इस्लामी कैलेंडर का तीसरा महीना रबील अव्वल शुरु हो चुका है, इंतेहा पर इश्क़
Advertisement
trendingNow,recommendedStories0/zeesalaam/zeesalaam769190

इस्लामी कैलेंडर का तीसरा महीना रबील अव्वल शुरु हो चुका है, इंतेहा पर इश्क़

अल्लाह के बाद दुनिया की सबसे अज़ीम शख़्सियत से मुहब्बत और अक़ीदत रखने का सबका अलग अंदाज़ है. अक़ीदत के ये अंदाज़ किताबों में नहीं मिलते. कहीं लिखे हुए नहीं है. 

फाइल फोटो

सैयद अब्बास मेहदी रिज़वी: जहां बेटियों को ज़िदां रहने का हक़ नहीं था, जिस समाज में औरतों की इज़्ज़त को नीलाम करना ऐब नहीं थी. जहां कारोबारियों के क़ाफ़िलों को लूट लेना फ़ख़्र से बयान होता था. जहां शराब दस्तरख़्वान की ज़ीनत थी. जहां न कोई निज़ामें ज़िदंगी था न समाज का कोई दस्तूर था. उसी मुआशरे और उसी दौर में पैग़म्बरे आज़म इल्मे अव्वल बनकर, इश्क़े अव्वल बनकर, हुस्ने अव्वल बन कर, नक्शे अव्वल बनकर, ख़ल्क़े अव्वल बनकर बीबी आमिना की गोद में चमके. आपकी विलादत 12 रबील अव्ल 571 ईसवी को मक्के में हुयी. यतीमे अब्दुल्लाह का नाम दादा अब्दुल मुत्तलिब ने मोहम्मद और मां ने अहमद रख. इस्लामी कैलेंडर का तीसरा महीना रबील अव्वल शुरु हो चुका है. ये ऐसा मुबारक महीना है जिसमें दुनिया को एक अज़ीम नेमत मिली. एक ऐसी नेमत जिसकी कोई मिसाल अबतक नहीं है. विलादत के वक़्त बीबी आमना का घर नूरे इलाही से मुनव्वर हो गया. 

पैग़ंबरे आज़म और इश्क़ का इज़हार 
अल्लाह के बाद दुनिया की सबसे अज़ीम शख़्सियत से मुहब्बत और अक़ीदत रखने का सबका अलग अंदाज़ है. अक़ीदत के ये अंदाज़ किताबों में नहीं मिलते. कहीं लिखे हुए नहीं है. बल्कि जब सरकारे मदीना किसी उम्मती पर ख़ास करम करते हैं तो उसे ये अंदाज़ अता करते हैं. और अता भी उसे होती है जो इश्क़ और अक़ीदत की इंतेहा पर पहुंच जाता है. अदब पहला क़रीना है मुहब्बत के क़रीनों में. बेअदब के नसीब में कुछ भी नहीं आता. इश्क़े रसूल के अदाज़ पर न तो कोई तनक़ीद है,न तक़लीद है, न इंतेहा है और न ही कोई इश्क़े रसूल की अदाओं पर फ़तवा है. किसी भी किताब में नहीं लिखा की आशिक़े रसूल को इश्क़ का इज़हार कैसे करना है. ओहद में सरकार का एक दांत शहीद हो गया. जंगे ओहद मदीने में हुई. और सहाबी-ए-रसूल ओवैसे क़रनी क़रन में, क़रन यमन का शहर है. मक्का और क़रन की दूरी बहुत थी. ओवैस की मां बीमार थीं ओवैस के दिल में मां की ख़िदमत का जज़्बा और अपने आक़ा की मुलाक़ात तड़प थी. मुलाक़ात के लिए निकले लेकिन शाम होने लगी मक्का अभी दूर था ओवैस शाम होते होते बुज़ुर्ग मां की ख़िदमत के लिए क़रन लौट आए. ओवैस ने अपने सारे दांत ये कहकर तोड़ दिए कि न जाने कौन सा दांत मेरे आक़ा का शहीद हुआ है. 

अंदाज़े अक़ीदत फ़िक़ह का मसला नहीं है 
ओवैस का ये अंदाज़े अक़ीदत फ़िक़ह का मसला नहीं है. इसपर कोई फ़तवा नहीं है. ये इश्क़ का अंदाज़ है लेकिन हां इसकी कोई तक़लीद भी नहीं है ये हर शख़्स का इंफ़ेरादी मसला है. ये मसल इश्क़ व अक़ीदत की इंतेहा का है. अपने आक़ा से बेपनाह मुहब्बत का है.  

Zee Salaam LIVE TV

Trending news