गलती तो हमारी होती है कि हम उसकी सुनते ही नहीं. हम अपने दिमाग और सपनों को अक्सर गणित की दुनिया में उलझाए रखते हैं. हम चीजों के पीछे 'पागल' नहीं होते और बिना पागलपन के दुनिया में कुछ भी हासिल नहीं किया जा सकता.
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काम में डूबे युवा, करियर में काफी वक्त बिता चुके अनुभवी व्यक्ति अक्सर इस तरह की बातें करते रहते हैं, ‘मैं काम से इतना बोर हो गया हूं कि अक्सर सोचता हूं कि कुछ ऐसा किया जाए, जिसमें कुछ नया हो.’ यह सब बातें अधिकांशत: सप्ताह के पांच दिनों में होती हैं, उसके बाद जैसे ही दो दिन की छुट्टियां आती हैं, यह सारे विचार ‘वीकएंड’ में डूब जाते हैं. यह बात कुछ और है कि बुधवार तक आते-आते फिर वही कहानी शुरू हो जाती है.
हम सब अक्सर ऐसी कहानियों का हिस्सा होते हैं. कभी अपनी कहानी का तो कभी अपनों के माध्यम से ऐसी कहानियों का हिस्सा होते हैं. ऐसी कहानियां कहां आकर थमती हैं? क्या ऐसे विचार को केवल धन की कमी थाम लेती है. बिजनेस आइडिया की कमी रोक लेती है! कहां आकर नौकरी से मुक्ति के सपने दम तोड़ लेते हैं, कहां आकर अच्छे-अच्छे विचार पानी मांगने लगते हैं!
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मेरे एक मित्र हैं. सभी मित्रों में उनके पास सबसे अधिक ‘आइडियाज’ हैं, आइडिया भी ऐसे वैसे नहीं, एकदम अवसर, नवीनता से भरे हुए. इनकी एक बानगी ऐसे समझिए कि आज से कोई बीस बरस पहले वह आम आदमी पार्टी जैसी पार्टी का खाका बना चुके थे. डाटा के बिना भी इंटरनेट कैसे काम कर सकता है, इस पर उनके पास स्पष्ट विचार थे. डिजिटल मीडिया में उनके पास नवाचार की भरपूर सप्लाई है.
समस्या केवल इतनी है कि करे कौन! कैसे हो? वह आर्थिक रूप से स्वतंत्र हैं, सक्षम भी. लेकिन क्या विचार को सफल होने के लिए इतना ही चाहिए, नहीं मेरे विचार में हर सपने को सफल होने के लिए विचार से कहीं अधिक मजबूत इरादे वाला साहस चाहिए.
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जैसे सपने सबको आते हैं, वैसे ही विचार किसी व्यक्ति विशेष की जागीर नहीं होते. विचार पर न तो किसी खास आदमी की फ्रेंचाइजी है और न ही ऐसा है कि केवल उसे ही यह ख्याल आया है. इसलिए अपने विचारों को पढ़ना और समझना जिंदगी की पाठशाला के सबसे जरूरी सबक में से एक होना चाहिए. जिस सपने को दिमाग बुन रहा है, दिल को उसे सुनने और समझने में सक्षम होना चाहिए. उसके बाद हमें दिल पर यकीन करने की कला आनी चाहिए, क्योंकि दिल को सब पता होता है.
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गलती तो हमारी होती है कि हम उसकी सुनते ही नहीं. हम अपने दिमाग और सपनों को अक्सर गणित की दुनिया में उलझाए रखते हैं. हम चीजों के पीछे पागल नहीं होते और बिना पागलपन के दुनिया में कुछ भी हासिल नहीं किया जा सकता. इस पालगपन को हम ऐसे भी समझ सकते हैं कि दुनिया में जो भी क्रिएटर हैं, जिनके नाम कुछ रचने के लिए लिया जाता है, वह कभी सामान्य नहीं हो सकते. उनमें पागलपन का कुछ हिस्सा जरूर होगा. वह कुछ न कुछ ‘ऐसा और ऐसे’ सोचते ही हैं, जो दूसरे की नजर में अजीब और बेतुका तक हो सकता है.
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इसलिए आप भले ही किसी भी प्रोफेशन में क्यों न हों, अपने बॉस और कंपनी के लिए कितने ही मूल्यवान क्यों न हों, किसी भी पैकेज पर क्यों न हों, अगर आपके काम ने आपको कुछ नया देने की प्रेरणा देना बंद कर दिया हो, आप कुछ नया कर पाने को बेकरार महसूस नहीं कर पा रहे हैं तो अपनी शक्ति उस सपने, सोच को जगाने में लगाइए, जहां जाने की ओर जिंदगी इशारा कर रही है.
अगर आप ईमानदारी से महसूस करेंगे, समझने की कोशिश करेंगे तो ऐसा कोई कारण नहीं जो आपको उस नियति तक जाने से रोके, जो आपकी प्रतीक्षा में बेकरार है!