकी संभावना पूरी है. तभी तो कहा जाता है होवी हॉकिन्स को - वोटकटवा.
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