"ये जो सर नीचे किए बैठे हैं, जान कितनों की लिए बैठे हैं"
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"ये जो सर नीचे किए बैठे हैं, जान कितनों की लिए बैठे हैं"

Jaleel Manikpuri Poetry: जलील मनिकपुरी के भाई हाफिज खलील हसन खलील भी अच्छे शायर थे. जलील मनिकपुरी ने उनसे गजल लिखना और पढ़ना सीखा सीखी. उनके घर वालों ने उनकी शायरी पर ऐतराज नहीं किया.

 

"ये जो सर नीचे किए बैठे हैं, जान कितनों की लिए बैठे हैं"

Jaleel Manikpuri Poetry: जलील मनिकपुरी उर्दू के मशहूर शायर हैं. वह साल 1862 में उत्तर प्रदेश प्रतापगढ़ में मौजूद कस्बा मानकपुर में पैदा हुए. जलील ने इब्तिदाई तालीम अपने वालिद से हालिस की. उसके बाद वह लखनऊ आ गए और मदरसा फिरंगी महल में दाखिला लिया. यहां उन्होंने अरबी, फारसी और तर्कशास्त्र की तालीम हासिल की. उन्हें बचपन से ही शेर व शायरी का शौक था. लखनऊ के अदबी माहौल ने इसे और उभारा.

ये जो सर नीचे किए बैठे हैं 
जान कितनों की लिए बैठे हैं 

आँख रहज़न नहीं तो फिर क्या है 
लूट लेती है क़ाफ़िला दिल का 

हुस्न आफ़त नहीं तो फिर क्या है 
तू क़यामत नहीं तो फिर क्या है 

मिरी आह का तुम असर देख लेना 
वो आएँगे थामे जिगर देख लेना 

जब मैं चलूँ तो साया भी अपना न साथ दे 
जब तुम चलो ज़मीन चले आसमाँ चले 

आप ने तस्वीर भेजी मैं ने देखी ग़ौर से 
हर अदा अच्छी ख़मोशी की अदा अच्छी नहीं 

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बात उल्टी वो समझते हैं जो कुछ कहता हूँ 
अब की पूछा तो ये कह दूँगा कि हाल अच्छा है 

रोज़ वो ख़्वाब में आते हैं गले मिलने को 
मैं जो सोता हूँ तो जाग उठती है क़िस्मत मेरी 

कुछ इस अदा से आप ने पूछा मिरा मिज़ाज 
कहना पड़ा कि शुक्र है परवरदिगार का 

सब कुछ हम उन से कह गए लेकिन ये इत्तिफ़ाक़ 
कहने की थी जो बात वही दिल में रह गई 

तसद्दुक़ इस करम के मैं कभी तन्हा नहीं रहता 
कि जिस दिन तुम नहीं आते तुम्हारी याद आती है 

मोहब्बत रंग दे जाती है जब दिल दिल से मिलता है 
मगर मुश्किल तो ये है दिल बड़ी मुश्किल से मिलता है 

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