जिस विनम्रता, कृतज्ञता का उन्होंने बेहद जुनूनी, उत्तेजना के पल में परिचय दिया वह बेमिसाल है. उन्होंने साबित किया कि जीवन मूल्य अगर आत्मा तक उतरे हों, तो बाहर 'चादर' कैसी भी हो, वह कभी मैले नहीं होते.
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मैदान के भीतर-बाहर इस वक्त फुटबॉल का रंग बरस रहा है. हम अपलक एक अदद गोल की चाह में तरस रहे हैं. इसलिए, जैसे ही कोई खिलाड़ी गोल करता है, खुशी, जश्न सरल, सहज रूप से शुरू हो जाता है. विश्वकप में गोल करने से बड़ा काम एक खिलाड़ी, प्रशंसक के लिए और क्या है!
इसलिए, जब कोई ऐसा सामने आ जाए जो क्वार्टर फाइनल में गोल करने के बाद भी शांत रह जाए, तो वह कुछ खास होगा. उसके चेतन, अवचेतन मन और दिमाग में जरूर कुछ ऐसा होगा जो उसे दूसरों से खास बनाता होगा.
फ्रांसीसी फॉरवर्ड एंटोइन ग्रीजमैन ने टीम के लिए जितना जरूरी गोल मैदान में किया, उससे कहीं बड़ा काम ‘गोल’ के बाद किया. इस ‘भावना’ की दुनिया में सबसे ज्यादा कमी महसूस हो रही है.
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मैच के बाद ग्रीजमैन ने जो कहा, उसे ध्यान से सुनने, गुनने की जरूरत है. उन्होंने कहा, 'मैंने गोल का जश्न नहीं मनाया, क्योंकि जब मैंने अपने पेशेवर करियर की शुरुआत की थी तो मुझे उरुग्वे के एक व्यक्ति ने समर्थन दिया था. उन्होंने ही मुझे फुटबाॅल की बारीकियां सिखाई थीं. उरुग्वे के सम्मान की खातिर मेरे लिए गोल का जश्न मनाना सही नहीं था.'
मैं ग्रीजमैन के बारे में कुछ नहीं जानता. प्रशंसक भी नहीं हूं. सच तो यह है कि फुटबॉल के बारे में मेरी समझ बस गोल को होता देखकर खुश होने तक सीमित है. उसके बाद भी मैं अब ग्रीजमैन का हमेशा के लिए मुरीद हूं.
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जिस विनम्रता, कृतज्ञता का उन्होंने बेहद जुनूनी, उत्तेजना के पल में परिचय दिया वह बेमिसाल है. उन्होंने साबित किया कि जीवन मूल्य अगर आत्मा तक उतरे हों, तो बाहर 'चादर' कैसी भी हो, वह कभी मैले नहीं होते.
हमारे आसपास जो नकारात्मकता बिखरी है. उसकी जड़ में सबसे अधिक एक-दूसरे के प्रति अविश्वास, कृतज्ञता की कमी ही है. हमें जैसे ही बैठने को जगह मिलती है, हम तुरंत पांव पसार लेते हैं. जबकि होना यह चाहिए कि जिसने बैठने की जगह दी, उसे तो हमारी वजह से कोई कष्ट नहीं हो रहा, सबसे अधिक ख्याल इस बात का रहे.
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लेकिन हम जगह मिलते ही खुद को अकूत प्रतिभाशाली, दुनिया में सबसे अद्वितीय मान लेते हैं. हमारा दिमाग और आसपास के लोग हमें जल्द ही यकीन दिला देते हैं कि जो कुछ मिला है, असल में वह तुम्हें ही मिलना था. तुमसे बेहतर तो उसका कोई अधिकारी ही नहीं था.
यह अहंकार\ईगो धीरे-धीरे हमारी समग्र चेतना का हिस्सा बन जाता है. हम भूल जाते हैं कि इस विराट धरती का हम कितना छोटा हिस्सा हैं. हमारी हैसियत क्या है! दिल्ली, मुंबई, कोलकाता की गलियों से गुजरते हुए हम अगर अपने और दूसरे का फर्क महसूस करें तो केवल इतना कि एक मौका जिसने जिंदगी बदली, वह किसी कारण से आपको मिला, उन्हें नहीं.
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विश्वास और आस्था को किसी चीज की जरूरत नहीं होती, अगर वह अवचेतन की परतें पार करके अपने विश्वास को मन में बसा ले. आत्मा में बसा यह प्रेम, विश्वास ही किसी को उस जगह पहुंचा सकता है, जहां फुटबाॅलर ग्रीजमैन उस दिन पहुंच गए. नैतिकता, पवित्र भावना के जिस शीर्ष बिंदु का उन्होंने प्रदर्शन किया उसका एक चौथाई भी अगर हम अपने जीवन में हासिल कर सकें, तो यह मनुष्यता के प्रति हमारा सबसे बड़ा योगदान होगा.
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वर्ल्ड कप कोई भी जीते, मनुष्यता, प्रेम और आत्मीयता के लिए एंटोइन ग्रीजमैन ही विजेता हैं. उन्हें खूब सारी बधाई!
(लेखक ज़ी न्यूज़ के डिजिटल एडिटर हैं)
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