यह बात साल 2018 की है. जम्मू-कश्मीर लिब्रेशन फ्रंट का कमांडर गुलाम हसन उर्फ नूर मलिक को जनवरी 2018 में गिरफ्तार किया गया था.
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नई दिल्ली: भारतीय फौज अक्सर आतंकियों को मौत की नींद सुलाने का काम करती है लेकिन क्या आपने कभी किसी आतंकी की मौत पर फौज को श्रद्धांजलि देते हुए देखा है. शायद आपको यह अजीब लग रहा है, क्योंकि एक आतंकी को फौज कैसे श्रद्धांजलि दे सकती है? लेकिन यह हकीकत है. दरअसल यह कहानी नूर खान की. जिसने कभी कश्मीर की आजादी के लिए आवाज बुलंद की थी और आतंकवाद से जुड़ गया था.
यह बात साल 2018 की है. जम्मू-कश्मीर लिब्रेशन फ्रंट का कमांडर गुलाम हसन उर्फ नूर मलिक को जनवरी 2018 में गिरफ्तार किया गया था. उस पर राज्य में आतंकी गतिविधियों में शामिल होने का आरोप था और पुलिस ने उस पर पब्लिक सेफ्टी एक्ट (PSA) भी लगाया था. नूर खान की मौत 17 जुलाई 2018 को जम्मू के कोट बलवल में हुई थी.
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नूर खान की मौत पर ब्रिगेडियर पीएस गोथरा ने दिल को छू लेना वाला खत लिखा था. ब्रिगेडियर ने खत में नूर खान की मौत पर व्यक्तिगत नुकसान बताया था. उन्होंने खत में लिखा कुछ लोगों को हैरानी हो सकती है कि आर्मी ऑफिसर आजादी की मांग करने वाले एक एक्टिविस्ट की मौत पर दुखी क्यों है?
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नूर खान ने ब्रिगेडियर के पिता आतंकियों से कराया था आजाद
दरअसल इसकी वजह थी ब्रिगेडिय पीएस गोथरा के पिता जी. जिन्हें आतंकियों ने साल 1993 में किडनैप कर लिया था. उस समय ब्रिगेडियर पीएस गोथरा की अपील पर नूर खान ने उनके पिता को आतंकियों से मुक्त कराया था. इसीलिए गोथरा ने नूर खान की मौत पर दुख का इजहार किया था. उन्होंने अपने पिता की रिहाई की बात करते हुए खत में लिखा था- नूर खान ने खतरा मोल लेकर उन आतंकियों से बात की जिन्होंने उनके पिता का अगवा किया था. आधी रात तक मेरे पिता को सुरक्षित वापस ले आया.
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"मुझे सलाह भी दिया करता था नूर खान"
उन्होंने लिखा- अपनी तरफ से उसने भी कभी मदद के लिए नहीं कहा, सिर्फ एक बार को छोड़कर जब उसका पोता जल गया था. उस समय उसने मेडिकल हेल्प मांगी थी. ब्रिगेडियर ने लिखा,"हमारे नजरिये अलग हो सकते हैं लेकिन हम अच्छे दोस्त थे, हम एक दूसरे से बात करते थे, हालांकि वह मुझसे ज्यादा उम्र का था. वह कई बार मुझे सलाह भी दिया करता था जैसे फौज को ऐसी चीजें नहीं करनी चाहिए."
पैसे लेने से किया साफ इनकार
एक खबर के मुताबिक ब्रिगेडियर के पिता ने रिहाई के बाद नूर खान को अपने दफ्तर में बुलाया था. ब्रिगेडियर के पिता ने मदद के बदले उन्हें कुछ पैसे की पेशकश की थी लेकिन खान ने पैसे लेने से इनकार कर दिया था.
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