बिना मर्जी के रेस्टोरेंज में नहीं ले सकते सर्विस चार्ज, ये है कानून
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बिना मर्जी के रेस्टोरेंज में नहीं ले सकते सर्विस चार्ज, ये है कानून

सर्विस चार्ज तब तक नहीं वसूला जा सकता है जब तक ग्राहक उसे पे नहीं करना चाहता हो.

फाइल फोटो.

नई दिल्ली: देशभर में अगर किसी भी रेस्तराँ में खाने-पीने के बिल के साथ  अगर ग्राहक से सर्विस चार्ज माँगा जाता है तो यह ग्राहक की मर्ज़ी पर है कि वह सर्विस चार्ज अदा करे या नहीं, रेस्तराँ मालिक ग्राहक की मर्ज़ी के बिना सर्विस चार्ज लेता है, तो वह ग़ैरक़ानूनी है. ऐसे ही एक मामले में ग्राहक से ज़बरन सर्विस चार्ज लेने पर अदालत ने रेस्तराँ मालिक को दोषी ठहराया है. 

मामले के अनुसार दिल्ली के कनॉट प्लेस में रेस्टोरेंट में पिछले साल सात दिसंबर को एक परिवार डिनर के लिए गया. खाने के बाद बिल के भुगतान के समय उनसे खाने की क़ीमत के साथ जीएसटी लिया गया, रेस्टोरेंट स्टाफ़ ने कुल बिल 22814 रुपये का दिया लेकिन उसमें 1917 रुपये सर्विस चार्ज के तौर  पर मांगा गया था. यह सर्विस चार्ज दस फ़ीसदी के तौर पर बिल में जुड़ा हुआ था. जीएसटी सरकारी कर है, जो अदा करना अनिवार्य है लेकिन सर्विस चार्ज कोई टैक्स यानि कर नहीं होता है इसलिए ग्राहक वकील राकेश भारद्वाज ने जब देखा कि 10 फीसदी सर्विस चार्ज के तौर पर 1917 रुपये मांगा जा रहा है तो उन्होंने रेस्टोरेंट के मैनेजर से बात की और कहा कि सर्विस चार्ज अनिवार्य नहीं है और ग्राहक खुद वकील हैं जो दिल्ली हाईकोरट व सुप्रीम कोर्ट में वकालत करते हैं, लेकिन रेस्टोरेंट मैनेजर ने सर्विस चार्ज हटाने से मना कर दिया. 

रेस्तराँ स्टाफ़ की इस ज़बरन वसूली के ख़िलाफ़ वकील राकेश भारद्वाज ने रेस्तराँ के ख़िलाफ़ उपभोक्ता अदालत में केस दायर कर दिया. अदालत में ग्राहक ने कहा कि डिनर के बाद उन्हें परिवार के सामने शर्मिंदगी उठानी पड़ी क्योंकि रेस्टोरेंट स्टाफ़ ने उनके साथ काफ़ी बुरे तरीक़े से पेश आया जिससे उन्हें मानसिक कष्ट भी हुआ. क्योंकि तब उनके पास कोई चारा नहीं बचा था इसलिए उन्होंने सर्विस चार्ज सहित पूरा बिल अदा करना पड़ा. 

याचिका में कहा गया कि सर्विस चार्ज अनिवार्य नहीं है, ये ग्राहक की मर्ज़ी पर निर्भर है, बक़ायदा भारत सरकार के उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय ने गाइडलाइंस जारी कर रखी है कि खाने-पीने के बिल में लेवी या सर्विस चार्ज वैध नहीं है. इस तरह का चार्ज अनिवार्य नहीं है बल्कि ये ग्राहक की इच्छा पर निर्भर है कि वह देना चाहे तो दे या न दे. वो जब परिवार के साथ खाने गए तो वह सर्विस चार्ज 1917 रुपये नहीं देना चाहते थे लेकिन फिर भी रेस्टोरेंट ने लिया जो अवैध है और अनफेयर ट्रेड ऑफ प्रैक्टिस है. याचिकाकर्ता ने मुआवजे की मांग की और सर्विस चार्ज लौटाने को कहा. 

मामले में अदालत ने प्रतिवादी रेस्टोरेंट को नोटिस जारी कर जवाब दाखिल करने को कहा, जिसपर रेस्टोरेंट की ओर से अदालत में मांगी गई और सर्विस चार्ज वापस किया गया, इस दौरान रेस्टोरेंट की ओर से कहा गया कि वह सर्वस चार्ज रिफंड करने के साथ ही वह इस बात को लेकर भी सहमत हैं कि 5100 रुपये कंज्यूमर कोर्ट प्रैक्टिशनर्स असोसिएशन में जमा करेंगे और मुआवजे के तौर पर ग्राहक की माँग पर एक रुपये भी देने को समहत हें.

ग़ौरतलब है कि सर्विस चार्ज को लेकर भारत सरकार की 21 अप्रैल 2017 को जारी गाइडलाइंस में कहा गया था कि ये बात नोटिस में आ रही है कि कुछ होटल और रेस्टोरेंट कंज्यूमर की सहमति के बिना टिप या सर्विस चार्ज ले रहे हैं.

-कई बार कंज्यूमर बिल में लगे सर्विस चार्ज देने के बाद भी वेटर को अलग से ये सोचकर टिप देते हैं कि बिल में लगने वाला चार्ज टैक्स का पार्ट होगा.
-कई जगह होटल और रेस्टोरेंट में ये भी लिखा होता है कि अगर कंज्यूमर अनिवार्य तौर पर सर्विस चार्ज देने के लिए सहमत न हों तो न आएं.
-खाने की जो कीमत लिखी होती है उसमें माना जाता है कि खाने की कीमत के साथ-साथ सर्विस जुड़ा हुआ है. 
-जब कंज्यूमर मैन्यू देखता है तो उसमें खाने के आइटम की कीमत और टैक्स लिखा होता है और इसके लिए तैयार होने पर ही कंज्यूमर ऑर्डर करता है. लेकिन इसके अलावा कंज्यूमर की सहमति के बिना लिया जाने वाला कोई भी चार्ज अनफेयर ट्रेड ऑफ प्रैक्टिस है. 
-टिप कंज्यूमर के अधिकार में है. ऐसे में बिल में साफ लिखा होना चाहिए कि सर्विस चार्ज उपभोक्ता की मर्जी पर  है और सर्विस चार्ज का कॉलम खाली रखा जा सकता है कि कंज्यूमर उसमें खुद पेमेंट से पहले अमाउंट भर ले. 
-अनफेयर ट्रेड ऑफ प्रैक्टिस में कंज्यूमर उपभोक्ता अदालत का दरवाजा खटखटा सकता है. 

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