Lamborghini Vs Ferrari Rivalry: फरारी की जुबान ने दिया तलवार से गहरा जख्म और उस 'किसान' ने बना डाली लैम्बॉर्गिनी, दुश्मनी की पूरी कहानी
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Lamborghini Vs Ferrari Rivalry: फरारी की जुबान ने दिया तलवार से गहरा जख्म और उस 'किसान' ने बना डाली लैम्बॉर्गिनी, दुश्मनी की पूरी कहानी

Enzo Ferrari Vs Ferruccio Lamborghini: रेसिंग की दुनिया के दो बेताज बादशाह हैं लैम्बॉर्गिनी और फरारी. लेकिन क्या आप जानते हैं कि लैम्बॉर्गिनी के मालिक तो ट्रैक्टर बनाया करते थे. लेकिन फरारी के मालिक की एक बात उनको इतनी चुभी कि लैम्बॉर्गिनी कार मार्केट में उतर आया. तो आखिर हुआ क्या था. जानिए.

Lamborghini Vs Ferrari Rivalry: फरारी की जुबान ने दिया तलवार से गहरा जख्म और उस 'किसान' ने बना डाली लैम्बॉर्गिनी, दुश्मनी की पूरी कहानी

'दिल तो बच्चा है जी. थोड़ा कच्चा है जी'.

Ferrari Vs Lamborghini Story: साल 2010 में फिल्म आई थी इश्किया, जिसमें ये अल्फाज लिखे थे, गुलजार साहब ने. लेकिन कभी-कभी ये बच्चे वाला दिल कुछ कर गुजरने का ऐसा हौसला पैदा कर लेता है कि इतिहास उनको सुनहरी स्याही से लिखता है. 

आप सोच रहे होंगे कि मैंने शुरुआत कुछ इस तरह क्यों की. दरअसल जो कहानी अब मैं आपको सुनाने वाला हूं वो है ही कुछ ऐसी. इसमें शानदार स्टोरी है, ड्रामा है और एक किसान के दिल पर लगा बेइज्जती का जख्म है, जिसकी छाप आज भी दुनिया के सामने है. ये कहानी है फरारी और लैम्बॉर्गिनी की. रेसिंग की दुनिया के दो बेताज बादशाह. पलक झपकने से पहले ही ओझल हो जाने वाली सुपरकार्स. आवाज इतनी तेज कि सुनकर कान का परदा फटने का डर हो. सड़क पर चले तो लुक से पहले आवाज से लोगों को हैरान वाली कारें. लेकिन इन दो ब्रैंड की अदावत की कहानी भी उतनी ही कमाल की है.

इनकी दुश्मनी कब और कैसे शुरू हुई, ये तो हम आपको बताएंगे. लेकिन पहले दोनों का इतिहास समझ लेते हैं. 

एनजो फरारी की कहानी

18 फरवरी 1898 को इटली के मोडेना में पैदा हुए एनजो फरारी. हां वही जॉर्जिया मेलोनी वाला इटली, जिनके साथ पीएम मोदी के मीम्स बनते हैं. खैर बात फरारी की हो रही थी. एक पेशेवर रेसर भी थे. उन्होंने अल्फा रोमियो की देखरेख में रेसिंग शुरू की थी. हालांकि उनका रेसिंग करियर बहुत लंबा नहीं चला. वह 47 में सिर्फ 13 ही रेस जीत पाए. दूसरे विश्व युद्ध के बाद एनजो ने स्कुडेरिया फरारी नाम की रेसिंग टीम खरीद ली और इटली के मरानेल्लो में अपनी खुद की कंपनी खोली, जहां आज भी फरारी की मैन्युफैक्चरिंग की जाती है. 

जिस साल भारत आजाद हुआ था, उसी साल फरारी की पहली कार रिलीज हुई थी. दरअसल सड़क पर चलने वाली कार तो फरारी इसलिए लाई थी, ताकि हाई परफॉर्मेंस वाली रेसिंग पर फोकस कर सके. उनका यह नाम और दबदबा आज भी रेसिंग की दुनिया में कायम है. फरारी के पास दुनिया में सबसे ज्यादा फॉर्मूला 1 वर्ल्ड चैम्पियनशिप जीतने का रिकॉर्ड है. भले ही व्यापार कुछ भी हो लेकिन दिल तो फरारी का रेसिंग के लिए ही धड़कता है. 

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हुनर की खान थे लैम्बॉर्गिनी

अब बात करते हैं लैम्बॉर्गिनी की.  इसकी शुरुआत करने वाले शख्स का नाम था फेरुशियो लैम्बॉर्गिनी. इस शख्स के इंट्रो में अगर लिखा जाए तो ये फेहरिस्त लंबी चौड़ी है . ये ऑटोमोबाइल डिजाइनर, सैनिक, इन्वेंटर, मिकैनिक, इंजीनियर, वाइनमेकर, बिजनेसमैन रहे हैं. यानी एक ही जिंदगी में कई विधाओं में पारंगत. फर्श से अर्श और फिर फर्श का सफर देखने वाला शख्स. 

फेरुशियो का जन्म 28 अप्रैल 1916 को एंटोनियो लैम्बॉर्गिनी के घर हुआ था. जैसे-जैसे बड़े हुए मशीनों से इश्क परवान चढ़ता गया. फेरुशियो को खेती-बाड़ी से जुड़ी मशीनें बनाने में मजा आता था ना कि खेतों में काम करने में. मिकेनैक्स से मोहब्बत होने की वजह से उन्होंने बोलोगना में फ्रेटेली ताडिया टेक्निकल इंस्टिट्यूट में पढ़ाई शुरू कर दी. 1940 में वह इतालवी रॉयल एयरफोर्स में भर्ती हो गए. उनकी तैनाती हुई रोड्स आइलैंड में जो साल 1911 से इटली साम्राज्य का हिस्सा था. इटली और तुर्की के बीच जंग के बाद वह व्हीकल मेंटेनेंस यूनिट के सुपरवाइजर बन गए.

अंग्रेजों ने कर लिया था गिरफ्तार

सितंबर 1943 में जब जर्मनों ने अपने पूर्व इतालवी सहयोगियों पर हमला किया, तो ज्यादातर सैनिक या तो भाग गए या युद्ध बंदी के तौर पर पकड़े गए 30,000 इतालवी लोगों में शामिल हो गए. लैम्बॉर्गिनी शुरुआत में तो पकड़े जाने से बच गए. लेकिन बाद में सिविलियन ड्रेस में अपने पुराने वर्कप्लेस पर लौट आए और कई छोटे-मोटे काम पड़ लिए. इसके बाद उन्होंने जर्मनी की सेना से इजाजत लेकर एक छोटी सी व्हीकल वर्कशॉप खोल ली. लेकिन साल 1945 में जब युद्ध खत्म हुआ और आइलैंड पर अंग्रेजों का कब्जा हो गया तो उनको गिरफ्तार कर लिया गया. अगले एक साल तक उनको घर तक नहीं जाने दिया गया. पहले बच्चे को जन्म देते वक्त उनकी पत्नी की मौत 1947 में हुई थी.

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आम कारों को बना देते थे अजूबा

दूसरे विश्व युद्ध खत्म हुआ तो लैम्बॉर्गिनी ने गैराज खोल लिया. उन्होंने अपनी एक पुरानी फीएट टोपोलिनो कार को जबरदस्त तरीके से मॉडिफाई किया. खाली वक्त में वो ट्रैक्टर बनाया करते थे. लैम्बॉर्गिनी के मिकैनिक स्किल्स इतने शानदार थे कि वह शहर में चलने वाली कारों की सूरत बदल दिया करते थे. कई कारों में 750 सीसी का इंजन लगाकर और दमदार आवाज के साथ उन्होंने टू सीटर व्हीकल बनाया था. वक्त गुजरता गया और ट्रैक्टर मार्केट में लैम्बॉर्गिनी का नाम, रुतबा और पैसा बढ़ता गया. कुछ ही सालों में वह इतने अमीर हो गए कि कई महंगी गाड़ियां उनके गैराज में खड़ी थीं. स्वैग ऐसा था कि वह हफ्ते के हर दिन अलग-अलग गाड़ियां इस्तेमाल करने लगे थे. 

फरारी के क्लच में आने लगीं दिक्कतें

साल 1958 में वह फरारी 250 GT खरीदने मरानेल्लो गए. लैम्बॉर्गिनी को लगा कि फरारी कार अच्छी होती हैं. लेकिन बाद में उन्होंने खुद माना कि इनमें काफी आवाज होती है और इनको सड़क पर चलाना काफी मुश्किल है. उन्होंने इसे खराब इंटीरियर वाली ट्रैक कार का दर्जा दे डाला था. उनकी फरारी के क्लच में अकसर दिक्कतें आया करती थीं, जिसे ठीक कराने के लिए उन्हें बार-बार मरानेल्लो जाना पड़ता था. कंपनी के मिकैनिक कई घंटों के लिए उनकी कार ले लिया करते थे, जिसकी वजह से लैम्बॉर्गिनी परेशान हो गए. उन्हें कई बार कंपनी की सेल्स सर्विस टीम के सामने अपना गुस्सा भी दिखाया लेकिन हुआ कुछ भी नहीं.

..और फिर आ गया वो दिन

समय का पहिया घूमता रहा. साल आया 1963.  तब तक लैम्बॉर्गिनी मशहूर ट्रैक्टर मैन्युफैक्चर बन चुके थे. एक दिन उनको लगा कि क्लच में परेशानी वाली बात फरारी कंपनी के मालिक को बतानी चाहिए. उन्होंने उठाई अपनी कार और पड़ोस के गांव मरानेल्लो पहुंच गए. वहां उन्होंने सीधे एनजो फरारी के घर का दरवाजा खटखटा दिया. लैम्बॉर्गिनी और फरारी दोनों को ही इस बात का अंदाजा नहीं रहा होगा कि ये लम्हा उन दोनों की जिंदगी पर ऐसा असर डालेगा, जो इतिहास के पन्नों में दर्ज हो जाएगा.

लैम्बॉर्गिनी फरारी के घर के अंदर गए. दोनों के बीच जो मीटिंग हुई, वह काफी छोटी थी. लैम्बॉर्गिनी ने फरारी को समझाया कि क्लच में दिक्कत है और कैसे उसे ठीक किया जा सकता है ताकि वह लंबे वक्त तक चले. लैम्बॉर्गिनी शायद फरारी के भले ही बात कह रहे थे. लेकिन उस वक्त फरारी ने वो किया, जिसने लैम्बॉर्गिनी के अहम को ठेस पहुंचा दी. शायद फरारी अपने ब्रैंड की आलोचना नहीं झेल पाए और लैम्बॉर्गिनी से कहा- 'तुम मुझे कार बनाने दो, तुम बस ट्रैक्टर बनाने का काम करो.'

वो बात बुरी तरह चुभ गई...

कहते हैं शब्द तलवार से ज्यादा चोट करते हैं. फरारी की यही बात लैम्बॉर्गिनी के दिल में अपमान का घाव कर गई और इस अपमान की आग लैम्बॉर्गिनी के दिल में धधकने लगी. उन्होंने अपनी कार उठाई और घर के लिए निकल गए. उनको शायद उम्मीद थी कि फरारी उनकी सलाह की तारीफ करेंगे लेकिन उन्होंने इसे बुरी तरह नकार दिया. लैम्बॉर्गिनी के पास बुरा मानने वाली हर वजह थी. वह एक काबिल इंजीनियर थे. उनके ट्रैक्टर पूरे इटली में बेस्ट थे. 

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घर लौटते वक्त उन्होंने गेमचेंजर फैसला लिया. उन्होंने ठान लिया कि अब वह भी स्पोर्ट्स कार बनाएंगे, जिसका मुकाबला कोई ना कर सके, फरारी भी नहीं. लैम्बॉर्गिनी से अपमान भुलाए नहीं भूल रहा था. उनके कानों में बार-बार फरारी के वो शब्द गूंज रहे थे. यही चीज उनको सोने तक नहीं दे रही थी. उन्होंने तुरंत स्पोर्ट्स कार बनाने पर काम शुरू किया और सेंट अगाटा में एक छोटी सी फैक्टरी खोल ली. 

महज 4 चार महीने में दिन-रात की मेहनत के बाद लैम्बॉर्गिनी कार का पहला मॉडल तैयार हो गया. जी हां. आपने सही पढ़ा. सिर्फ 4 महीने में लैम्बॉर्गिनी ने कमाल कर दिखाया. साल 1964 में लैम्बॉर्गिनी 350GT को टूरिन के सालाना कार शो में पेश किया गया. 

चार महीने में कैसे किया कारनामा?

आपके जहन में ये सवाल जरूर कौंध रहा होगा कि आखिर कोई 4 महीने में कार कैसे बना सकता है. इसके पीछे भी कमाल की स्टोरी है. दरअसल फरारी-लैम्बॉर्गिनी की मीटिंग से दो साल पहले मरानेल्लो में एक घटना घटी थी, जिसने लैम्बॉर्गिनी की कामयाबी में टॉप गियर लगा दिया. 

मरानेल्लो में एनजो फरारी के दफ्तर में पांच लोग आए, जिनमें कंपनी के चीफ इंजीनियर कार्लो चिट्टी और दिग्गज डेवलपमेंट मैनेजर गिओटो बिज्जारीनी शामिल थे. वे एनजो फरारी की पत्नी लौरा फरारी से बेहद खफा थे, जो उस वक्त फैक्टरी के तमाम बड़े फैसले ले रही थीं. वे चाहते थे कि लौरा प्रोडक्शन के मामले में दखलअंदाजी ना करें. लेकिन इस बात पर एनजो फरारी गुस्सा गए. अपनी पत्नी के बर्ताव को ठीक करना तो दूर उन्होंने उन पांचों लोगों को तुरंत नौकरी से निकाल दिया. 

दुश्मन का दुश्मन दोस्त...

ये पांच लोग भी पुराने चावल थे. हार तो डिक्शनरी में नहीं थी. अपमान इनको भी महसूस हुआ. इन्होंने फरारी का मुकाबला करने के लिए बोरोग्ना में रेसिंग और स्पोर्ट्स कारों की एक डिजाइन एजेंसी खोल ली, जिसका नाम था ATS.जब फरारी ने लैम्बॉर्गिनी से उनको सलाह ना देकर सिर्फ ट्रैक्टर बनाने के लिए कहा था, तब लैम्बॉर्गिनी इन पांच लोगों के पास गए. इन पांच लोगों को तो कार बनाने की हर एक बारीकी मालूम थी. वैसे भी दुश्मन का दुश्मन दोस्त होता है. तो इनकी मदद से 4 महीने में ही लैम्बॉर्गिनी ने एक नई कार बना डाली. ये थी लैम्बॉर्गिनी 350GT.

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वो कार जो बनी लैम्बॉर्गिनी का ''महाअस्त्र"

इस कार को जनता ने हाथों-हाथ लिया और 13 मॉडल बिक गए. अगले दो साल में कंपनी ने 120 कारें बनाईं. आज के दौर में ये कारें नायाब हैं. लैम्बॉर्गिनी 350GT की शुरुआत धीमी हुई, जिससे फरारी पर कुछ खास असर नहीं पड़ा. लेकिन 1965 में कुछ ऐसा हुआ, जिसने सुपरकार की दुनिया में तहलका मचा दिया. टूरिन में एक बार फिर कारों का मजमा लगा. दुनिया भर के दिग्गज आए. इस बार लैम्बॉर्गिनी ने मैदान में उतारा अपनी धाकड़ सुपरकार मिउरा को. 

अगर कहें कि ये एक क्रांतिकारी कार थी, तो गलत नहीं होगा. एफ1 से इंस्पायर होकर इस कार को डिजाइन किया गया था. इसका इंजन ड्राइवर के पीछे था. यानी यह पहली ऐसी कार थी, जिसका इंजन बीच में था. जब यह कार ट्रैक पर दौड़ी तो देखने वालों की सांसें हलक में अटक गई. फरारी वाले भी देखकर हैरान रह गए. लैम्बॉर्गिनी मिउरा को देखकर सुपरकार्स के दीवानों ने दांतों तले उंगली दबा ली. लोग इसके फैन हो गए. यह कार लैम्बॉर्गिनी के लिए सुपरहिट साबित हुई. 

आखिरकार लैम्बॉर्गिनी के मालिक को वो ब्रह्मास्त्र मिल गया था, जिससे वह एनजो फरारी के लिए करारा जवाब था. लैम्बॉर्गिनी ने यह कार बेचते वक्त कहा था कि अगर यह कहीं भी खराब हुई तो कंपनी अपने खर्चे पर मिकैनिक भेजेगी, भले ही उसे प्लेन से आना पड़े, वह माफानामे के साथ आएगा और कार को ठीक करेगा.

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फिर शुरू हुआ बुरा वक्त

1967 में मिउरा का धुआंधार प्रोडक्शन शुरू हुआ और 1973 में जब इसका प्रोडक्शन बंद किया गया, तब तक 764 कारें बिक चुकी थीं. उस वक्त लैम्बॉर्गिनी ने जरामा और उर्राको जैसी कारें भी बनाईं. लेकिन इसके बाद लैम्बॉर्गिनी के लिए बुरा वक्त शुरू हो गया.

70 के दशक की शुरुआत भयावह रही. ऑयल क्राइसिस ने पूरी दुनिया को आर्थिक संकट में डाल दिया. सुपरकार्स का मार्केट एक ही साल में 80 प्रतिशत तक सिकुड़ गया. उस वक्त तक लैम्बॉर्गिनी अपनी दिग्गज कार काऊंताच बनाना शुरू कर चुके थे. तेल के खेल के कारण उनको अपनी कंपनी बेचनी पड़ी और उन्होंने पूरी तरह से ट्रैक्टर और कार बनाना बंद कर दिया. वह रिटायर हो गए और अम्ब्रिया में त्रासिमेनो झील पर बने अपने मैंशन में रहने चले गए. यहां उन्होंने वाइन बनाने का काम शुरू किया. बाद में उन्होंने होटल और गोल्फ कोर्स भी बनवाया. इस जगह को आज टेनुटा लैम्बॉर्गिनी के नाम से जाना जाता है. 

काऊंताच ने दिखाया कमाल

लेकिन लैम्बॉर्गिनी के नए मालिक ने काम चालू रखा और आखिरकार मार्केट में वो कार आ ही गई, जिसके आज भी कई घरों में पोस्टर्स मिल जाएंगे. स्पेसशिप जैसी दिखने वाली ये कार थी काऊंताच. मिउरा की तरह, इसका इंजन भी ड्राइवर के पीछे था. इसका डिजाइन उस दौर में इतना आकर्षक था कि लोग देखते रह जाते थे. इसके दरवाजे ऊपर की ओर खुलते थे. लोगों ने ऐसी कार पहले कभी नहीं देखी थी. काऊंचाच का इटली में मतलब होता है Wow. इसमें 375 हॉर्सपावर का इंजन था और 16 साल में इस कार के 2000 मॉडल बिके थे. 

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लेकिन इस बीच लैम्बॉर्गिनी दिवालिया हो गए और ऑयल क्राइसिस के कारण कंपनी के मालिक भी दो बार बदल चुके थे. साल 1978 तक सारा पैसा खत्म हो गया और कंपनी ने खुद को दिवालिया घोषित कर दिया. इसे साल 1980 में मिमरान ब्रदर्स ने खरीदा. 10 साल तक उन्होंने इस कंपनी को ठीक-ठीक तरीके से चलाया. 1987 में ऑटोमोबाइल कंपनी   Chrysler ने इसे खरीदा. मिमरान ब्रदर्स को इस डील से काफी फायदा हुआ. उन्होंने लैम्बॉर्गिनी जैसी दिवालिया कंपनी को खरीदा और मोटी कीमत में उसे अमेरिकी कंपनी को बेच दिया. 

लैम्बॉर्गिनी ने बनाई थी फास्टेस्ट कार

साल 1990 में काऊंताच की जगह नई कार लॉन्च हुई, जिसका नाम था डियाब्लो. यह उस वक्त दुनिया की सबसे तेज दौड़ने वाली कार थी. शुरुआत में तो इसमें 5.7 लीटर का इंजन लगा था. लेकिन बाद के वेरिएंट्स में कंपनी ने 6 लीटर का इंजन दिया. अगले 10 साल में इस कार के 3000 यूनिट बिके और कंपनी के तीन मालिक भी बदले. 14 अगस्त 1988 को एनजो फरारी और 20 फरवरी 1993 को फेरुशियो लैम्बॉर्गिनी का निधन हो गया. लेकिन इनकी अदावत की ये कहानी आज भी मशहूर है. लेकिन इस रेस में कौन जीता, कौन हारा. ये तय करना मुश्किल है क्योंकि लैम्बॉर्गिनी ने खुद को साबित कर दिखाया जबकि फरारी भी अपने उसूलों पर डटे रहे. 

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'मुझे पता था फरारी को हरा दूंगा'

फेरुशियो लैम्बॉर्गिनी ने एक बार कहा था, टउस घटना के बाद एनजो फरारी ने कभी मुझसे दोबारा बात नहीं की. वह महान इंसान थे. मैं ये मानता हूं. लेकिन उनको नाराज करना बेहद ही आसान काम था. मिकैनिक्स मेरे खून में है इसलिए मैं जानता था कि मैं फरारी को हरा दूंगा. कभी एक किसान से पंगा लेना नहीं चाहिए.' फरारी के साथ अपने कॉम्पिटिशन पर लैम्बॉर्गिनी ने कहा था कि कॉम्पिटिशन के के तीन चौथाई हिस्से तक यह मुकाबला एक सपने की तरह चला, फिर हम सड़क से उतर गए.'

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