डियर जिंदगी: कब से ‘उनसे’ मिले नहीं…
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डियर जिंदगी: कब से ‘उनसे’ मिले नहीं…

जब हम जिंदगी को ऑक्‍सीजन की सप्‍लाई करने वाली सारी खिड़कियां बंद कर देते हैं, तो उससे स्‍वाभाविक रूप से बेचैनी होती है. जो धीरे-धीरे रूखेपन में बदल जाती है.

डियर जिंदगी: कब से ‘उनसे’ मिले नहीं…

फेसबुक पर बीते दिनों कम से कम 10 पोस्‍ट ऐसी देखने को मिलीं, जिनमें इस बात पर दुख व्‍यक्‍त किया गया था कि अपने प्रिय व्‍यक्ति से मिलने का अवसर नहीं मिला. लेकिन उनके न रहने पर आखिर में उनको विदाई देने के लिए लंबा अवकाश लिया गया. इनमें से एक पोस्‍ट में इस बात का जिक्र था कि वह अपनी मां को देखने नहीं जा पा रहे थे, जबकि वह लंबे समय से बीमार थीं. इसमें अफसोस व्‍यक्‍त किया गया है कि काश! पहले वह मां के पास पहुंच जाते, तो कम से कम कुछ दिन उनके साथ बिता लिए होते!

एक दूसरी पोस्‍ट में एक मित्र के लिए लिखा गया कि बहुत दिनों से उससे बात नहीं हो पा रही थी. कुछ बताने के लिए नहीं था. कुछ काम होने से सोचा कि यह हो जाए, तो बात करते हैं. लेकिन इस एक-एक दिन से साल निकल गए. किसी रोज पता चला कि उसके साथ कुछ अनसोचा घट गया.

डियर जिंदगी : कम नंबर लाने वाला बच्‍चा!

जीवन बेहद अनियमित, छोटा और अनियंत्रित है. हां, हमें भ्रम जरूर होता रहता है कि इसके नियंता हम हैं, जबकि कहानी एकदम उल्‍टी है. हम प्रकृति के नियमों में उलझे, बंधे हैं. जिंदगी को भले हम ‘पोस्‍ट पेड’ समझते रहे, लेकिन असल में यह है तो ‘प्री-पेड’ ही! प्री-पेड में बैलेंस खत्‍म होने के बाद सारी मिन्‍नतें बेकार हो जाती हैं. जीवन भी सांसों का प्री-पेड कनेक्‍शन है!

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शहर, नौकरी और सोशल मीडिया जीवन के यही तीन स्‍थायी भाव हो गए हैं. अब तो हर छोटे-बड़े शहर में यह तीनों चीजें लागू हो रही हैं, जबकि पहले केवल महानगर ही इनके बारे में चिंतित रहते थे. इनकी चक्‍की में जिंदगी का स्‍वाद किरकिरा हो गया है. ठीक वैसे ही जैसे सर्दियों में बढ़ते प्रदूषण के बीच दिल्‍ली से गुजरते हुए मुंह में कड़वाहट महसूस होती है. जीवन की एकरसता के बीच ऐसा ही कुछ जिंदगी महसूस करती है. जब हम उसके आसपास की सारी खिड़कियां बंद कर देते हैं, तो उससे स्‍वाभाविक रूप से अकुलाहट होती है.

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तो आइए, जीवन की ऑक्‍सीजन सप्‍लाई करने वाली खिड़कियों को खोलने की कोशिश करते हैं...

1. हर रोज़ भले ही दस मिनट, लेकिन जरूर निकालिए, जब कुछ ऐसा करें कि जिसका नौकरी, रोजमर्रा के काम से कुछ लेना देना न हो.
2. ऑफि‍स आते-जाते ऐसे लोगों के संपर्क में रहें, जिनसे काम की गपशप न होती हो. इससे आपको ‘स्विच ऑन और ऑफ’ करने में सहायता मिलेगी.
3. अनिवार्य रूप से पेड़-पौधों, प्रकृति के पास कुछ वक्‍त बिताइए. उनमें आपकी निगेटिव एनर्जी को दूर करने की अनूठी क्षमता होती है.
4. आराम करने का मतलब मोबाइल पर यू-टयूब, टीवी देखना नहीं है. इनसे जितना अलग, दूर रह सकते हैं, रहिए. आप घर पर जितना ऑफलाइन रह सकते हैं, रहिए. यह आपके मिजाज को पॉजिटिव, खुशी को दोगुना करेगा.
5. मोबाइल को हर चीज़ की कुंजी मत बनाइए. एक अलार्म घड़ी ले आइए. ताकि बच्‍चों को वह सुबह उठा सके. हम सुबह से ही मोबाइल के दर्शन मोड में न चले जाएं.

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इन खिड़कियों के खुलने के बाद आपके पास निश्चित रूप से उनके लिए वक्‍त बचेगा, जो आपका परिवार, दुनिया होते हुए भी कट गए हैं. जिनका साथ सुख तो देता है, लेकिन उसके लिए समय, जगह दिमाग में नहीं रहती. ऐसे सभी दोस्‍तों, परिजनों, रिश्‍तेदारों के नियमित संपर्क में रहिए, जिनसे बात करके, मिलकर सुख मिलता हो. यह जिंदगी में शहरी जीवन के कारण बढ़े तनाव, रूखेपन को दूर करने में मददगार होगा.

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