डियर जिंदगी: कैसे सोचते हैं हम…
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डियर जिंदगी: कैसे सोचते हैं हम…

दिमाग ने एक बार सोच लिया, जी ये तो बड़ा ही भारी काम है, तो यकीन मानिए, वह कभी आसान नहीं हो सकता...

डियर जिंदगी: कैसे सोचते हैं हम…

जिंदगी कितने मौके देती है हमें ! इस बात को जो जितनी आसानी से समझ जाता है, उसकी जिंदगी उतने मजे में गुजरती है. हर परिवर्तन असल में बस एक चुनौती है, उससे अधिक कुछ नहीं. चीजें बदलने के लिए ही होती हैं, उनका स्‍वभाव ही बदलना है. लेकिन हम हैं कि बदलने का नाम आते ही दिमाग भारी हो जाता है, आंखों के सामने अंधेरा छा जाता है. चीजें समझ में आएं इससे पहले ही हम उनके सामने सरेंडर कर देते हैं.

जो पहाड़, नदी और जंगल से जरा भी परिचित हैं, वह इस बात को बेहतर समझ सकते हैं कि असल में जिंदगी में चुनौती के क्‍या मायने हैं. पहाड़ का जीवन, गैर पहाड़ी के लिए कितना चुनौतीभरा है. हर कदम मुकिश्‍ल लगता है. लेकिन जो पहाड़ के निवासी हैं, उनके लिए वह उतना ही आसान है, जितना हमारे लिए मैदान, गांव में जिंदगी की चुनौतियां. मुश्‍किल जैसी कोई चीज़ होती ही नही. सरल और कठिन एक दिमागी प्रोग्रामिंग से अधिक कुछ नहीं है. गणित के छात्र के लिए गणित सरल है, बाएं हाथ का खेल है. लेकिन साहित्‍य के छात्र के लिए वही गणित ‘जीने-मरने’ का प्रश्‍न है. दस किलो का वजन पीठ पर लादे पहाड़ पर चलना जितना मुश्किल किसी शहरी के लिए है, उतना ही मुश्किल किसी पहाड़ी के लिए दस किलोमीटर के जाम में फंसकर उसे पार करना है.

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कुल मिलाकर अगर हम अपने चित्‍त पर ध्‍यान केंद्रित करें तो बेहद आसानी से समझ सकते हैं कि हम जैसे ही अपने दिमाग और शरीर की अनुकूलता का शिकार हो जाते हैं, हम असल में ‘कंफर्ट’ जोन में चले जाते हैं. और ‘कंफर्ट’ जोन में रहते हुए हमें बाहरी दुनिया एकदम अंतरिक्ष विज्ञान जैसी जटिल लगने लगती है. जबकि सारा सोच विचार केवल ‘दिमागी’ है.

दिमाग ने एक बार सोच लिया, जी ये तो बड़ा ही भारी काम है, तो यकीन मानिए, वह कभी आसान नहीं हो सकता. जबकि हमारे लिए वह उतना ही सरल था, जितना हम पहले से कर रहे हैं.

हमारी पूरी चिंतन प्रक्रिया इसी सोच के कारण ही तो भारी होती जाती है. जो अपने सोचने, समझने और निर्णय करने की प्रक्रिया में जितना अधिक लोचदार होगा, बदलाव के लिए तैयार होगा, उसके फैसले उतने अधिक सुलझे हुए और एकदम साफ होंगे . साफ दिमाग निर्णय करते समय हल्‍का रहेगा, उस पर अतीत और अपेक्षा का भार कम से कम रहेगा, तो जाहिर तौर पर वह सुलझे हुए निर्णय ले पाएगा. 

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अब प्रश्‍न यह है कि दिमाग हल्‍का और सुलझा हुआ कैसे रहे. क्‍योंकि हर किसी को यही लगता है कि वह तो बड़ा ही सुलझा आदमी है, यह तो दुनिया है जो हर बात पर उसके सामने अड़ंगे लगा रही है. तो सुलझे दिमाग के लिए जरूरी कुछ चीजें समझिए…

1. अतीत के अनुभवों से सबक लेना है, लेकिन अतीत की छाया हर निर्णय पर नहीं पड़नी चाहिए.

2. संभावना का द्वार केवल भविष्‍य है, इसलिए दृष्टि उसकी ओर होनी चाहिए, अतीत के आंगन में दुख और दुविधा की छाया अधिक मिलेगी. 

3. मन को अपवाद स्‍परूप होने वाली कठिनाइयों, समस्‍याओं के ग्रहण के बीच निर्णय लेने से रोकें. जो भी निर्णय आपने लिया है, वह केवल आपका है, इस बात को समझना अनिवार्य है.

4. हमेशा ध्‍यान रहे, दुनिया में सही सोच का होना ही सबकुछ है. सही सोच छोटे-छोटे निर्णय से आना शुरू होती है और निरंतर अभ्‍यास से उसमें निखार आता जाता है.

इसलिए अपनी सोच और दिमाग के पैटर्न को जितना संभव हो परिवर्तनशील बनाएं. 

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(लेखक ज़ी न्यूज़ में डिजिटल एडिटर हैं)

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