हम बच्चों की ऊर्जा को किताब के बस्ते में बंद रखने की ‘कुप्रथा’ से अभी तक नहीं उबर पाए हैं. हम बच्चे के नाम पर अपने यशगान से जितने चिपके रहेंगे, बच्चे का उतना ही नुकसान होगा.
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हमें कॉलोनी में साथ रहते हुए अधिक समय नहीं हुआ, लेकिन अगर इस रहने में बच्चे शामिल हो जाएं तो परिचय के पट जल्दी खुल जाते हैं. यहां भी ऐसा ही हुआ. यह दंपति अक्सर अपने बच्चों के स्कूल, स्टेज और स्पोर्ट्स के प्रदर्शन की चर्चा से दूसरों को लगभग आतंकित करते हैं. बात यहां तक पहुंची कि हमसे कहा गया कि हम बच्चों को लेकर जागरूक नहीं हैं.
मैंने कहा, मैं आगे से ध्यान रखूंगा. बात चल ही रही थी कि मुझे ख्याल आया कि वह अक्सर अपने छोटे बेटे का बहुत अधिक जिक्र करते हैं. वहां भी छोटे का ही यशगान चल रहा था. मैंने पूछा, 'बड़े बेटे का क्या हाल है.' पिता ने बताया- वह ट्यूशन में है. मैंने कहा, किस क्लास में है.
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उन्होंने उदास होकर कहा, फोर्थ! मुझे उनके कहने में ऊर्जा की कमी दिखी. और पूछा तो उन्होंने कहा, उसका मन पढ़ने में नहीं लगता. बहुत ज्यादा शरारती है. उसे कोई बात समझाना आसान नहीं है. दिनभर ड्राइंग में लगा रहता है. सारे सब्जेक्ट में बड़ी मुश्किल से जीरो आने से बचता है.
मैंने कहा, अरे! ड्राइंग करता है, वाह! मेरा भाई भी चित्रकार है. आएगा तो उससे मिलवाएंगे! इतने में उनकी पत्नी आ गईं. वह सारी बात सुन रही थीं. उन्होंने कहा, अभी नहीं, वह तो बहुत छोटा है. बिना ड्राइंग सीखे ही उसने घर की दीवारें रंग दी हैं, उसे अभी पढ़ाई में लगाना है!
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जो दंपति यह सब कह रहे हैं, उनके घर की लगभग हर दीवार पर एक पेंटिंग है. इन्हें पेटिंग खरीदना, उसे दीवारों पर लगाना पसंद है. इस लिहाज से तो बेटे को कला ‘डीएनए’ में मिली है. आगे उन्होंने बेटे के बारे में जो बताया वह इस प्रकार है, ‘सारे शिक्षक उससे परेशान हैं. वह किसी की बात आसानी से नहीं मानता. स्कूल में केवल एक क्लास टीचर ही हैं, जिनकी वह कुछ बातें सुनता था. मजेदार बात यह कि उन्होंने कभी इस बच्चे की शिकायत नहीं की. वह उसके तेजी से ड्राइंग बनाने के तरीके से प्रभावित थीं. दंपति को क्लास टीचर का रवैया ठीक नहीं लगा तो उनकी शिकायत प्रिसिंपल से की गई. कुछ ही दिन बात उन्होंने दूसरा स्कूल ज्वाइन कर लिया, तो दंपति ने राहत की सांस ली.’
उन्हें इस बात का जरा भी अंदेशा नहीं है कि वह अपने ही बच्चे की ऑक्सीजन सप्लाई बंद करने का काम कर रहे हैं!
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दंपति को अपने रवैए पर भूरा भरोसा है. परिवार में डॉक्टर, इंजीनियर की फौज है. इसलिए बच्चे का गणित और विज्ञान में अच्छा प्रदर्शन करना जरूरी है.
बेटा बड़ा है, सबका लाड़ला भी है. लेकिन उसके साथ बस यही दिक्क्त है कि वह कम नंबर लाने वाला बच्चा है. ऐसा बच्चा जिस पर परिवार के गौरव को आगे ले जाने की जिम्मेदारी है, भला अपनी पसंद का काम कैसे कर रहा है.
दूसरी बात यह कि अगर चौथी का बच्चा शरारत नहीं करेगा. अपनी मौज में नहीं रहेगा. दिनभर सवाल नहीं पूछेगा, तो कौन यह सब करेगा! हम और आप तो जैसे-जैसे बड़े होते जाते हैं, सवाल करना बंद होता जाता है. क्योंकि हम तो रटे हुए को दुहराने लगते हैं.
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हम बच्चों की ऊर्जा को किताब के बस्ते में बंद रखने की ‘कुप्रथा’ से अभी तक नहीं उबर पाए हैं. हम बच्चे के नाम पर अपने यशगान से जितने चिपके रहेंगे, बच्चे का उतना ही नुकसान होगा.
अपनी प्रतिष्ठा के लिए बच्चों का सहारा लेना बंद करना होगा. बच्चे को माहौल दीजिए. जैसे घर में लगे पौधे को धूप, हवा, पानी देते हैं. उससे रोज उगने के बारे में सवाल नहीं करते. यही बच्चों के साथ करने की जरूरत है.
आगे चलकर यही सब बच्चे जब आपको लौटाते हैं, तो आप और हम शिकायत करते हैं. दुनिया तेजी से बदल रही है, जो आज नहीं बदलेंगे, उन्हें कल बदलने का मौका मिलना बड़ा मुश्किल है.
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