वर्ष 2015 में महंगाई दर नियंत्रण में रही
Advertisement

वर्ष 2015 में महंगाई दर नियंत्रण में रही

जहां तक मुद्रास्फीति (महंगाई दर) का सवाल है तो साल 2015 में आलू, प्याज व दाल जैसे प्रमुख खाद्य पदार्थों को छोड़कर यह मोटा माटी नियंत्रण में रही। लेकिन इस विसंगति से यह भी स्पष्ट हो गया कि वृहत-आर्थिक आंकड़े हमेशा वास्तविक तस्वीर नहीं दिखाते। गौरतलब है कि उपभोक्ता मूल्य आधारित मुद्रास्फीति 2015 में अब तक 3.66-5.4 प्रतिशत के दायरे में रही है जबकि उद्योग मंडलों और कुछ अन्य विशेषज्ञों को उम्मीद है कि यह नए साल में रिजर्व बैंक द्वारा तय छह प्रतिशत के लक्ष्य स्तर से नीचे रहेगी।

वर्ष 2015 में महंगाई दर नियंत्रण में रही

नयी दिल्ली : जहां तक मुद्रास्फीति (महंगाई दर) का सवाल है तो साल 2015 में आलू, प्याज व दाल जैसे प्रमुख खाद्य पदार्थों को छोड़कर यह मोटा माटी नियंत्रण में रही। लेकिन इस विसंगति से यह भी स्पष्ट हो गया कि वृहत-आर्थिक आंकड़े हमेशा वास्तविक तस्वीर नहीं दिखाते। गौरतलब है कि उपभोक्ता मूल्य आधारित मुद्रास्फीति 2015 में अब तक 3.66-5.4 प्रतिशत के दायरे में रही है जबकि उद्योग मंडलों और कुछ अन्य विशेषज्ञों को उम्मीद है कि यह नए साल में रिजर्व बैंक द्वारा तय छह प्रतिशत के लक्ष्य स्तर से नीचे रहेगी।

जहां तक कुछ प्रमुख खाद्य उत्पादों व सब्जियों की कीमत का सवाल है तो उपभोक्ताओं को साल के ज्यादातर हिस्से में अलग ही कहानी नजर आई। प्याज की कीमतों ने उपभोक्ताओं को फिर रूलाया जबकि अरहर की दाल की कीमत 220 रपए प्रति किलो के उच्चतम स्तर पर पहुंच गई। इधर थोकमूल्य सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति पूरे साल शून्य से नीचे रही जिसका अर्थ है कि दरअसल थोकमूल्य घटा और मुद्रास्फीति रही ही नहीं। मुद्रास्फीति नवंबर 2014 में शून्य से नीचे के दायरे में आ गई थी और अक्तूबर 2015 में थोक मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति शून्य से 3.8 प्रतिशत नीचे थी। भावी स्थिति के संबंध में उद्योग मंडलों को उम्मीद है कि नए साल में मूल्य में स्थिरता आएगी हालांकि, थोकमूल्य सूचकांक सकारात्मक दायरे में आ सकता है।

उद्योग मंडल सीआईआई के महानिदेशक चंद्रजीत बनर्जी ने कहा, 2016 के दौरान मूल्य स्थिर रह सकते हैं क्योंकि उद्योग अपनी पूर्ण क्षमता से नीचे परिचालन कर रहे हैं। औद्योगिक कीमतें अब नहीं गिर रही हैं, थोकमूल्य सूचकांक बढ़कर शून्य से उपर आ सकता है जबकि खुदरा मुद्रास्फीति 5.5.5 प्रतिशत के दायरे में बरकरार रहेगी। उन्होंने कहा, आरबीआई का जनवरी 2016 तक छह प्रतिशत का लक्ष्य आसानी से प्राप्त कर लिया जाएगा। दरअसल, मुद्रास्फीति मौजूदा स्तर से घट सकती है क्योंकि दलहन की कीमत कम करने के लिए पहलें की जा रही है जो कम बारिश के कारण बेतहाशा बढ़ी थी। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कच्चे तेल का मूल्य में नरमी से भारत को अपना तेल आयात बिल घटाने में मदद मिली जिससे जिंस परिवहन लागत कम हुई। आपूर्ति में बढ़ोतरी के कारण कच्चा तेल ऐतिहासिक न्यूनतम स्तर पर आ गया।

आरबीआई ने हालांकि आगाह किया है कि भू-राजनैतिक झटकों को छोड़कर कच्चे तेल की कीमत आम तौर पर कुछ तिमाहियों में कम ही रहेगी जबकि खाद्य एवं ईंधन को छोड़कर खुदरा मुद्रास्फीति में तेजी पर नजर रखने की जरूरत है। उद्योग मंडल फिक्की ने कहा कि कच्चे तेल में नरमी और अन्य जिंसों तथा कच्चे माल की कीमत में गिरावट के मद्देनजर भारत ‘अपस्फीति’ के दौर में है और निकट भविष्य में यह रझान बरकरार रहने की उम्मीद है।

फिक्की ने कहा, साथ ही दाल, खाद्य तेल जैसे कृषि उत्पादों का मूल्य बढ़ने की उम्मीद है जिसके लिए सरकार उचित कदम उठा रही है। इस तरह निकट भविष्य में मुद्रास्फीति आरबीआई के लक्ष्य के दायरे में रहेगी। इस अनुकूल परिस्थितियों के बावजूद भारत मौसम संबंधी चिंताओं से जूझ रहा है क्योंकि देश में लगातार दो साल (2014 और 2015) सामान्य से कम बारिश हुई। इस साल जुलाई से सितंबर के दौरान कम बारिश से रबी फसल प्रभावित हो सकती है क्योंकि गेहूं, सरसों, तिलहन जैसी जाड़ों की फसलों और कुछ अन्य दलहन की किस्मों के लिए पर्याप्त मृदा आर्द्रता महत्वपूर्ण है। देश में 60 प्रतिशत फसल बारिश पर निर्भर है जबकि शेष सिंचित है।

सीआईआई के बनर्जी ने कहा, आम आदमी ईंधन और परिवहन के लिए कम भुगतान करना जारी रहेगा हालांकि इसमें और गिरावट की उम्मीद नहीं है। खाद्य मूल्य की स्थिति अनिश्चित रहेगी क्योंकि आपूर्ति संकट आरबीआई विशेषज्ञ समूह के मुताबिक वैश्विक जिंस मूल्य का अपस्फीतिक दबाव बरकरार रहेगा लेकिन मानसून के झटों, आपूर्ति पक्ष की दिक्कतों, सातवें वेतन आयेाग के कारण सरकारी खपत के झटकों जैसे आंतरिक कारकों से मुद्रास्फीति में बढ़ोतरी का जोखिम बरकरार रहेगा।

केपीएमजी के भागीदारी (कर) विकास वसल ने कहा, यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि मौजूदा करदाताओं पर बेवजह दबाव न डाला जाए जिससे उनकी बचत और खपत प्रभावित होती है। उन्होंने कहा, मूल्यवर्धित कर या सेवा कर जैसे अप्रत्यक्ष कर लगाने या अतिरिक्त कर से उपभेक्ता को नुकसान होता है क्योंकि इन करों का बोझ आम तौर पर उपभोक्ताओं पर डाला जाता है। फिक्की और सीआईआई ने सरकार को सुझाव दिया कि सरकार फसल की पैदावार के बाद इन हस्तांतरण, वितरण ढांचे में सुधार और सार्वजनिक वितरण प्रणाली को सक्षम बनाकर आपूर्ति श्रृंखला की दिक्कतें दूर कर सकती है।

 

 

 

Trending news