हम भूल रहे हैं कि मिट्टी का घड़ा, फ्रिज नहीं. फ्रिज का पानी लाख ठंडा हो, लेकिन उसमें मिट्टी का स्वाद नहीं. हमें अपनी मिट्टी के स्वाद को खजाने की तरह सहेजना है. इसमें ही जीवन की सुगंध है.
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नया साल पंख फैलाए हमारी ओर बढ़ रहा है. साल के तीन सौ पैंसठ दिनों में यह दिन कुछ अलग तरह के होते हैं. कुछ अनमने, ऊंघते, नए की अभिलाषा में 'पुराने'! इन दिनों दोस्त, शिक्षक, सीखने-सिखाने वाले अक्सर सलाह का पिटारा खोल देते हैं. देखो, यह बदल लो. देखो 'उसकी' यह बात कमाल की है. काश! ऐसा हो पाता कि तुम्हारे भीतर उसकी यह खूबी होती. काश! ऐसा होता कि तुम 'कुछ' उसके जैसे होते.
मुझे इनके उत्तर में बस यही कहना है, 'फिर मैं अपने जैसा कैसे हो पाऊंगा!' हम दूसरों की अपेक्षा, उम्मीद में खरा उतरने, उनके अनुसार सही होने की चाहत में खुद को इतना बदल लेते हैं कि हमारी स्थिति पर डैडी के गीत, 'आईना, मुझसे मेरी पहले सी सूरत मांगे' एकदम सटीक दिखता है! इसलिए नए साल के संकल्प/ रिजोल्यूशन जितनी मर्जी लिए जाएं, लेकिन यह नहीं भूलना चाहिए कि कुछ सीखना, नया जानना एक बात है और खुद को दूसरों की चाहत के अनुसार बदल देना. दूसरी बात!
हमें हमेशा ध्यान रखने की जरूरत है, अगर कुछ जोड़ना, घटाना है तो वह पहले वाले हिस्से का काम है. दूसरे हिस्से में कुछ नहीं जोड़ना. हम किसी को उसके जिस गुण, अदा, खासियत के लिए जानते हैं, उसका कामयाबी, असफलता से कोई संबंध नहीं होता. होता बस यह है कि अगर कोई कामयाब हो गया तो उसकी आदत, खूबी सफलता के साथ जुड़ जाती है. जबकि असल में उसका मिजाज ही ऐसा है. किसी को कुछ मिल जाने से वह खास नहीं बन जाता, उसकी अपनी खूबियां उसे दूसरों से विशिष्ट बनाती हैं.
डियर जिंदगी : जब ‘सुर’ न मिलें…
इसलिए दूसरों की नकल करना, उनके जैसे बनने की कोशिश करना, रोल मॉडल बनाना, किसी के फैन बनना बंद कीजिए. अपनों को समय, दुलार और उनके साथ होने का अहसास देना सबसे जरूरी चीज़ है, इसका सबसे अधिक ख्याल रखना होगा.
नए साल का कोई एक ख्याल अगर मुझसे पूछा जाए, तो मैं यही चाहता हूं कि मुझे अधिक से ऑफलाइन ( इंटरनेट से दूर) रहने का मौका चाहिए. अपनों के साथ अपनों के लिए वक्त बिताने के मौके चाहिए. मोबाइल में गुम, व्हाट्सअप पर घिरे अपनों को कम से कम देखने का अरमां भी नए बरस में रखता हूं.
हमें संवाद के गहरे अर्थ को समझना होगा. जीवन केवल सांसों की गिनती नहीं है. वह फूलों का खिलना, हृदय का धड़कना, संवेदना का स्पंदन भी है. हम इनसे बहुत दूर निकल आए हैं, इनके पास लौटना है. हम भूल रहे हैं कि मिट्टी का घड़ा, फ्रिज नहीं. फ्रिज का पानी लाख ठंडा हो, लेकिन उसमें मिट्टी का स्वाद नहीं. हमें अपनी मिट्टी के स्वाद को खजाने की तरह सहेजना है. इसमें ही जीवन की सुगंध है.
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