पाकिस्तानी मूल की लेखिका को विरोध करना पड़ा महंगा, मिलने वाला था बड़ा पुरस्कार, अब नहीं मिलेगा
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पाकिस्तानी मूल की लेखिका को विरोध करना पड़ा महंगा, मिलने वाला था बड़ा पुरस्कार, अब नहीं मिलेगा

जर्मनी की एक संस्था ने पाकिस्तानी मूल की ब्रिटिश लेखिका कामिला शम्सी को पुरस्कार देने से मना कर दिया है. 

फोटो साभार: facebook.com/Kamila Shamsie

लंदन: जर्मनी की एक संस्था ने पाकिस्तानी मूल की ब्रिटिश लेखिका कामिला शम्सी को पुरस्कार देने से मना कर दिया है. संस्था ने यह कदम शम्सी के फिलिस्तीन समर्थक व इजरायल विरोधी रुख के कारण उठाया है. पाकिस्तानी मीडिया में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार, जर्मन शहर डॉर्टमंड के प्रशासन की तरफ से कामिला शम्सी को नेली सॉक्स अवार्ड से सम्मानित करने का फैसला किया गया था. यह सम्मान विख्यात यहूदी लेखिका नोबेल विजेता नेली सॉक्स की याद में दिया जाता है. निर्णायक मंडल ने छह सितम्बर को ऐलान किया था कि पुरस्कार के लिए नामित साहित्यकारों में से कामिला शम्सी को इसके लिए चुना गया है.

लेकिन, बुधवार को जारी एक बयान में आयोजकों ने बताया कि आठ सदस्यीय निर्णायक मंडल ने शम्सी को पुरस्कृत करने का आदेश वापस ले लिया है और अब साल 2019 के लिए यह अवार्ड किसी को नहीं दिया जाएगा. बयान में कहा गया है, "तमाम शोध के बावजूद, निर्णायक मंडल के सदस्य इस बात से परिचित नहीं थे कि लेखिका 2014 से ही फिलिस्तीन पर इजरायल सरकार की नीतियों के विरोध में बहिष्कार के अभियानों में शामिल रही हैं."

बयान में कहा गया है, "इजरायल सरकार की नीतियों के खिलाफ उसके सांस्कृतिक बहिष्कार की मुहिम बीडीएस (बॉयकॉट डिस्इनवेस्टमेंट सैंक्शन) में शम्सी की सक्रिय राजनैतिक भागीदारी नेली सॉक्स अवार्ड की मूल भावना के स्पष्ट रूप से खिलाफ है."

शम्सी ने इस फैसले की निंदा की है. उन्होंने ट्वीट किया, "यह मेरे लिए बेहद दुखद है कि निर्णायक मंडल दबाव में आ गया और उस लेखिका को पुरस्कार नहीं देने का फैसला किया जो अपने विवेक और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का इस्तेमाल कर रही है."

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