खादी ग्राम उद्योग कमीशन का कहना है कि अगले 10 महीने में अगरबत्ती उद्योग में कम से कम एक लाख रोजगार पैदा होंगे.
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नई दिल्ली: देश का अगरबत्ती उद्योग आत्मनिर्भर बनने के लिए पूरी तरह तैयार है. हालही में सरकार ने बंबू स्टिक्स पर इंपोर्ट ड्यूटी 10% से बढ़ाकर 25% कर दी है. दरअसल, भारत में अगरबत्ती की स्टिक्स चाइना और वियतनाम से आती हैं. इंपोर्ट ड्यूटी बढ़ने से मैन्युफैक्चरर वहां से माल मंगाने की बजाय घरेलू माल की खपत ज्यादा करेंगे. ऐसा करने से देसी सामान की खपत होगी और घरेलू लोगों को ज्यादा रोजगार मिल सकेगा.
खादी ग्राम उद्योग कमीशन का कहना है कि अगले 10 महीने में अगरबत्ती उद्योग में कम से कम एक लाख रोजगार पैदा होंगे. अगरबत्ती उद्योग में बहुत सारे गांव लगे हुए हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी की वजह से अगरबत्ती उद्योग आत्मनिर्भर बनेगा.
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इस समय देश में अगरबत्ती स्टिक्स की खपत 1490 टन प्रतिदिन होती है जिसमें से भारत में केवल 760 टन ही इसका उत्पादन होता है बाकी 730 टन बाहर से आता है. जहां 2009 में अगरबत्ती का कच्चा माल 2% ही इंपोर्ट होता था 2019 में बढ़कर 80% हो गया.
दरअसल, 2011 में इंपोर्ट ड्यूटी 30% से घटाकर 10% कर दी गई थी. इससे अगरबत्ती स्टिक्स का इंपोर्ट बहुत बढ़ गया और 2009 में 31 करोड़ रुपए से 2019 में 546 करोड़ रुपये पर पहुंच गया. इंपोर्ट सस्ता होने से अगरबत्ती निर्माण में लगी लगभग 25% इकाइयां बंद हो गईं.
2019 में सरकार ने अगरबत्ती के कच्चे माल, स्टिक्स के इंपोर्ट पर कुछ पाबंदियां लगा दीं. इन पाबंदियों से देसी यूनिट्स को फायदा हुआ. लेकिन इंपोर्ट कम नहीं हुआ बल्कि बढ़ते रहा. खादी ग्राम उद्योग कमीशन के चेयरमैन विनय कुमार सक्सेना के मुताबिक-पूरे विश्व में बांस उगाने के मामले में भारत दूसरे नंबर पर है. लेकिन भारत पूरे विश्व में दूसरे नंबर का सबसे बड़ा इंपोर्टर भी है. बंबू स्टिक्स पर इंपोर्ट ड्यूटी बढ़ाने से लोकल मैन्युफैक्चरर्स यहीं के स्टिक्स इस्तेमाल करने का सोचेंगे. यह आत्मनिर्भरता की ओर बहुत बड़ा कदम होगा.
भारत 1.46 करोड़ टन बांस का हर साल उत्पादन करता है. 70 हजार किसान बांस उत्पादन से जुड़े हुए हैं. बांस की खेती सबसे ज्यादा भारत के नॉर्थ ईस्ट इलाकों में होती है.
अगरबत्ती उद्योग के लिए बहुत बड़े टेक्निकल स्किल की जरूरत नहीं होती और ज्यादा पूंजी की जरूरत भी नहीं होती. सरकार को उम्मीद है कि अगले तीन-चार साल में भारत बांस के मामले में आत्मनिर्भर बन जाएगा.